नईदिल्ली : लगातार चुनाव हार रही कांग्रेस में जान फूंकने के लिए राहुल के सॉफ्ट हिंदुत्व पर पार्टी के ही वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने रायता फैला दिया है. अय्यर ने कहा है कि अयोध्य में राम मंदिर का शिलान्यास करना राजीव गांधी का गलत फैसला था.
बाबरी विध्वंस के वक्त देश के प्रधानमंत्री रहे पीवी नरसिम्हा राव की भूमिका पर भी अय्यर ने सवाल उठाया है. उन्होंने राव को बीजेपी का पहला प्रधानमंत्री बताया है. अय्यर ने यह बयान अपनी आत्मकथा ‘मेमोयर्स ऑफ ए मावेरिक- द फर्स्ट फिफ्टी इयर्स (1941-1991)’ के विमोचन पर दिया है.
मणिशंकर के बयान को बीजेपी ने हाथों-हाथ लपकते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा है. बीजेपी ने अय्यर के बयान को नरसिम्हा राव के अपमान से भी जोड़ा है. राव के पोते ने भी कांग्रेस हाईकमान पर हमला किया है.
जानकारों का कहना है कि राव के जरिए सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि बनाने में जुटी कांग्रेस के लिए मणिशंकर का बयान नुकसानदेह साबित हो सकता है. वैसे अय्यर पहले नेता नहीं हैं, जो अपनी ‘किताब बेचने’ के लिए पार्टी की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं. कांग्रेस में ऐसे नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है.
कांग्रेस, सॉफ्ट हिंदुत्व का प्लान और राव की भूमिका
2014 और 2019 में लोकसभा और 2022 में 5 राज्यों की विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर आगे बढ़ने का फैसला किया. हार की समीक्षा के लिए बनी एंटोनी कमेटी ने यह सुझाव दिया था. सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति के तहत ही कांग्रेस के नेता मंदिर के चक्कर लगाने लगे.
मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने तो पार्टी कार्यालय में ही हवन-पूजन करा दिया. उदयपुर के चिंतन शिविर में कांग्रेस ने नरसिम्हा राव के बड़े-बड़े पोस्टर लगवाए. कांग्रेस के किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में पहली बार नरसिम्हा को जगह मिली.
1992 में बाबरी विध्वंस के समय से ही राव की भूमिका सवालों के घेरे में रही है. कांग्रेस के एक गुट का दावा रहा है कि बाबरी विध्वंस में राव की मौन सहमति थी.
मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने अपनी किताब में दावा किया था कि राव के निधन के वक्त सोनिया गांधी के कहने पर दिल्ली में उनका अंतिम संस्कार नहीं हुआ. हालांकि, कांग्रेस ने कभी भी आधिकारिक तौर पर राव को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की.
कांग्रेस के पोस्टर पर राव की वापसी को जानकार सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि को मजबूती के तौर पर देख रहे थे. आने वाले वक्त में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उन राज्यों में 90 प्रतिशत के आसपास हिंदू आबादी है.
जनगणना 2011 के अनुसार मध्य प्रदेश में 90.8%, राजस्थान में 88.49%, और छत्तीसगढ़ में 93.25% हिंदू आबादी है. मध्य प्रदेश बीजेपी-जनसंघ के लिए ऐसा पहला राज्य था, जहां 1977 में पार्टी ने सरकार बनाई थी. कांग्रेस के सामने छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार बचाने की चुनौती है, वहीं पार्टी मध्य प्रदेश में वापसी की कोशिशों में जुटी है.
किताब लिखकर मुश्किल बढ़ाने वाले कांग्रेसियों की कहानी
1. सैफुद्दीन सोज- 2018 में पूर्व केंद्रीय मंत्री और जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के बड़े नेता सैफुद्दीन सोज ने कश्मीर पर एक ऑटोबायोग्राफी लिखी. किताब विमोचन से पहले सोज ने एक बयान में यह कह दिया कि जब तक कश्मीर अलग देश नहीं बनेगा, तब तक उसे आजादी नहीं मिल पाएगी.
