छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ : माओवादी हमले में शहीद DRG जवानों के शवों को नहीं मिला ताबूत, CRPF ने मुहैया कराई चारपाई और कंबल

रायपुर : छत्तीसगढ़ के सुकमा में 25 फरवरी को जगरगुंडा-कुंदेड़ के बीच नक्सलियों के साथ हुई मुठभेड़ में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड ‘डीआरजी’ के तीन जवान शहीद हो गए थे। सैंकड़ों की संख्या में मौजूद नक्सलियों ने घात लगाकर डीआरजी दस्ते पर हमला बोला था। शहीदों के पार्थिव शरीर को जब अंतिम सलामी दी गई, तो वहां पर ‘ताबूत’ की व्यवस्था नहीं थी। जगरगुंडा में सीआरपीएफ की कंपनी ने जवानों के पार्थिव शरीर को रखने के लिए चारपाई और कंबल मुहैया कराया। उसके बाद शवों को तिरंगे में रखा गया।

जगरगुंडा-कुंदेड़ के बीच सड़क निर्माण का काम चल रहा था। उस जगह की सुरक्षा देने के लिए डीआरजी को तैनात किया गया। इसके अलावा नक्सल प्रभावित क्षेत्र में, डीआरजी के जवान किसी बड़े ऑपरेशन की तैयारी कर रहे थे। जैसे ही डीआरजी का दस्ता वहां से गुजरने लगा, पहले से मौजूद नक्सलियों ने घात लगाकर हमला कर दिया। चारों तरफ से जवानों पर गोलियां बरसाई गई। नक्सलियों की संख्या करीब 150-200 बताई जा रही है। घात लगाकर हुए हमले में जवानों ने बहादुरी के साथ नक्सलियों का मुकाबला किया। उन्हें मुंहतोड़ जवाब देकर वहां से खदेड़ा। पुलिस ने कई नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया है।

हमले में डीआरजी के एएसआई रामूराम नाग, सहायक कांस्टेबल कुंजम जोगा और सैनिक वंजम भीमा शहीद हो गए। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने ट्वीट के जरिए जवानों की शहादत पर दुख जताया। उन्होंने शहीदों के परिजनों के प्रति संवेदनाएं व्यक्त करते हुए लिखा, जवानों का बलिदान बेकार नहीं जाएगा। हमले के बाद जवानों के शवों को जगरगुंडा स्थित पुलिस कैंप में अंतिम सलामी दी गई। जब यह रस्म अदा की जा रही थी, तो शहीद जवानों के पार्थिव शरीर को रखने के लिए ताबूत की व्यवस्था नहीं थी। सीआरपीएफ ने डीआरजी को अपने जवानों की चारपाई और कंबल मुहैया कराया। चारपाई पर कंबल बिछाकर, उसके ऊपर जवानों का पार्थिव शरीर रखा गया। इस बात को लेकर जवानों में रोष देखा गया।

सूत्रों के मुताबिक, माओवादियों के खिलाफ जारी विभिन्न ऑपरेशनों में जवानों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। घने जंगलों के बीच जब कोई ऑपरेशन होता है, तो वहां एंबुलेंस की सुविधा आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाती। इसके चलते घायल जवानों को अस्पताल तक पहुंचने में देरी होती है। कई बार ऐसा भी देखने को मिलता है कि किसी मुठभेड़ में जवान घायल हो जाते हैं या शहादत को प्राप्त होते हैं, तो उन्हें कैंप तक ट्रैक्टर ट्रॉली में लाया जाता है। अगर जवानों के पार्थिव शरीर को कोई शीर्ष अफसर या राजनीतिक व्यक्ति यानी मुख्यमंत्री या मंत्री, श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं, तो ही ताबूत की व्यवस्था की जाती है।