छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ : बारनवापारा में बाघों को फिर बसाने का प्लान, वन्य जीव बोर्ड ने री-इंट्रोडक्शन प्रोग्राम को दी सैद्धांतिक सहमति, 12 साल पहले यहां दिखा था टाइगर

रायपुर I बलौदा बाजार जिले में फैले बारनवापारा में बाघ को फिर से बसाने की योजना बन रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता में सोमवार को हुई राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में इस री-इंट्रोडक्शन प्रोग्राम को सैद्धांतिक सहमति दे दी गई। यह इलाका बाघों का पुराना रहवास रहा है। लेकिन 2010 के बाद यहां कभी बाघ नहीं देखा गया। वन विभाग के अफसरों को उम्मीद है कि अब उस जंगल में परिस्थितियां इतनी अनुकूल है कि बाघ अपना परिवार बढ़ा पाएगा।

छत्तीसगढ़ के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन पी.वी. नरसिंहाराव ने बताया, इस प्रस्ताव पर अच्छी चर्चा हुई है। बोर्ड ने सैद्धांतिक सहमति तो दे दी है। जब तक इसपर शासन की अनुमति नहीं मिल जाती आगे कहना ठीक नहीं होगा। वन विभाग के अफसरों का कहना है, विभाग के रिकॉर्ड में 2010 तक बारनवापारा के जंगलों में बाघों का मूवमेंट दर्ज है। उसके बाद इस क्षेत्र में किसी बाघ की मौजूदगी की पुष्टि नहीं हो पाई है। शुरुआती सर्वे से पता चला है कि यह इलाका बाघ को बसाने के अनुकूल है। लेकिन वन्य जीव बोर्ड के इस प्रस्ताव को अनुमति मिल जाने के बाद भी किसी प्रतिष्ठित वन्य प्राणी संस्थान से हैबिटेट सुटेबिलिटी रिपोर्ट तैयार कराई जाएगी। इससे पता चलेगा कि प्रस्तावित जंगल बाघों के पुनर्वास के अनुकूल है भी अथवा नहीं। इसके बाद एक विस्तृत योजना के साथ राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण-NTCA को प्रस्ताव भेजा जाएगा। वहां से मंजूरी मिली तो बाघों को दूसरी जगह से लाकर इस जंगल में छोड़ने का काम शुरू होगा। यहां मध्य प्रदेश से बाघ लाने का प्रस्ताव है।

अचानकमार में भी नये बाघ लाने की तैयारी

छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या चार गुना करने के लिए ग्लोबल टाइगर फोरम (GTF) नाम की संस्था ने भी एक प्रस्ताव दिया है। बोर्ड ने उसको लागू करने की अनुमति दे दी है। इस योजना के तहत अचानकमार टाइगर रिजर्व में मध्यप्रदेश से लाकर नये बाघ छोड़े जाएंगे। अधिकारियों ने बताया कि अचानकमार टाइगर रिजर्व में वन्यप्राणियों के लिए जल स्रोतों और चारागाह को विकसित किया गया है, जिससे शाकाहारी वन्यप्राणियों की संख्या में वृद्धि हो सके।

इस वजह से बारनवापारा पर नजर

वन अधिकारियों के मुताबिक बलौदा बाजार में 244.66 वर्ग किमी का बारनवापारा अभयारण्य जैव विविधता से भरपूर है। यहां तेंदुआ, लकड़बग्घा, जंगली कुत्ता, भेंडिया और सियार जैसे मांसाहारी प्राणी हैं। वहीं सांभर, चीतल, नीलगाय, गौर और जंगली सुअर जैसे शाकाहारी प्राणियों की भी यहां भरमार है। तेंदुआ और बाघ मुख्य रूप से जंगली सुअर और सांभर और चीतल मुख्य शिकार हैं। यहां एक वर्ग किमी के क्षेत्र में औसतन 15 चीतल हैं। ऐसे में बाघ को शिकार की कमी यहां नहीं होने वाली। शुरुआती अनुमान है कि 100 वर्ग किमी में 7 से 11 बाघों की धारण क्षमता है।

पिछली गणना में 19 बाघ मिले थे, अभी कितने पता नहीं

छत्तीसगढ़ में बाघ तेजी से कम हुए हैं। हर चार साल में हाेने वाली बाघों की गणना इसकी गवाह है। 2014 में यहां 46 बाघ थे। 2018 की गणना में इनकी संख्या घटकर 19 पहुंच गई। प्रदेश में अभी कितने बाघ हैं, इसकी जानकारी वन विभाग सार्वजनिक नहीं करना चाहता। चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन पी.वी. नरसिंहाराव का कहना है, इस साल बाघों की गणना हो रही है। उसके बाद अधिकृत तौर पर केंद्र सरकार ही यह संख्या जारी करेगी। यह रिपोर्ट संभवत: जनवरी 2023 में आ जाए।

वन भैंसों की नस्ल बचाने की भी एक योजना

बोर्ड की बैठक में वन भैंसों की नस्ल बचाने के लिए कृत्रिम गर्भाधान की एक योजना पर भी बात हुई है। इसके तहत उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में मौजूद चार वन भैंसों का वीर्य निकालकर कामधेनु विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में संरक्षित किया जाएगा। समय-समय पर इसका उपयोग मादा वन भैंसों के कृत्रिम गर्भाधान में किया जाएगा। विभाग को उम्मीद है कि इस प्रक्रिया से राजकीय पशु की वंश बेल को बचाये रखा जा सकेगा।

हाथी को लेकर नये सुझाव आये

बैठक में जंगली हाथी को लेकर नये सुझाव आये। विशेषज्ञ सदस्य मंसूर खान ने हाथियों के झुंड को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में खदेड़ने को लेकर सावधान किया। उन्होंने कहा, ऐसा करने से दूसरे क्षेत्र में हाथी अधिक उत्पात करते हैं। इसका सीधा समाधान यह है कि हाथी को छेड़ा न जाए। वन विभाग उसकी निगरानी करे। लोगों को आगाह कर दे। इस तरह हाथी का व्यवहार नियंत्रित रहेगा। वह अधिक नुकसान नहीं करेगा और अपने प्राकृतिक मार्ग से आगे बढ़ जाएगा।

मोबाइल नेटवर्क के NOC पर भी बात, हिचके विशेषज्ञ

बोर्ड की बैठक में अचानकमार टाइगर रिजर्व के उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व और बारनवापारा आदि में मोबाइल नेटवर्क के लिए फाइबर ऑप्टिकल ले जाने का प्रस्ताव आया। इसको लेकर विशेषज्ञों ने कुछ हिचकिचाहट दिखाई। उनका कहना था कि संरक्षित वनों के भीतरी क्षेत्रों में इस तरह की गतिविधियों को अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। इसके अलावा ग्रामीण विद्युतिकरण, सड़क चौड़ीकरण और एनएच 63 पर पुल निर्माण की अनुमति से जुड़े प्रस्तावों पर सार्थक चर्चा हुई है।