कांकेर I कांकेर जिले में 31 अक्टूबर को हुए पुलिस-नक्सली मुठभेड़ में मारे गए नक्सलियों का शव लेने उनके परिजन जिला मुख्यालय पहुंचे। मंगलवार को दोनों नक्सलियों की पहचान उनके भाईयों ने ही की, लेकिन परिजनों का कहना है कि उन्होंने बचपन में ही अपने भाई को देखा था, तो इतने सालों के बाद उनकी शिनाख्त कैसे की ?
नक्सली दर्शन पद्दा की शिनख्त करने वाले उसके छोटे भाई ने कहा कि वो नहीं जानता कि उसका भाई कब नक्सलियों के साथ गया था? उसने कहा कि वो उस वक्त इतना छोटा था कि उसे कुछ भी याद नहीं है। उसके बाद से वो उससे मिला भी नहीं है। लेकिन मंगलवार काे उसने ही दर्शन पद्दा की शिनाख्त अपने बड़े भाई मनीराम पद्दा के रूप में कर पुलिस से शव लेकर घर चला गया। इधर उसके साथ आए अन्य रिश्तेदार दबी जुबान में बताते हैं कि दर्शन कभी-कभी गांव आता था। भाई द्वारा दर्शन पद्दा से मुलाकात करने की बात छिपाना भी कई सवालों को जन्म दे रहा है।
छोटा भाई सुखुराम पद्दा (24 वर्ष) ने बताया कि उसकी चचेरी बहन के मोबाइल पर आए मैसेज से जानकारी हुई कि पुलिस मुठभेड़ में दर्शन पद्दा मारा गया है। जिसके बाद वह अपने चचेरे भाई, जीजा, मौसी और अन्य के साथ शव लेने कांकेर पहुंचा। दर्शन पद्दा की उम्र जब 12-13 साल की थी, वो तब ही घर छोड़कर नक्सलियों के साथ चला गया था। इसके बाद वो कभी अपने घर आमाकल नहीं आया और न ही उसकी उससे कभी मुलाकात हुई। इस दौरान उसके पिता मस्सु राम की भी मौत हुई, लेकिन दर्शन उस समय भी घर नहीं आया।
वहीं दर्शन के चचेरे भाई और जीजा ने बताया कि दर्शन कभी-कभी कंदाड़ी उनके गांव आता था। परिजनों के अनुसार वह आमाकल भी अपनी मां जत्ते बाई से मिलने जाता था। लेकिन सुखुराम पद्दा ने इससे इनकार किया। जबकि गांव छोड़ने के बाद दर्शन की उम्र 32 साल होने पर उसका चेहरा-मोहरा सब बदल गया। इसके बावजूद उससे कभी नहीं मिलने वाले छोट भाई सुखुराम पद्दा ने उसकी शिनाख्त करने के साथ ही ये भी बताया कि दर्शन का असली नाम मनीराम पद्दा है और नक्सलियों ने उसका नाम दर्शन रखा है।
दर्शन पर अब उनका कोई हक नहीं
सुखुराम ने बताया उनके गांव में मात्र एक घर है, जो उनके परिवार का है। गांव तक जाने के लिए न तो सड़क है और न ही यहां बिजली पहुंची है। सौर ऊर्जा वाली लाइट लगी है। पेयजल का स्रोत भी नदी है। स्कूल-आंगनबाड़ी कुछ भी नहीं है। जब उससे पूछा गया कि अंतिम संस्कार कहां करोगे, तो उसने कहा कि पैदल दर्शन के शव को कंधे पर लेकर गांव जाऊंगा। वहीं उसका अंतिम संस्कार होगा। नक्सलियों के शव पर दावा करने के सवाल पर उसने कहा कि मौत के बाद अब उनका हक नहीं, बल्कि परिजन ही उसका अंतिम संस्कार करेंगे।
जागेश नहीं विश्राम नाम था दूसरे नक्सली का
मुठभेड़ में जागेश सलाम के मारे जाने के बाद उसका फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। आमाबेड़ा इलाके के कुछ लोगों के पास जब फोटो पहुंची, तो उसे हिरनपाल निवासी के रूप में पहचान कर परिजनों को इसकी सूचना दी गई। यहां फोटो देख बड़े भाई विसनाथ ने बताया यह तो विश्राम सलाम उसका छोटा भाई है, जो सालों पहले नक्सलियों के साथ चला गया था। जांच में पता चला कि नक्सलियों ने ही उसका नाम बदलकर जागेश सलाम रख दिया था। बड़े भाई ने बताया कि वो कभी-कभी मां से मिलता था। मां उसे समझाती थी कि घर लौट आ, लेकिन वो हमेशा बाद में आऊंगा कहकर चला जाता था।
एक माह पहले ही मां की मौत हो गई थी, लेकिन वो घर नहीं आया। कांकेर में भी विसनाथ सलाम ने उसकी पहचान विश्राम उर्फ जागेश के रूप में की। सिकसोड़ थानांतर्गत ग्राम कड़मे के जंगल में 31 अक्टूबर को हुई मुठभेड़ में पुलिस ने दो नक्सलियों को मार गिराया था। इनमें से एक परतापुर एरिया कमेटी सचिव और डीव्हीसी मेंबर दर्शन पद्दा (32 साल) निवासी आमाकल ओरछा ब्लॉक जिला नारायणपुर और उत्तर ब्यूरो स्मॉल एक्शन व रेकी टीम कमांडर जागेश सलाम (23 साल) निवासी हिरणपाल थाना आमाबेड़ा जिला कांकेर शामिल था।