छत्तीसगढ़

लालू से मिल सकती है विपक्ष की राजनीति में कांग्रेस को ऊर्जा, सभी को एक मोड़ पर ला सकते हैं राजद प्रमुख

नई दिल्ली। किडनी ट्रांसप्लांट के बाद लालू प्रसाद सिंगापुर से 76 दिनों के बाद शनिवार को दिल्ली लौट आए। डाक्टरों ने उन्हें मेल-मुलाकात से अभी बचने का सुझाव दिया है, लेकिन लोग औपचारिकता में उनसे मिलने आएंगे। इनमें विपक्ष के बड़े नेता भी होंगे। मुलाकात होगी तो दूर से ही सही, बात भी होगी। लालू की पहचान भाजपा विरोधी राजनीति की अग्रणी पंक्ति के नेताओं में रही है। ऐसे में लालू की दिल्ली में उपस्थिति से ही विपक्ष की राजनीति को ऊर्जा मिल सकती है।

बिखरी हुई है विपक्ष की राजनीति

महीनों से सुस्त दिख रही विपक्ष की राजनीतिक गतिविधियों को समेटकर एक मोड़ पर लाने का प्रयास किया जा सकता है। विपक्ष की राजनीति अभी बिखरी हुई है। भाजपा विरोधी दल अपने-अपने एजेंडे के साथ अलग-अलग रास्ते पर चल रहे हैं। कांग्रेस को कई क्षेत्रीय दलों का सहयोग नहीं मिल रहा है, बल्कि कई दल तो सीधी चुनौती देकर परेशानी भी बढ़ा रहे हैं।

कांग्रेस को मिल सकता है लालू प्रसाद की सक्रियता का फायदा

बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति तो दिल्ली-पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का तौर-तरीका पूरी तरह कांग्रेस के विपरीत है। जदयू एवं सपा समेत कुछ दलों ने भारत जोड़ो यात्रा के लिए राहुल गांधी को शुभकामनाएं तो दे दी परंतु सहयोग देने की आवश्यकता नहीं समझी। ऐसे में माना जा रहा कि लालू प्रसाद के आने और फिर से सक्रिय होने से विपक्ष की राजनीति में गति के साथ-साथ कांग्रेस को भी बल मिल सकता है, क्योंकि 2009 के लोकसभा चुनाव के एक छोटे दौर को अगर छोड़ दिया जाए तो लालू की राजनीति कांग्रेस के अनुकूल रही है।

सोनिया गांधी से मिलने पहुंचे थे नीतीश और लालू

सोनिया गांधी से ऐसा अपनापन रहा है कि छह महीने पहले नीतीश कुमार जब सोनिया गांधी से दिल्ली में मिलने गए तो लालू को भी साथ लेते गए। बिहार में भाजपा से अलग होकर सात दलों के महागठबंधन की सरकार चलाते हुए नीतीश कुमार ने विपक्ष की बिखरी हुई राजनीति को धार और एक समेकित मंच देने की बात कही थी, किंतु छह महीने से अधिक बीत जाने के बाद भी वैसा कुछ अभी तक दिख नहीं रहा है। सारे क्षेत्रीय दल अपने-अपने आधार वाले राज्य में सक्रिय तो हैं, लेकिन किसी की किसी पर प्रभावी पकड़ नहीं दिखती है।

कई नेताओं से रहे हैं अच्छे संबंध

राजद प्रमुख को इस फन का उस्ताद माना जाता है। जेपी आंदोलन से निकले लालू ने 1990-95 के दौर की राजनीति में वीपी सिंह को आगे करके संपूर्ण विपक्ष को कुछ समय के लिए एक रखने में बड़ी भूमिका निभाई थी। आज की पीढ़ी के नेताओं में भी लालू की बात का असर है। शरद पवार, ममता बनर्जी एवं केसीआर से लालू के संबंध हमेशा से शुरू से ही अच्छे रहे हैं।