कोरबा। रोजगार, बसाहट और मुआवजा से जुड़ी समस्याओं को लेकर 15 गांव के भू-विस्थापित एसईसीएल से नाराज हैं. लम्बा समय बीतने पर भी उनकी समस्या यथावत है. विस्थापित समुदाय ने भरी गर्मी में रैली निकाली और प्रशासन को ज्ञापन सौंपा. इसमें ग्रामीणों ने कहा कि, 20 दिन के भीतर मसला हल नहीं किया गया तो वे कुसमुंडा खदान को बंद करने के लिए बाध्य होंगे. इसकी जिम्मेदारी प्रशासन और प्रबंधन की होगी.
बता दें कि, भू-विस्थापित समुदाय ने हसदेव पुल से कोरबा जिला कार्यालय तक पदयात्रा निकाली. इसमें प्रभावित पुरुष और महिलाओं की भागीदारी थी. गर्मी की परवाह नहीं करते हुए ये लोग बैनर-पोस्टर के साथ रैली का हिस्सा बने. रास्ते भर ये सभी आम लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय बने रहे कि, आखिर इतनी धूप में ये सब आखिर क्यों किया जा रहा है. इस रैली में 15 गांव के लोग शामिल हुए.
भू-विस्थापित आरोप लगाते हैं कि, कोल इंडिया की एक जैसी नीति होने पर भी कोरबा जिले में कंपनी मनमानी पर उतारू हैं. जमीन अर्जन के मॉमलों में कहीं 10 लाख तो कहीं 16 लाख का मुआवजा देकर लोगों में फूट डाली जा रही है. इतना ही नहीं किसी को मुआवजा नहीं मिला तो कोई रोजगार और बसाहट के लिए भटक रहा है. कई लोगों को रहने के लिए जगह तो दी गई है,लेकिन मूलभूत सुविधाए नदारद हैं.
छत्तीसगढ़ में ज्यादा कोयला उत्पादन करने वाली खदानों में कुसमुंडा का नाम भी शामिल है. ऐसे में भूविस्थापितों के द्वारा आगामी दिनों में कोयला खनन पर बाधा उत्पन्न करने की चेतावनी देना प्रबंधन के लिए सिरदर्द ही है. इस तरह की परिस्थितियों से बचने के लिए एसईसीएल क्या उपाय करता है, इस पर सभी की नजर टिकी हुई है.