छत्तीसगढ़

Qutub Minar Case: कुतुब मीनार पर किया है मालिकाना हक का दावा, पक्षकार बनाने की मांग वाली अर्जी पर सुनवाई टली, जानें क्या है पूरा मामला

नईदिल्ली I कुतुब मीनार के एक मामले की सुनवाई शनिवार (17 दिसंबर) को साकेत कोर्ट में टल गई. मामला कुतुब मीनार के मालिकाना हक को लेकर है. याचिकाकर्ता कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने कुतुब मीनार वाली जमीन पर मालिकाना हक का दावा किया है.

कुतुब मीनार परिसर स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में देवी-देवताओं की मूर्तियों की फिर से स्थापित करने और पूजा-अर्चना की मांग वाली हिंदू पक्ष की याचिकाओं पर सुनवाई लंबित है. कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह ने मालिकाना हक का दावा करते हुए मामले में पक्षकार बनाए जाने की मांग की है. सिंह की अर्जी पर सुनवाई 24 दिसंबर तक के लिए टाल दी गई है.

उल्लेखनीय है कि सिंह की पक्षकार बनाए जाने की मांग वाली अर्जी एक बार खारिज हो चुकी है. उन्होंने कोर्ट में समीक्षा याचिका दाखिल कर कोर्ट से पुनर्विचार करने की मांग की है. सिंह की अर्जी के निपटारे के बाद ही कोर्ट कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद मामले की सुनवाई करेगा.

वकील ने बताई याचिकाकर्ता की रियासत कहां से कहां तक

याचिकाकर्ता कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद ने दावा किया था कि आगरा से मेरठ तक की जमीन पर उनका पुश्तैनी अधिकार है. वह खुद को आगरा संयुक्त प्रांत का उत्तराधिकारी बता चुके हैं. इसी आधार पर उन्होंने खुद को पक्षकार बनाए जाने की मांग की है. वकील एमएल शर्मा ने कोर्ट को बताया था कि दक्षिण दिल्ली का पूरा क्षेत्र कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह की रियासत के अंदर आता है, इसलिए उन्हें इसमें पक्षकार बनाया जाना चाहिए.  

याचिकाकर्ता कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद ने दावा किया था कि कुतुब मीनार के आसपास वाली जमीन के बारे में फैसला लेने का अधिकार सरकार के पास नहीं है. वहीं, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने (ASI) ने ऐसी याचिकाओं का विरोध कर रहा है. परिसर एएसआई के संरक्षण में है. दरअसल, 1993 में यूनेस्को (UNESCO) ने कुतुब मीनार को विश्व धरोहरों की सूची में शामिल किया था. 

क्या है कुंवर महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह का दावा

महेंद्र ध्वज प्रसाद सिंह का दावा है कि कुतुब मीनार उनकी पुश्तैनी जमीन पर खड़ी है. उनके मुताबिक, जमीन बेसवान परिवार के राजा रोहिणी रमन के उत्तराधिकारी ध्वज प्रसाद सिंह और राजा नंदराम के वंशज की है. मामला 17वीं शताब्दी का है. 

महेंद्र ध्वज प्रसाद के मुताबिक, सन 1947 में जब देश ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हुआ तो भारत सरकार ने जमीन को लेकर संधि नहीं की थी और न ही कोई विलय किया था. एएसआई का कहना है कि पिछले करीब डेढ़ सौ वर्षों से याचिकाकर्ता ने क्यों कुछ नहीं कहा?

वहीं, अदालत का कहना है कि मालिकाना हक वाली अर्जी के निपटारे से पहले परिसर में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की पूजा की मांग वाली याचिका पर फैसला नहीं दिया जा सकता है. निचली अदालत में पूजा की मांग वाली याचिका खारिज हो चुकी है. कुतुब मीनार परिसर के भीतर हिंदू और जैन देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की फिर से स्थापना और पूजा करने की मांग याचिकाकर्ता और वकील हरि शंकर जैन और वकील रंजना अग्निहोत्री ने की है.