नईदिल्ली : नाबालिगों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने कई निर्देश दिए हैं. जिसमें कहा गया है कि नाबालिगों के बीच सहमति से बने यौन संबंधों के मामले में रिपोर्ट दर्ज करने के लिए नाबालिग पिता के नाम की जरूरत नहीं है, नाबालिग युवक के नाम के बिना ही लड़की के गर्भ को गिराया जा सकता है. ऐसा उस सूरत में किया जाए जब नाबालिग लड़की या फिर उसके परिजन पॉक्सो के तहत कानूनी तौर पर आगे नहीं बढ़ना चाहते हों.
‘अयोग्य डॉक्टर के पास जाती है नाबालिग’
जस्टिस एन आनंद वेंकटेश और जस्टिस सुंदर मोहन की बेंच ने निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी जिक्र किया और कहा कि कई मामलों में रिपोर्ट के लिए नाबालिग लड़के यानी जिसने नाबालिग लड़की को गर्भवती किया है, उसका नाम दर्ज करने पर जोर दिया जाता है. ऐसे में नाबालिग लड़की और उसका परिवार किसी ऐसे डॉक्टर के पास चला जाता है, जो योग्य नहीं है. क्योंकि वहां बिना नाम दर्ज किए ही गर्भपात किया जा सकता है.
पोटेंसी टेस्ट को लेकर भी टिप्पणी
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मद्रास हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि रेप पीड़ितों का टू-फिंगर टेस्ट किसी हाल में नहीं किया जा सकता है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर पहले ही फैसला दे चुका है. अगर डॉक्टरों को इस बात का पता लगाने की जरूरत पड़ती है कि हाइमन में कोई चोट लगी है या नहीं तो इसके लिए किसी एक उपकरण का इस्तेमाल किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि यौन अपराध के मामलों में पोटेंसी टेस्ट को भी बार-बार करने की जरूरत नहीं है. पोटेंसी टेस्ट किसी भी शख्स की नपुंसकता को जांचने के लिए किया जाता है.
पोटेंसी टेस्ट पर मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट को इस बात को ध्यान में रखना होगा कि यौन अपराध करने वाला शख्स ताकतवर है. ऐसे में अगर आरोपी शख्स बचने के लिए नपुंसकता का बहाना बनाता है तो ये साबित करने का दबाव उसी आरोपी पर होगा. हम ये साफ करते हैं कि आरोपी शख्स की सामान्य जांच को पोटेंसी टेस्ट के साथ भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए.