छत्तीसगढ़

भ्रष्‍ट अधिकारियों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, 2014 से पहले के मामलों में गिरफ्तारी से संरक्षण की दलील ठुकराई

नईदिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्‍ट अधिकारियों को लेकर महत्वपूर्ण फैसला दिया है. इस फैसले के बाद कोई अधिकारी अपने खिलाफ दर्ज पुराने मुकदमे को यह कह कर चुनौती नहीं दे सकता कि उसे सरकार से इजाजत लिए बिना दर्ज किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने साफ कर दिया है कि 2014 से पहले भी उनके खिलाफ भ्रष्‍टाचार का मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार करने के लिए सरकार की इजाजत जरूरी नहीं थी.

2014 का फैसला क्या था?

2014 में सुप्रीम कोर्ट ने उस कानूनी प्रावधान को निरस्त किया था, जिसके चलते सीबीआई को वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ जांच या गिरफ्तारी से पहले सरकार की अनुमति लेनी पड़ती थी. दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (DSPE Act) में 2003 में जोड़ी गई धारा 6A में यह व्यवस्था थी कि ज्वाइंट सेक्रेटरी और इससे ऊंचे पद वाले अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होगी. 2014 में ‘सुब्रमण्यम स्वामी बनाम सीबीआई निदेशक’ मामले में दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को रद्द कर दिया था.

क्या है मुख्य मामला?

दिल्ली में चीफ डिस्ट्रिक्ट मेडिकल ऑफिसर के पद पर कार्यरत आरआर किशोर को सीबीआई ने 2004 में गिरफ्तार किया था. किशोर को सीबीआई ने रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा था. उन्होंने अपनी गिरफ्तारी को दिल्ली हाईकोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी कि DSPE एक्ट के धारा 6A के तहत गिरफ्तारी से पहले सरकार की मंजूरी जरूरी थी.

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में माना कि सीबीआई को गिरफ्तारी से पहले सक्षम ऑथॉरिटी से इजाजत लेनी चाहिए थी, लेकिन हाई कोर्ट ने आरआर किशोर के खिलाफ दर्ज केस को खत्म नहीं किया. 2007 में सीबीआई ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

पुराने मामलों की स्थिति अब हुई साफ

सीबीआई की अपील पर सुनवाई पूरी होने से पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एक दूसरे मामले में बड़ा फैसला दे दिया. इस फैसले से कानून के वह प्रावधान ही खत्म हो गया, जिसके चलते अधिकारी गिरफ्तारी से संरक्षण मांगते थे, लेकिन तब इस बात पर स्पष्टता नहीं मिल पाई कि 2014 से पहले के मुकदमों पर इसका क्या असर होगा?

अब संविधान पीठ ने एकमत से यह माना है कि DSPE एक्ट के सेक्शन 6A को कभी लागू माना ही नहीं जाएगा. इसलिए 2003 से 2014 के बीच दर्ज मामलों में भी इस धारा के आधार पर कोई राहत नहीं मांगी जा सकती. जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, अभय एस ओका, विक्रम नाथ और जेके माहेश्वरी की 5 सदस्यीय संविधान पीठ के इस फैसले को भ्रष्टाचार का मुकदमा झेल रहे अधिकारियों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.