नईदिल्ली I जजों की नियुक्ति के लिए निर्धारित कॉलेजियम सिस्टम को लेकर सरकार और सुप्रीम कोर्ट में तनातनी बनी हुई है. अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर सख्त टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जजों की नियुक्ति का कॉलेजियम सिस्टम देश का कानून है. इसके खिलाफ टिप्पणी ठीक नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि उसके द्वारा घोषित कोई भी कानून सभी के लिए बाध्यकारी है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नामों को मंजूरी देने में केंद्र की ओर से की जा रही देरी से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रही थी.
जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से सरकार को इस बारे में सलाह देने के लिए कहा. बेंच में जस्टिस ए एस ओका और विक्रम नाथ भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि यह उम्मीद है कि अटॉर्नी जनरल सरकार को सलाह देंगे ताकि शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानूनी सिद्धांतों का पालन किया जा सके.
कॉलेजियम प्रणाली सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच एक विवाद का कारण बन गई है. जजों द्वारा जजों की नियुक्ति के तंत्र को विभिन्न हलकों से आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. हाल ही में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने 25 नवंबर को नया हमला करते हुए कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली संविधान के लिए ‘एलियन’ है. उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम को अपारदर्शी बताया था.
यहां ध्यान देने वाली बात है कि कॉलेजियम द्वारा भेजे गए 20 नामों को हाल ही में सरकार द्वारा वापस भेज दिया गया था. पीठ ने पूछा कि यह लड़ाई कैसे सुलझेगी? जब तक कॉलेजियम सिस्टम है, जब तक इसे बरकरार रखा जाता है, तब तक हमें इसे लागू करना है. आप दूसरा कानून लाना चाहते हैं, आपको दूसरा कानून लाने से कोई नहीं रोकता.
शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर समाज का एक वर्ग यह तय करने लगे कि किस कानून का पालन करना है और किसका पालन नहीं करना है, तो चीजें बिगड़ जाएंगी. जब आप एक कानून बनाते हैं, तो आप उम्मीद करते हैं कि अदालतें इसे तब तक लागू करेंगी जब तक कि कानून को रद्द नहीं कर दिया जाता.
केंद्र ने कॉलेजियम से फाइलों पर फिर से विचार करने को कहा
इससे पहले 2 दिसंबर को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली को कुछ ऐसे लोगों के बयानों के आधार पर बेपटरी नहीं की जानी चाहिए जो दूसरों के कामकाज में ज्यादा दिलचस्पी रखते हों. इसके साथ ही जोर दिया कि सर्वोच्च अदालत सबसे पारदर्शी संस्थानों में से एक है. उससे पहले केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम से उन 20 फाइलों पर पुन:विचार करने को कहा है जो उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित हैं. इनमें अधिवक्ता सौरभ कृपाल की भी फाइल शामिल है जो खुद के समलैंगिक होने के बारे में बता चुके हैं.