नईदिल्ली : कर्नाटक को आखिरकार आज अपना मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री मिल ही गया। आज कांग्रेस के दिग्गज नेता सिद्धारमैया ने कर्नाटक के 30वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। वहीं, डीके शिवकुमार ने नई सरकार में उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इसके अलावा आठ से अधिक विधायकों को सिद्धारमैया मंत्री मंडल में शामिल किया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता कि इस नई सरकार के शपथ समारोह में कौन से दिग्गज नेता शामिल हुए और कौन से नेता कन्नी काटते नजर आए।
विपक्षी एकता को झटका
दरअसल, समारोह को एकजुट दिखाने के मंच के रूप में भी देखा जा रहा था। क्योंकि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने के लिए विपक्षी एकता को दर्शाना जरूरी है। हालांकि, कुछ विपक्षी नेताओं को तो न्यौता ही नहीं दिया गया था I
ये नेता हुए शामिल
राज्य के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन, मक्कल नीडि माईम के प्रमुख कमल हसन, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू शामिल हुए। वहीं, बिहार के उप मुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव, कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी भी मौके पर नजर आए। हालांकि, समारोह में सोनिया गांधी उपस्थित नहीं हुईं।
न्यौता के बाद भी नहीं पहुंचे ये लोग
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने खुद विपक्ष के कई नेताओं को शपथ समारोह में आने का न्यौता दिया था। हालांकि, न्यौता के बाद भी बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार, समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, नेशनल कांफ्रेस के नेता फारुक अब्दुल्ला, शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे, सीपीआई महासचिव डी राजा, सीपीआईएम के महासचिव सीताराम येचुरी समारोह में शामिल नहीं हुए।
इन नेताओं को नहीं दिया निमंत्रण
वहीं, कई नेता तो ऐसे थे, जिन्हें बुलाया ही नहीं गया था। उनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के सीएम केसीआर, केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन, आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी, ओडिशा के मुख्यमंत्री के अलावा बसपा चीफ मायावती और बीजद चीफ नवीन पटनायक शामिल हैं।
कांग्रेस की हुई आलोचना
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को निमंत्रण न देने पर सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) ने कांग्रेस की आलोचना भी की। एलडीएफ के संयोजक ईपी जयराजन ने कहा था कि कांग्रेस के इस कदम ने साबित कर दिया है कि वह भाजपा के खिलाफ देश की धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताकतों को एक साथ लाने के मिशन को पूरा नहीं कर सकती है।