छत्तीसगढ़

बिलकिस बानो केस: दोषी रिहाई के बाद कर रहा है वकालत, सुप्रीम कोर्ट के जज भी हुए हैरान, कहा- इसका मतलब ये नहीं कि…

नईदिल्ली : बिलकिस बानो केस के दोषियों में से एक दोषी इनदिनों वकालत का काम कर रहा है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी हैरानी जताई है. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि उसने बिलकिस बानो केस के दोषियों की रिहाई पर विचार करने का जिम्मा गुजरात सरकार को दिया था, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि रिहाई होने के बाद कोई उसे चुनौती नहीं दे सकता. कोर्ट ने यह टिप्पणी उस समय की जब गुजरात सरकार ने यह कहा कि उसने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही रिहाई पर विचार किया था और दोषियों की रिहाई का फैसला लेने से पहले सभी कानूनी प्रक्रिया पूरी की.

2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो का गैंगरेप करने और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या करने के 11 दोषियों को पिछले साल 15 अगस्त को रिहा कर दिया गया था. उम्रकैद की सजा पाने वाले ये लोग जेल में लगभग 15 साल बिता चुके थे. इनकी रिहाई का फैसला लेते समय 1992 के जेल नियमों का इस्तेमाल किया गया क्योंकि यह आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया था. इन नियमों में 14 साल की कैद के बाद रिहाई पर विचार का प्रावधान है.

दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका दायर  

इन लोगों की रिहाई के खिलाफ बिलकिस बानो के अलावा सीपीएम नेता सुभाषिनी अली, सामाजिक कार्यकर्ता रूपरेखा वर्मा और टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा समेत कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की. मामले में जस्टिस बी वी नागरत्ना और उज्ज्वल भुइयां की बेंच के सामने याचिकाकर्ता अपनी दलीलें रख चुके हैं. (गुरुवार, 24 अगस्त) गुजरात सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसीटर जनरल एस वी राजू ने भी पक्ष रखा. इसके अलावा 11 में से 2 दोषियों ने भी याचिकाओं का विरोध किया. मामले में अगली सुनवाई 31 अगस्त को दोपहर 2 बजे होगी.

निचली अदालत में वकालत कर रहा दोषी

बिलकिस बानो केस के दोषी राधेश्याम की तरफ से पेश वकील ऋषि मल्होत्रा ने जजों को बताया कि उनका मुवक्किल अपने जेल में अच्छे चाल-चलन के आधार पर रिहा हुआ है. उसने 14 साल से अधिक समय जेल में बिताया है. अब वह निचली अदालत में वकील बन गया है. वह मोटर दुर्घटना क्लेम के मामलों में वकालत करता है. मल्होत्रा यह कहना चाह रहे थे कि रिहाई के 1 साल बाद किसी को दोबारा जेल में डालना सही नहीं होगा, लेकिन जजों ने इस बात पर हैरानी जताई कि संगीन अपराध का सजायाफ्ता व्यक्ति वकालत का काम कर रहा है.

‘रिहा होने के बाद खत्म नहीं होता दोष’

जस्टिस भुइयां ने सवाल किया कि क्या कोई सजायाफ्ता वकालत कर सकता है? इस पर वकील सजा पूरी हो जाने का हवाला दिया, लेकिन जस्टिस नागरत्ना ने उन्हें रोकते हुए कहा कि रिहाई से जुड़ा प्रशासनिक आदेश किसी व्यक्ति को सजा पूरी होने से पहले जेल से बाहर ला सकता है, लेकिन उसके दोष को खत्म नहीं कर सकता.

‘रिहाई के बाद जेल भेजना सही नहीं’

मामले के एक और दोषी विपिन जोशी के लिए पेश वरिष्ठ वकील सोनिया माथुर ने कहा कि बिलकिस के गुनहगारों की रिहाई में अगर कोई दोष है तो इसका जवाब राज्य सरकार देगी, लेकिन कुछ तकनीकी खामी के चलते किसी को रिहाई के बाद फिर से जेल भेजना सही नहीं है. कानून सबको सुधरने और समाज में दोबारा शामिल होने का मौका देता है.  यह नहीं कहा जा सकता कि कानूनी तरीके से अगर दोषी रिहा हुए हैं, तो इससे बिलकिस के किसी अधिकार का हनन हुआ है.