छत्तीसगढ़

मून मिशन : चंद्रमा पर पानी बनने को लेकर क्या है दावा? चंद्रयान 1 से मिले डेटा का विश्लेषण कर रहे वैज्ञानिकों ने दी अहम जानकारी

नईदिल्ली : 2008 में लॉन्च किए भारत के पहले चंद्र मिशन ‘चंद्रयान 1’ के रिमोट सेंसिंग डेटा का विश्लेषण कर रहे वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि पृथ्वी के हाई एनर्जी वाले इलेक्ट्रॉन चंद्रमा पर पानी बना रहे होंगे. अमेरिका के मनोआ स्थित हवाई विश्वविद्यालय के शोधार्थियों की टीम ने पाया है कि धरती की प्लाजमा शीट में ये इलेक्ट्रॉन मौसम प्रक्रियाओं में योगदान दे रहे हैं, जिनमें चंद्र सतह पर चट्टान और खनिजों का टूटना या विघटित होना शामिल है.

रिसर्च में पाया गया है कि शायद इलेक्ट्रॉन चंद्रमा पर पानी बनाने में मदद कर सकते हैं. शोधकर्ताओं ने कहा कि चंद्रमा पर जल की कंसंट्रेशन को जानना इसके बनने और विकास को समझने के लिए अहम है. साथ ही यह भविष्य में मानव अभियानों के लिए जल संसाधन उपलब्ध कराने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है.

15 साल पहले लॉन्च हुआ मिशन कैसे है मददगार? 

चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर जल के कणों की खोज में अहम भूमिका निभाई थी. 2008 में शुरू किया गया यह मिशन भारत का पहला चंद्रमा मिशन था. यूएच मनोआ स्कूल ऑफ ओशन के सहायक शोधकर्ता शुआई ली ने कहा, ”यह चंद्र सतह के पानी की निर्माण प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए एक प्राकृतिक प्रयोगशाला उपलब्ध करता है.” 

ली ने कहा, ‘‘जब चंद्रमा मैग्नेटोटेल के बाहर होता है तो चंद्रमा की सतह पर सौर हवा का दबाव होता है. मैग्नेटोटेल के अंदर, लगभग कोई सौर पवन प्रोटॉन नहीं हैं और पानी के लगभग नहीं बनने की उम्मीद थी.” मैग्नेटोटेल एक ऐसा क्षेत्र है जो चंद्रमा को सौर हवा से लगभग पूरी तरह से बचाता है, लेकिन सूर्य के प्रकाश फोटॉन से नहीं.

रिमोट सेंसिंग डेटा के बारे में रिसर्चर ने क्या कहा?

शुआई ली और उनके साथ शामिल हुए लेखकों ने 2008 और 2009 के बीच भारत के चंद्रयान 1 मिशन पर एक इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर, मून मिनरलॉजी मैपर डिवाइस से इकट्ठे किए गए रिमोट सेंसिंग डेटा का विश्लेषण किया है. ली ने कहा, ‘‘मुझे आश्चर्य हुआ, रिमोट सेंसिंग पर ध्यान केंद्रित करने से पता चला कि पृथ्वी के मैग्नेटोटेल में पानी का निर्माण लगभग उस समय के समान है जब चंद्रमा पृथ्वी के मैग्नेटोटेल के बाहर था.’’

बता दें कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ‘चंद्रयान 1’ को अक्टूबर 2008 में प्रक्षेपित किया था, और अगस्त 2009 तक संचालित किया गया था. मिशन में एक ऑर्बिटर और एक इम्पैक्टर शामिल था.