नईदिल्ली : मिजोरम सरकार को राज्य में शरण लिए मणिपुर के करीब 12600 लोगों के लिए केंद्र सरकार से अब भी राहत पैकेज का इंतजार है। राज्य के गृह सचिव एच लालेंगमाविया ने इस बारे में जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने मई में इन शरणार्थियों के लिए केंद्र से तात्कालिक राहत के रूप में 10 करोड़ रुपये मांगे थे। हालांकि राज्य को अभी तक इस मद में केंद्र से कोई मदद नहीं मिली है।
गृह आयुक्त और सचिव लालेंगमाविया ने कहा कि राज्य सरकार ने मणिपुर के आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को राहत प्रदान करने के लिए स्वयं धन जुटाया है। इस दौरान उन्होंने उम्मीद जताई कि केंद्र जल्द इस मद में राशि स्वीकृत करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि मिजोरम प्रशासन ने विधायकों, सरकारी कर्मचारियों, बैंकरों और अन्य लोगों से इस लिए दान के रूप में सहायता मांगी है।
उन्होंने कहा कि हमने संग्रह पूरा कर लिया है। हालांकि मुझे अभी तक कुल एकत्रित राशि की रिपोर्ट नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि शुक्रवार तक मणिपुर से कुल मिलाकर 12,611 लोग मिजोरम में प्रवेश कर चुके हैं। उनमें से 4,440 ने कोलासिब जिले में, 4,265 ने आइजोल में और 2,951 ने सैतुअल में शरण ली है। शेष 955 लोग चम्फाई, ममित, सियाहा, लॉन्गत्लाई, लुंगलेई, सेरछिप, ख्वाज़ावल और हनाथियाल जिलों में रह रहे हैं।
बता दें कि मिजोरम सरकार और ग्रामीण अधिकारियों ने आइजोल, कोलासिब और सैतुअल में 38 राहत शिविर बनाएं हैं। राज्य सरकार, गैर सरकारी संगठनों, चर्चों और ग्रामीण इन विस्थापित लोगों को भोजन और अन्य बुनियादी चीजें प्रदान कर रहे हैं।
बता दें कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मैतई समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पूर्वोत्तर राज्य के पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आयोजन किया गया था, जिसके बाद हिंसा भड़क उठी थी। हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है और कई लोग घायल हुए हैं।
इन झड़पों से पहले आरक्षित वन भूमि से कुकी ग्रामीणों को बेदखल करने को लेकर तनाव पैदा हो गया था, जिसके कारण कई छोटे आंदोलन हुए थे। मणिपुर की आबादी में मैतई समुदाय की हिस्सेदारी करीब 53 फीसदी है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। नगा और कुकी सहित आदिवासी आबादी का 40 फीसदी हिस्सा हैं और पहाड़ी जिलों में रहते हैं।