छत्तीसगढ़

कोरोना के खौफ से मां-बेटी ने कमरे में गुजारे ढाई साल, जब खुला दरवाजा तो सन्न रह गए लोग

नईदिल्ली I आंध्र प्रदेश के काकीनाडा जिले से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है. यहां कोरोना संक्रमण के डर से एक मां और बेटी पिछले ढाई साल से अपने घर के एक छोटे से कमरे में खुद को बंद रखा था. इस दौरान उन्होंने न किसी से मुलाकात की और न ही सूरज की रोशनी देखी. मामला जिले के काजलुरु मंडल के कुइयेरू गांव का है. यहां एक 44 वर्षीय महिला और उनकी 21 वर्षीय बेटी ने कोरोना संक्रमण के डर से अपने घर के एक छोटे से कमरे में खुद को बंद कर लिया था.

दोनों ने कोरोना वायरस की चपेट में आने के डर से खुद को पिछले ढाई सालों से एक कमरे में खुद को बंद कर रखा था. बीते ढाई साल से उन्होंने ना ही किसी बाहरी व्यक्ति से मुलाकात की और ना ही सूरज की रोशनी देखी. महिला के पति ने कहा कि यह सब कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों में महिलाओं को मास्क पहनने और घर के अंदर रहने के लिए कहने के साथ शुरू हुआ. उन्होंने कहा कि कोविड से हुई मौतों के बारे में सुनकर दोनों ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था.

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दरवाजा खुलने पर लोग हैरान

महिला ने पति सुरी बाबू से मिलने से भी इनकार कर दिया था. वह बाहर से कुछ भी राशन, सब्जी वगैरह लाकर देता था, वे बनाकर खाकर कमरे के अंदर ही रहते थे, रात को जब मोहल्ले के सभी सोये रहते थे, तभी वे अपना नहाने धोने का काम कर लेते थे. आसपास के लोगों से जब पुलिस और मीडिया तक यह खबर किसी ने पहुंचाई. इसके बाद पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने मिलकर कमरे का दरवाजा तोड़कर अंदर गए, कमरे का दरवाजा खुलते ही हर कोई कमरे की हालत देखकर हैरान था.

घंटों की मशक्कत के बाद कमरे से बाहर निकली मां-बेटी

कमरे में सब अस्त-व्यस्त था और दोनों मां-बेटी एक कंबल में छिपे हुए थे. कई घंटों चली मशक्कत के बाद दोनों को कमरे से बाहर आने के लिए राजी किया जा सका. इसके बाद दोनों को काकीनाडा के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टर दोनों की मानसिक और शारीरिक स्थिति की जांच भी हुई. इसमें डॉक्टर्स का कहना है कि दोनों ही शारीरिक रूप से तो स्थिर हैं लेकिन मानसिक स्थिति को समझने के लिए एक मनोचिकित्सक की निगरानी में रखा गया है.