नईदिल्ली I गुजरात के मोरबी में पुल के ढहने की जांच, जिसमें पिछले महीने 141 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, ने फिर से खोलने पर मरम्मत और प्रबंधन में भारी चूक का खुलासा किया है, ठेकेदार ओरेवा समूह और स्थानीय नगरपालिका पर सवाल उठा रहे हैं. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के मोरबी पुल हादसे को बड़ी त्रासदी करार देते हुए सोमवार को गुजरात हाईकोर्ट से इस मामले में जांच और पुनर्वास तथा पीड़ितों को सम्मानजनक मुआवजा दिलाने समेत अन्य पहलुओं की समय-समय पर निगरानी करने को कहा है.
प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने इन दलीलों को भी खारिज कर दिया कि मोरबी जैसे हादसे फिर नहीं हों, इसके लिए एक जांच आयोग गठित किया जाना चाहिए. उसने कहा कि कई बार, आयोग मामले को केवल ठंडे बस्ते में डाल देता है. कई बार, न्यायाधीशों के लिए कार्यवाही को संभालना सही होता है. हमने इसे खुद किया होता, लेकिन अब उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इसे देख रहे हैं. मोरबी में मच्छु नदी पर बना ब्रिटिश काल का पुल 30 अक्टूबर को ढह गया था, जिसमें 47 बच्चों सहित 141 लोगों की मौत हो गई थी.
ओरेवा ग्रुप, जिसके पास निलंबन पुल के रखरखाव, संचालन और सुरक्षा का अनुबंध था, ने 30 अक्टूबर को हादसे के दिन 3,165 टिकट जारी किए थे, सरकारी वकील ने आज एक जिला अदालत में फोरेंसिक जांच रिपोर्ट जमा करते हुए कहा कि हालांकि सभी टिकटों को बेचा नहीं गया था, लेकिन कंपनी ने किसी भी मामले में पुल की भार वहन क्षमता का आकलन नहीं किया था.रिपोर्ट में कहा गया है कि पुल के केबल जंग खा गए थे, इसके एंकर टूट गए थे और केबल को एंकर से जोड़ने वाले बोल्ट भी ढीले थे. प्रारंभिक जांच ने सुझाव दिया गया था कि पुराने केबल ठेकेदार द्वारा बिछाई गई नई भारी फर्श का भार नहीं उठा सकते थे.
वहीं ओरेवा द्वारा रखे गए गार्ड और टिकट कलेक्टर दिहाड़ी मजदूर थे, जिन्हें भीड़ प्रबंधन में कोई विशेषज्ञता नहीं थी. सरकारी वकील ने अब तक गिरफ्तार किए गए नौ कर्मचारियों की जमानत सुनवाई के दौरान कहा कि अभी तक शीर्ष प्रबंधन से किसी को भी गिरफ्तार नहीं किया गया है.रिपोर्ट में कहा गया है कि गार्डों को सुरक्षा प्रोटोकॉल या पुल पर कितने लोगों को अनुमति दी जानी चाहिए, के बारे में कभी नहीं बताया गया था. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जिला स्तर के सरकारी वकील विजय जानी ने कहा कि ओरेवा सुरक्षा के लिए जिम्मेदार था, लेकिन उन्होंने दुर्घटना की स्थिति में लोगों को बचाने के लिए कोई लाइफगार्ड या नाव तक नहीं रखी.मच्छू नदी पर बना पुल दोबारा खोले जाने के चार दिन बाद ही ढह गया. कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार इसे आठ से 12 महीनों के लिए बंद रखा जाना था, लेकिन सात महीने के बाद – 26 अक्टूबर, गुजराती नव वर्ष पर, स्थानीय नागरिक निकाय द्वारा किसी भी फिटनेस प्रमाण पत्र के बिना फिर से खोल दिया गया.
पिछले हफ्ते हाईकोर्ट में नागरिक निकाय ने हादसे की जिम्मेदारी ली. इसने एक हलफनामे में कहा कि पुल को खोला नहीं जाना चाहिए था. इस मामले में एक अधिकारी को निलंबित किया गया है. बता दें कि हाईकोर्ट ने खुद इस त्रासदी को संज्ञान लेते हुए छह विभागों से जवाब मांगा था.मोरबी हादसे के विवरण के बारे में हलफनामा दायर करने में देरी से पहले दो सुनवाई में हाईकोर्ट ने नागरिक निकाय को फटकार लगाई गई थी. अदालत ने कहा था कि नगरपालिका, एक सरकारी निकाय, ने चूक की है, जिसने सैकड़ों लोगों को मार डाला.हाईकोर्ट ने पूछा है कि कानूनी मानदंडों का पालन क्यों नहीं किया गया.
इसके आदेश में कहा गया है, “ऐसा लगता है कि इस संबंध में कोई टेंडर जारी ही नहीं किया गया. अदालत ने पूछा कि जून 2017 के बाद कंपनी किस आधार पर पुल का संचालन कर रही थी. जब अनुबंध (2008 में नौ साल के लिए हस्ताक्षरित) को नवीनीकृत नहीं किया गया था. मार्च 2022 में 15 साल के लिए एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किए गए.
वहीं यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के मोरबी पुल हादसे को बड़ी त्रासदी करार देते हुए सोमवार को गुजरात हाईकोर्ट से इस मामले में जांच और पुनर्वास तथा पीड़ितों को सम्मानजनक मुआवजा दिलाने समेत अन्य पहलुओं की समय-समय पर निगरानी करने को कहा है.जबकि राज्य सरकार ने पांच सदस्यीय जांच समिति का गठन किया है, गुजरात राज्य मानवाधिकार आयोग ने उच्च न्यायालय को बताया है कि उसके अध्यक्ष और एक सदस्य हादसे के प्रभावों की जांच कर रहे हैं. आयोग यह भी सत्यापित कर रहा है कि परिवारों को मुआवजा ठीक से दिया जा रहा है या नहीं.