सोज के किताब पर खूब हंगामा हुआ. कांग्रेस को मीडिया के सामने आकर सफाई देनी पड़ी. कांग्रेस के तत्कालीन मीडिया प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि किताब बेचने के लिए कुछ लोग पब्लिसिटी पाना चाहते हैं और इसके लिए सस्ते हथकंडा अपना रहे हैं.
कांग्रेस की प्रतिक्रिया के बाद मनमोहन सिंह और पी चिदंबरम ने किताब विमोचन के कार्यक्रम से खुद को दूर कर लिया.
2. नटवर सिंह- पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने 2014 में अपनी आत्मकथा वन लाइफ इज नॉट एनफ लिखी. किताब विमोचन से पहले नटवर सिंह ने मीडिया को कई इंटरव्यू दिए. इसमें सिंह ने सोनिया गांधी को तुनकमिजाजी और अहंकारी बता दिया.
नटवर ने अपनी आत्मकथा में दावा किया कि सोनिया गांधी कोई त्याग की मूर्ति नहीं हैं. वे प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं, लेकिन राहुल गांधी ने उन्हें पीएम बनने से रोक दिया.
नटवर ने यहां तक दावा किया कि किताब से गांधी परिवार से जुड़े अंश को हटाने के लिए सोनिया और प्रियंका उनके घर आई थीं. नटवर के सियासी दावे पर मनमोहन सिंह को बयान देना पड़ा था.
नटवर की गिनती इंदिरा के जमाने से ही गांधी परिवार के करीबी नेताओं में होती थी. 2004 में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो नटवर सिंह को विदेश मंत्री बनाया गया, लेकिन एक विवाद की वजह से उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी.
3. सलमान खुर्शीद- मनमोहन सरकार में मंत्री रहे सलमान खुर्शीद भी अपनी आत्मकथा के जरिए कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा चुके हैं. खुर्शीद ने साल 2021 में सनराइज ओवर अयोध्या के नाम से आत्मकथा लिखी. इसमें खुर्शीद ने हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हरम जैसे कट्टरपंथी समूहों से कर दी.
बीजेपी ने इसे तुरंत मुद्दा बना लिया और जगह-जगह पर कांग्रेस पार्टी और खुर्शिद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. चूंकि किताब यूपी चुनाव से ठीक पहले आई थी, इसलिए बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया. कांग्रेस की ओर से उस वक्त प्रियंका गांधी ने खुद मोर्चा संभाला.
गांधी ने कहा कि किताब में लिखी बातें खुर्शीद की निजी सोच है. ये जरूरी नहीं कि हर कोई उससे इत्तेफाक रखे. यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके खुर्शीद मनमोहन सरकार में कानून और विदेश मंत्री थे.
4. प्रणव मुखर्जी- पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा द प्रेसिडेंसियल ईयर्स साल 2021 में बंगाल चुनाव से ठीक पहले आई. मुखर्जी के इस किताब के कुछ दावों ने कांग्रेस हाईकमान की नींद उड़ा दी. किताब में दावा किया गया कि 2014 में सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार बचाने में व्यस्त थे और इस वजह से कांग्रेस का राजनीतिक फोकस बिखड़ गया.
मुखर्जी ने एक बड़ा दावा करते हुए कहा कि कांग्रेस इसलिए चुनाव हारी, क्योंकि मनमोहन सिंह अपने सांसदों से नहीं मिलते थे. उन्होंने किताब में दावा किया कि साल 2004 में अगर मैं प्रधानमंत्री बनता तो 2014 के चुनाव में कांग्रेस नहीं हारती. मेरे राष्ट्रपति बनने के बाद सोनिया गांधी पार्टी को ठीक से हैंडल नहीं कर पा रही थीं.
2004-12 तक कांग्रेस के सियासी गलियारों में प्रणब मुखर्जी को सरकार का संकटमोचक कहा जाता था.