छत्तीसगढ़

IND vs PAK का सबसे रोमांचक मैच, पाकिस्तान टीम पर अकेले भारी पड़े थे दादा; तितर-बितर हुई थी ODI की रिकॉर्ड बुक

नई दिल्ली। उस मैच में रोमांच की सारी हदें पार हुई थीं। आकिब जावेद, सकलैन मुश्ताक जैसे सरीखे गेंदबाज भी कोलकाता के प्रिंस यानी सौरव गांगुली के आगे पानी मांगते नजर आए थे। ऋषिकेश कानिटकर के बल्ले से निकले उस चौके ने नया इतिहास कायम किया था। वनडे क्रिकेट की रिकॉर्ड बुक तितर-बितर हुई थी और उस दौर में एकदिवसीय क्रिकेट का सबसे बड़ा टारगेट टीम इंडिया ने चेज कर डाला था। उस ऐतिहासिक जीत की कहानी कैसे लिखी गई थी I

पाकिस्तान ने रखा था 315 रन का लक्ष्य

वो साल 1998 का था और तारीख थी 18 जनवरी। सिल्वर जुबली कप के तीसरे फाइनल में भारत और पाकिस्तान (IND vs PAK) की टक्कर थी। पाकिस्तान ने पहले बल्लेबाजी करते हुए भारतीय गेंदबाजी अटैक की जमकर धुनाई की थी और बारिश से प्रभावित मैच में 48 ओवर में 5 विकेट खोकर स्कोर बोर्ड पर 314 रन लगा डाले थे। सईद अनवर ने तूफानी अंदाज में खेलते हुए 140 रन की यादगार पारी खेली थी। टीम इंडिया के सामने 315 रन का लक्ष्य था, जो वनडे क्रिकेट में 1998 तक एक बार भी चेज नहीं हो सका था।

दादा ने मचाया था गदर

लक्ष्य बड़ा था, तो टीम इंडिया को शुरुआत भी धमाकेदार चाहिए थी। टीम की नैया को पार लगाने का जिम्मा उस दिन सौरव गांगुली ने अपने कंधों पर उठाया था। दादा ने सचिन तेंदुलकर के साथ मिलकर भारत को धांसू शुरुआत दी और पहले विकेट के लिए 8.2 ओवर में ही 71 रन कूट डाले। मास्टर ब्लास्टर 26 गेंदों में 41 रन बनाकर आउट हुए।इसके बाद गांगुली को रॉबिन सिंह का भी अच्छा साथ मिला, जिन्होंने 82 रन की दमदार पारी खेली। हालांकि, उस दिन अपनी बल्लेबाजी से अगर किसी ने महफिल लूटी थी, तो वो दादा ही थे। 138 गेंदों पर खेली गई 124 रन की वो दिल लुभाने वाली पारी हर किसी को दीवाना बना गई थी। गांगुली जब आउट हुए तो भारतीय टीम का स्कोर 274 रन था। यानी जीत अभी भी दूर थी।

सांसें रोक देना वाला आखिरी ओवर

आखिरी ओवर में जीत के लिए टीम इंडिया को 9 रन की दरकार थी। ऋषिकेश कानिटकर और जवागल श्रीनाथ की जोड़ी क्रीज पर थी। पाकिस्तान की तरफ से लास्ट ओवर उस समय के दिग्गज स्पिनर सकलैन मुश्ताक डाल रहे थे, जो तीन विकेट पहले ही अपने नाम कर चुके थे। ओवर की पहली गेंद पर सिर्फ एक रन बनता है। दूसरी बॉल को श्रीनाथ हवा में मारते हैं और दोनों बल्लेबाज भागकर दो रन चुरा लेते हैं।

अब 6 रन की दरकार थी और गेंदें बची थीं चार। जवागल श्रीनाथ अगली बॉल को फिर से हवा में उड़ा बैठते हैं, लेकिन बॉल तीन फील्डर्स के बीच में गिरती है और दो रन मिल जाते हैं। दो गेंदों पर भारत को जीत के लिए तीन रन की दरकार होती है। हालांकि, सकलैन मुश्ताक के हाथ से निकली अगली ही बॉल पर कानिटकर जोरदार चौका लगाते हुए भारत को चैंपियन बना देते हैं। भारतीय खेमे में इस चौके के साथ ही जश्न की शुरुआत हो जाती है और पूरा स्टेडियम टीम इंडिया के नारों से गूंज उठता है। ढाका में उस रात नया इतिहास कायम हुआ था, जिसके सूत्रधार कई खिलाड़ी रहे थे।