नई, दिल्ली। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू को शनिवार सुबह सीआईडी की आर्थिक अपराध शाखा ने गिरफ्तार कर लिया। पूर्व मुख्यमंत्री पर आरोप है कि उनके शासन के दौरान यानी साल 2014 से लेकर 2019 के बीच आंध्र प्रदेश राज्य कौशल विकास निगम में घोटाले हुए हैं। कथित तौर पर 371 करोड़ रुपये को इस घोटाले के पूछताछ के लिए उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
वहीं, चंद्रबाबू नायडू ने अपने नवाचार में कहा, “पिछले 45 वर्षों से मैं सांस्कृतिक लोगों की सेवा के लिए निस्वार्थ भाव से काम कर रहा हूं। मैं लोगों की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पण करने की तैयारी कर रहा हूं।”
वैसे ही चंद्रबाबू नायडू आज के समय में आंध्र प्रदेश में नामांकन के नेताओं की भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन संयुक्त आंध्र प्रदेश (तेलंगाना) में सबसे लंबे समय तक पद छोड़ने वाले मुख्यमंत्री निवास का नाम दर्ज है।
ग्रेजुएशन के दौरान बढ़ी राजनीति में दिलचस्पी
चंद्रबाबू नायडू का जन्म 20 अप्रैल, 1950 को गांधीनगर के एक गांव नरवारीपल्ली में हुआ था। उनके पिता का नाम एन. खर्जुरा नायडू और मां का नाम अम्मा था। उनके गांव में कोई स्कूल नहीं था इसलिए नायडू ने कक्षा पांच तक शेषपुरम में प्राइमरी स्कूल और कक्षा 10 तक चंद्रगिरि सरकारी हाई स्कूल में पढ़ाई की।
छात्र जीवन यानी मास्टर डिग्री की पढ़ाई के दौरान वो राजनीति की ओर आकर्षित हुए। आपातकाल के बाद वो साल 1978 में कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने लोकल लेवल पर कांग्रेस के युवा अध्यक्ष के तौर पर काम करना शुरू किया। वो संजय गांधी के समर्थक भी थे।
28 साल की उम्र में बने विधानसभा सदस्य
इसके बाद महज 28 साल की उम्र में वो चंद्रगिरी निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा सदस्य बन गए। वो राज्य के सबसे कम उम्र के विधानसभा सदस्य के साथ मंत्री भी बने। चंद्रबाबू नायडू ने बतौर राज्य मंत्री साल 1980 से लेकर 1983 के बीच अभिलेखागार, छायांकन, तकनीकी शिक्षा और लघु सिंचाई सहित विभिन्न विभागों का कार्यभार संभाला।
एनटी रामाराव के साथ की नई राजनीतिक पारी की शुरुआत
नायडू राज्य के सिनेमैटोग्राफी मंत्री भी थे। इसी वजह से वो तेलुगु सिनेमा के लोकप्रिय फिल्म अभिनेता एनटी रामाराव के संपर्क में आए। दोनों के बीच मुलाकात पारिवारिक रिश्तों में बदल गई। साल 1981 के सितंबर महीने में उन्होंने एनटी रामाराव की दूसरी बेटी भुवनेश्वरी से चंद्रबाबू ने शादी रचाई।
जब ससुर के खिलाफ चुनावी मैदान में खड़े हो गए दामाद
साल 1982 में एनटी रामाराव ने तेलुगु देशम पार्टी (TDP) का गठन किया। इसके बाद अगले साल ही इस पार्टी को राज्य में सफलता मिल गई। दिलचस्प बात है कि वो शुरुआत में एनटी रामाराव की पार्टी में शामिल नहीं हुए। इतना ही नहीं उन्होंने कांग्रेस में रहते हुए अपने ससुर के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत भी की।हालांकि, उन्हें चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। हार के बाद उन्होंने कांग्रेस को त्याग कर तेलुगु देशम पार्टी को अपना राजनीतिक घर बना लिया। साल 1986 में नायडू को पार्टी का महासचिव नियुक्त किया गया।
ससुर के खिलाफ दामाद ने क्यों किया बगावत?
इसके बाद 1994 में कुप्पम निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बनने के बाद वो एनटी रामाराव के मंत्रालय में वित्त और राजस्व मंत्री बनाए गए। एनटी रामाराव के बाद पार्टी में सबसे ज्यादा चंद्रबाबू नायडू की सुनी जाती थी। बता दें कि 1993 में एन टी रामाराव ने 33 वर्षीय तेलुगु लेखिका लक्ष्मी शिव पार्वती से दूसरी शादी रचाई थी।भले ही पार्टी में चंद्रबाबू नायडू की हैसियत नंबर-2 की थी, लेकिन एन टी रामाराव की दूसरी पत्नी की कोशिश थी कि पार्टी में उनकी पकड़ मजबूत हो। ये बात पार्टी के कई नेताओं को नागवार गुजरा।
नतीजा हुआ पार्टी में विद्रोह!
इस विद्रोह की पटकथा एन टी रामराव के मित्र चंद्रबाबू नायडू ने ही लिखी थी। विद्रोह में चंद्रबाबू नायडू के साथ करीब 150 से अधिक प्रमुख विधायक कंधे से कंधा का लगाकर खड़े हो गए। इस विद्रोह में एन टी रामाराव के बेटों ने भी चंद्रबाबू नायडू का साथ दिया था।
1994 विधानसभा चुनाव में 216 लाभ प्राप्त करने वाली टीडीपी के नेता के पास मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा। पार्टी के टूटने पर एन टी रामाराव को गहरा सदमा लगा और मुख्यमंत्री की कुर्सी छूटने के पांच महीने बाद ही उनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।
चंद्रबाबू नायडू का राजनीतिक सफर
इसके बाद चंद्रबाबू नायडू की राजनीतिक यात्रा एक नये आयाम पर पहुंची। वो साल 1995 से लेकर साल 2004 तक सीएम रहे। इसके बाद वे 2004 से लेकर 2014 तक विधानसभा में नामांकन की भूमिका में रहे। 2014 विधानसभा में टीडीपी की एक बार फिर सत्ता में वापसी हुई।