छत्तीसगढ़

माता-पिता में किसके साथ रहना चाहते हो? हाई कोर्ट ने 13 साल के बच्चे को दिया अधिकार तो बेटे ने चुना पापा का साथ

कोलकाता: कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला दिया है। 13 वर्षीय बच्चे की कस्टडी को लेकर माता-पिता के बीच लड़ाई चल रही है। मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा। हाई कोर्ट ने कहा कि बच्चे को खुद तय करने दें कि वह किसके साथ रहना चाहता है। हाई कोर्ट ने कहा कि बच्चा खुद में इस बात को फैसला करने के लिए बुद्धिमान और पर्याप्त परिपक्व है। कोर्ट से अधिकार मिलने के बाद बच्चे ने पिता के साथ रहना चुना। वहीं हाई कोर्ट ने फैसला किया कि साल में एक महीने बच्चा अपनी मां के साथ रह सकता है I

लड़के को अपने पिता के पास लौटने की अनुमति दी गई, जो एक संयुक्त परिवार में रहते हैं। परिवार में उसके दादा-दादी और चाचा भी साथ रहते हैं। हाई कोर्ट ने मां को महीने में दो बार बच्चे से मुलाकात करने का अधिकार दिया है। इसके अलावा मां वीकेंड पर बच्चे के साथ फोन या वीडियो कॉल पर बातचीत कर सकती हैं।

पत्नी ने भिजवाया था पति और ससुरालवालों को जेल

बच्चे के पिता बालुरघाट में स्थित एक स्कूल में टीचर हैं। वहीं महिला मालदा में शिक्षिका है। उनकी पत्नी ने पूरे परिवार के खिलाफ केस दर्ज कराया था। वे सभी जेल से जमानत पर बाहर हैं। उनके तलाक की कार्यवाही चल रही है।

6 साल पहले चली गई थी मायके

दोनों की 2008 में शादी हुई थी। उनके बेटे का जन्म 2010 में हुआ था। शादी 2017 में टूट गई जब पत्नी बच्चे के साथ ससुराल चली गई और आपराधिक मामला दर्ज कराया। पिछले 6 साल से बच्चे की कस्टडी की लड़ाई भी लड़ी जा रही है। पिता ने हाई कोर्ट में शिकायत की थी कि उन्हें उनके बेटे से नहीं मिलने दिया जा रहा है। हाई कोर्ट ने मामले की सुनवाई की।

बच्चा बोला- ‘पिता के घर था खुश’

बच्चे ने एक अनौपचारिक बातचीत में न्यायाधीशों से कहा था कि वह अपने पिता के घर में संयुक्त परिवार में बहुत खुश था। उसने कहा कि मालदा में अपनी मां के घर में, स्कूल से घर लौटने के बाद वह अकेला महसूस कर रहा था। जस्टिस सौमेन सेन और उदय कुमार की खंडपीठ ने अपने 28 फरवरी के आदेश में टिप्पणी की, ‘बच्चा अपनी हिरासत का फैसला करने के लिए काफी परिपक्व है। वह अपनी कस्टडी के संबंध में फैसला लेने में सक्षम है।’

पत्नी ने कहा वापस नहीं आना चाहती

बच्चे ने अदालत को बताया कि आदर्श रूप से, वह माता-पिता दोनों के साथ अपने पिता के यहां रहना चाहता है। हाईकोर्ट ने पहले तो शादी को बचाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाई। अदालत ने संयुक्त पालन-पोषण का भी प्रस्ताव रखा, जो भी विफल रहा। अदालत ने बाद में कहा कि यह स्पष्ट है कि पत्नी की शादी में वापस आने में कोई दिलचस्पी नहीं है।