नईदिल्ली I चुनाव आयोग द्वारा झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता को लेकर चिट्ठी महीनों पहले भेजी गई है, लेकिन झारखंड के राज्यपाल उसे सार्वजनिक करने से बचते हुए दिखाई पड़ रहे हैं. हेमंत सोरेन के खिलाफ निर्वाचन आयोग ने सीलबंद लिफाफे में राज्यपाल के पास ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में रिपोर्ट भेजी थी. लेकिन राज्यपाल इस पर कोई फैसला लेने से अभी तक बचते दिखाई पड़ रहे हैं. दरअसल बीजेपी, जेएमएम को कैसे डील करें इसको लेकर असमंजस में रही है. झारखंड के राज्यपाल खुद कह चुके हैं कि सीलबंद लिफाफे को खोलना मुश्किल हो रहा है. मतलब साफ है कि बीजेपी हेमंत सोरेन की सदस्यता खत्म कर उन्हें चुनाव लड़ने दोबारा भेजना नहीं चाहती है.
दरअसल बीजेपी को इल्म हो चुका है कि राजनीतिक रूप से जेएमएम फायदे में रहेगी और बीजेपी इसके लिए जिम्मेदार ठहरा दी जाएगी. बीजेपी के अंदर ऐसी सोच है कि हेमंत सोरेन की सदस्यता खत्म की गई, तो दोबारा हेमंत सोरने बेरहट से चुनावी बाजी जीतने में कामयाब रहेंगे और जनता के बीच आरोप लगाने में कामयाब रहेंगे कि बीजेपी हेमंत सोरने को फंसाकर सरकार गिराने का प्रयास कर रही है. इसलिए बीजेपी का थिंक टैंक हेमंत सोरेन को नई रणनीति के तहत कनफ्यूज्ड और ऊहापोह की स्थिति में रखना चाहता है. हेमंत सोरेन पर लगे आरोपों के बाद प्रदेश में अस्थिरता का माहौल है और इसके लिए हेमंत सोरेन बीजेपी द्वारा जिम्मेदार ठहराए जा रहे हैं.
लोकसभा चुनाव में झारखंड बीजेपी 14 में से 13 सीटों पर चुनाव जीतने को लेकर आश्वस्त है. बीजेपी मानती है कि हेमंत सोरेन सरकार की अस्थिरता की वजह से पूरे प्रदेश में अराजक स्थिती पैदा होने लगी है और विकास का काम ठप होने की वजह से माहौल हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ पूरे राज्य में बन चुका है.
राज्य में अस्थिरता का माहौल क्यों बना हुआ है?
राज्य मे अस्थिरता का माहौल इस कदर चरम पर है कि ठेकेदार से लेकर अफसर तक प्रदेश में अराजक और अस्थिर माहौल को देखते हुए अपना उल्लू सीधा करने में जुटे हैं. जेएमएम भी वोटों को साधने के लिए क्रिस्चन कार्ड, पुराने पेंशन को बहाल करने जैसे ताबड़तोड़ फैसले ले रही है. सीएम हेमंत सोरेन पहले ही कह चुके हैं कि अगर वो गुनहगार हैं तो इतने दिनों तक सजा क्यों नहीं सुनाई जा रही है और वो इस पद पर किस हैसियत से बैठे हैं. सोरेन पहले ऐसे सीएम हैं जो राज्यपाल और चुनाव आयोग से आग्रह कर खुद को सजा दिए जाने की मांग कर चुके हैं. ज़ाहिर है सीएम के खिलाफ पत्ते न खोलकर बीजेपी लगातार सीएम हेमंत सोरेन को सकते में डाले हुई है.
सूत्रों के मुताबिक जेएमएम बीजेपी के साथ जाने को शुरूआती दौर में मन बना चुकी थी, लेकिन जेएमएम के सर्वोपरी नेता शिबू सोरेन और कुछ दूसरे सीनियर नेताओं द्वारा मनाही के बाद मामला पटरी से उतर गया. इसी बीच नीतीश कुमार द्वारा एनडीए से नाता तोड़ने के बाद जेएमएम समझ गई कि राजनीतिक फायदे के लिए एंटी बीजेपी स्टैंड जेएमएम द्वारा अपनाया जाना जेएमएम के लिए ज्यादा हितकारी होगा. वहीं बीजेपी का स्थानीय नेतृत्व भी जेएमएम के साथ गठबंधन को लेकर सहज नहीं था, लेकिन प्रदेश में इस बात को हवा देता रहा कि जेएमएम बीजेपी के सामने घुटने टेकने को तैयार है, लेकिन बीजेपी जेएमएम को साथ लेने के लिए किसी कीमत पर तैयार नहीं है.
बीजेपी एक रणनीति के तहत हेमंत सोरने सरकार को कमजोर दिखाती रही है और प्रदेश में कमजोर सरकार के लिए जेएमएम और कांग्रेस को कोसती रही है. झारखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश कहते हैं कि बीजेपी सूबे में दूसरा नीतीश कुमार पैदा करना नहीं चाहती है. दीपक प्रकाश कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के विराट नेतृत्व में पार्टी सभी सीटों पर जीतेगी इसलिए बीजेपी को राज्य में जेएमएम की जरूरत कतई नहीं है.
औपचारिक रूप से बीजेपी जो भी कहे, लेकिन हेमंत सोरेन सरकार द्वारा विधायकों को दूसरे प्रदेश ले जाना साथ ही तीन विधायकों का पश्चिम बंगाल में पकड़ा जाना कुछ और पक रही खीचड़ी की ओर इशारा करता है. राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार कहते हैं कि बीजेपी चाहे जो कहे, लेकिन सरकार बनाने में नाकामयाब रहने के बाद बीजेपी हेमंत सोरेन सरकार को अस्थिर रखना चाहती है और बीजेपी बहुत हद तक इसमें कामयाब भी रही है.
ईडी की जांच को लेकर सियासी उबाल के क्या हैं मायने ?
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अवैध खनन मामले में ईडी ने समन जारी कर पूछताछ के लिए गुरुवार को बुलाया है, लेकिन हेमंत सोरेन शामिल होंगे या नहीं इसको लेकर सस्पेंस बरकरार है. हेमंत सोरने अब अपने ऊपर लगे आरोपों को राजनीतिक लड़ाई बनाना चाहते हैं. हेमंत सोरने बीजेपी के खिलाफ बने मोर्चे में शामिल होने को लेकर कमर कस चुके हैं. हेमंत सोरेन लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार और कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर विरोधी एकता का हिस्सा बनने की फिराक में हैं, जो बीजेपी को पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में 50 से ज्यादा सीटों पर नुकसान पहुंचाना चाहता है. जाहिर है बीजेपी हेमंत को वैसा स्पेस देना नहीं चाह रही है. इसलिए एक के बाद दूसरे मामलों में घेरकर हेमंत सोरने को डिफेंसिव खेलने को लेकर मजबूर कर रही है.
राजनीतिक विश्लेषक मधुकर आनंद कहते हैं कि बीजेपी सरकार गिराने में विफल रही है, लेकिन सरकार के मुखिया को एक के बाद दूसरे मसले पर आरोपित कर डिफेंसिव करने में कामयाब रही है. मधुकर आनंद कहते हैं कि बीजेपी की इस रणनीति की वजह से महागठबंधन की सरकार पूरी ताकत से काम करने में विफल रहा है और इसका खामियाजा हेमंत सरकार को लोकसभा चुनाव में भरना पड़ सकता है.