छत्तीसगढ़

अगस्त तक भारत हो पाएगा मैला ढोने की प्रथा से मुक्त? 246 जिलों ने नहीं दी है रिपोर्ट

नईदिल्ली : सीवर की सफाई हाथों से करने की प्रथा को रोकने के लिए केंद्र सरकार पिछले 8 सालों से काम कर रही है। सीवर सफाई के दौरान होने वाली मौतों को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने इंसानों द्वारा मेला की सफाई प्रथा को समाप्त करने के लक्ष्य पर काम शुरू किया था, इसके तहत अगस्त 2023 तक पूरे देश में इंसानों द्वारा की जाने वाली हाथों से मैला सफाई को खत्म करना था, लेकिन डेडलाइन निकट आने के बाद भी देश के दो तिहाई जिलों ने अब तक खुद को हाथ से मैला सफाई की प्रक्रिया से मुक्त होने की घोषणा नहीं की है। आंकड़ों के मुताबिक,766 जिलों में से 520 जिलों ने खुद को मैला ढोने से मुक्त घोषित कर दिया है, जबकि 246 जिलों ने अभी तक रिपोर्ट जमा नहीं की है।

यह खुलासा सामाजिक अधिकारिता व न्याय मंत्रालय द्वारा आयोजित राज्यों और केंद्रीय निगरानी समिति की आठवीं बैठक में हुआ है। इस बैठक में बुधवार को देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। तीन साल के कोरोना काल के बाद हो रही बैठक इसलिए भी अहम है, क्योंकि आम बजट में हाथ से मैला सफाई को रोकने के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं।

सामाजिक न्याय मंत्री वीरेंद्र कुमार की अध्यक्षता में केंद्रीय निगरानी समिति की आठवीं बैठक में इस मामले पर चर्चा हुई। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मैं संबंधित राज्यों से एक रिपोर्ट सौंपने के लिए कहेंगे। हम अगस्त 2023 तक भारत को मैला ढोने की प्रथा से मुक्त घोषित करने के अपने दृष्टिकोण के लिए प्रतिबद्ध हैं।

इसके अनुसार कोई भी सफाई कर्मी बिना पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था और ऑक्सीजन किट के बिना सीवर में नहीं उतरेगा, इन कामों में ज्यादातर मशीनों की और तकनीकों की मदद लेने की बात की गई है। इसके लिए सरकार ने बकायदा एक योजना भी लॉन्च की है। जिसे नमस्ते योजना कहा गया है। इसके तहत ऐसे सफाई कर्मियों को प्रशिक्षण देकर स्किल वर्कर की तरह प्रयोग में लाने की बात की गई है।

समिति के बैठक के बाद सरकार द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक देश के 766 जिलों में से केवल 520 जिलो ने खुद को इंसानों द्वारा मैला सफाई करने की प्रक्रिया से मुक्त होने का दावा किया है। बाकी जिलों ने अब तक कोई जानकारी नहीं दी है, जबकि सरकार का कहना है यदि राज्य और जिले उन्हें सूचित करेंगे तो वह ऐसे कर्मियों को प्रशिक्षण दे सकते हैं। अस्वच्छ शौचालयों को स्वच्छ बना सकते हैं, और ऐसी कर्मियों का पुनर्वास कर सकते हैं।

उन्हें आर्थिक सहायता देकर सक्षम बनाया जा सकता है, सरकार के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश के 52 जिलों में से केवल 36 जिलों ने अब तक इस बाबत घोषणा की है। वहीं महाराष्ट्र में 36 में से 21 जिलों ने अपनी रिपोर्ट सौंपी है। देश के 14 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में सफाई कर्मचारियों से जुड़े आयोग गठित नहीं हुए हैं।

मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और पुनर्वास अधिनियम- 2013 के अनुसार देश में इंसानों द्वारा मेला सफाई पर रोक है। इसके लिए हर राज्य में राज्य सफाई कर्मचारी आयोग राज्य निगरानी समिति और जिला निगरानी समिति के गठन पर जोर दिया गया है लेकिन 10 साल गुजरने के बाद भी तमाम राज्यों ने इस दिशा में कोई भी कार्य नहीं किया है।