नईदिल्ली : समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सरकार को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) का साथ मिला है। बीसीआई ने रविवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है। इसमें बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने कहा है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के फलस्वरूप देश की मूलभूत संरचना पर बुरा असर पड़ेगा। इसलिए हम इसका विरोध करते हैं।
बीसीआई के अध्यक्ष एडवोकेट मनन कुमार मिश्रा ने पारित प्रस्ताव के बारे में बताते हुए कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सभी प्रतिनिधियों का मानना था कि भारत जैसे देश में समलैंगिक विवाह को हम मान्यता नहीं दे सकते। इससे हमारे देश की मूलभूत संरचना पर बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि इसके विरोध में हम सुप्रीम कोर्ट में अंतर्वर्ती आवेदन (IA) फाइल करेंगे।
बीसीआई ने रविवार को एक प्रस्ताव पारित कर कहा, इस संवेदनशील मामले में शीर्ष अदालत का कोई भी फैसला हमारे देश की भावी पीढ़ी के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है। भारत दुनिया के सबसे सामाजिक-धार्मिक रूप से विविध देशों में से एक है जिसमें विभिन्न तरह की मान्यताएं हैं। इसलिए, कोई भी मामला जो मौलिक सामाजिक संरचना के साथ छेड़छाड़ की संभावना रखता है, एक ऐसा मामला जिसका हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वासों पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है, उसे आवश्यक रूप से विधायी प्रक्रिया के माध्यम से ही आना चाहिए।
इस प्रस्ताव को एक संयुक्त बैठक में स्वीकार किया गया जिसमें सभी राज्य बार काउंसिल के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। प्रस्ताव में कहा गया है, निश्चित रूप से विधायिका की ओर से बनाए गए कानून सही मायने में लोकतांत्रिक होते हैं क्योंकि वे पूरी तरह से परामर्श प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद बनाए जाते हैं और समाज के सभी वर्गों के विचारों को दर्शाते हैं। विधायिका जनता के प्रति जवाबदेह है।
दायर हुईं है 15 याचिकाएं
बता दें कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 15 याचिकाएं दायर हुई हैं। इनमें कहा गया है कि कानूनी मान्यता के बिना कई समलैंगिक जोड़े अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकते हैं, जैसे कि चिकित्सा सहमति, पेंशन, गोद लेने या यहां तक कि क्लब सदस्यता से जुड़े अधिकार। जिन पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही है।
मोदी सरकार ने याचिका को दी है चुनौती
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार इसका विरोध कर रही है। केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं की अपील को चुनौती दी है। सरकार ने इस आधार पर चुनौती दी है कि समलैंगिक विवाह “पति, पत्नी और बच्चों के साथ भारतीय परिवार की अवधारणा के साथ तुलना योग्य नहीं हैं।”
सरकार ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक हलफनामे में कहा था कि ये याचिकाएं केवल शहरी अभिजात्य विचारों को दर्शाती हैं, जिसकी तुलना उपयुक्त विधायिका से नहीं की जा सकती है, जो व्यापक पहुंच के विचारों और आवाजों को दर्शाती है और पूरे देश में फैली हुई है। शादी एक सामाजिक संस्था है और इस पर किसी नए अधिकार के सृजन या संबंध को मान्यता देने का अधिकार सिर्फ विधायिका के पास है और यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।