छत्तीसगढ़

रक्त दान नहीं कर सकते ट्रांसजेंडर-सेक्स वर्कर, केंद्र ने SC में बताया क्यों सही है ये फैसला

नई दिल्ली: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यह जरूरी है कि रक्त दान करने वालों और रक्त लेने वालों को ये पूरा विश्वास हो कि जो भी ब्लड सैंपल लिया गया वो पूरी तरह से सुरक्षित और क्लिनिकली ठीक है. इसके साथ ही केंद्र ने उस मांग का विरोध किया है, जिसमें कहा गया कि ट्रांसजेंडर, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों (MSM) और महिला यौनकर्मियों को रक्त दान करने से रोकने वाले दिशानिर्देशों में बदलाव किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका को 2 साल से ज्यादा का समय हो गया है. इसी के जवाब में दायर हलफनामे में केंद्र ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, एमएसएम और महिला सेक्स वर्कर्स को रक्तदाताओं के रूप में बाहर करना वैज्ञानिक साक्ष्य पर आधारित था. साक्ष्य को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है और उन्हें भारत में विशेषज्ञों द्वारा स्वीकार किया गया.

केंद्र ने कहा कि देश में ब्लड ट्रांसफ्यूजन सिस्टम (BTS) रक्त दान पर निर्भर करता है और देशभर में अलग-अलग हेल्थ सिस्टम की क्वालिटी के संबंध में मौजूदा वास्तविकता के आधार पर दिशानिर्देश लागू किए गए हैं. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने हलफनामे में कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि बीटीएस की प्रामाणिकता को मजबूत करने के लिए हरसंभव प्रयास किया जाए. इससे उन लोगों में विश्वास पैदा होगा जिनके पास बीटीएस का उपयोग करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

इसमें कहा गया कि यह जरूरी था कि ब्लड डोनर और खून लेने वाला दोनों को पूरा विश्वास हो कि ब्लड बैंक में उपलब्ध खून न केवल सुरक्षित है बल्कि चिकित्सकीय रूप से प्रभावी भी है. ये हलफनामा फरवरी में दायर किया गया.

मणिपुर के ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्य थंगजाम संता सिंह ने जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें तर्क दिया गया कि केंद्र और नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (NBTC) की ब्लड डोनर गाइडलाइंस असंवैधानिक है क्योंकि यह व्यक्तियों से उनकी लिंग पहचान और यौन झुकाव के आधार पर भेदभाव करता है.

कोर्ट ने मार्च 2021 में केंद्र, नेशनल एड्स कंट्रोल ऑगनाइजेशन और एनबीटीसी से जवाब मांगा था. याचिका पर इस महीने के अंत में सुनवाई हो सकती है. एडवोकेट अनिंदिता पुजारी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, एमएसएम और महिला यौन कर्मियों का निषेध नकारात्मक रूढ़ियों पर आधारित मान्यताओं के कारण है जो संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15 (भेदभाव के खिलाफ अधिकार) के तहत भेदभाव के बराबर है.