छत्तीसगढ़

क्या जातिगत जनगणना के आंकड़े नीतीश पर पड़ रहे भारी? लालू के बयान से उठे सवाल

नईदिल्ली : बिहार में नीतीश कुमार की जातीय जनगणना की रिपोर्ट कल तक मास्टर स्ट्रोक कही जा रही थी. वहीं लालू और कांग्रेस के एक नेता की मांग ने नीतीश को आगे होने वाली दिक्कतों का अहसास एक बार फिर करा दिया है. कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने दलित, मुस्लिम और अति पिछड़े को डिप्टी सीएम कुर्सी दिए जाने की मांग कर दी है.

वहीं लालू प्रसाद ने भी अपनी लेखनी के जरिए संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी की मांग कर इशारों ही इशारों में सीएम की कुर्सी की मांग कर डाली है. जाहिर है नीतीश कुमार की रणनीति जो भी हो, लेकिन उनकी कुर्सी को लेकर भी मांग जोरदार उठने लगी है और इसकी वजह है कुर्मियों की तीन फीसदी से भी कम आबादी.

ईबीसी बनाम ओबीसी की लड़ाई सतह पर आई ?

बिहार में ओबीसी की संख्या तकरीबन 27 फीसदी है, जबकि ईबीसी की संख्या 36 फीसदी के आसपास बताई गई है. ऐसे में पिछले 33 सालों से लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की सरकार को लेकर सवाल उठने लगे हैं. ये सच है कि ओबीसी कैटेगरी में यादवों की संख्या 14 फीसदी से ज्यादा है वहीं कुर्मी तीन फीसदी से थोड़े कम.

ऐसे में पिछले 33 सालों में महज 17 फीसदी आबादी वाली जातियों के हाथ में सत्ता रहने को लेकर अति पिछड़े समाज में प्रतिनिधित्व को लेकर आवाज तेज होने लगी. ओबीसी के बाकी बचे 10 फीसदी, अति पिछड़ों की 36 फीसदी और अनुसूचित जाति की 20 फीसदी आबादी सत्ता से वंचित रही है इसलिए इन्हें सत्ता सौंपने को लेकर भी आवाज उठनी शुरू हो गई है.

नीतीश पर हमलावर हुई बीजेपी

इतना ही नहीं बीजेपी के बिहार के पूर्व अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल तो नीतीश कुमार पर अति पिछड़े और पिछड़ों की हकमारी का भी आरोप मढ़ रहे हैं. डॉ. संजय जायसवाल के मुताबिक बाबा साहब अंबेडकर ने भले ही धर्म आधारित आरक्षण का विरोध किया था लेकिन मुस्लिम में शेखौरा, कुलहड़िया, शेरशाहबादी और ठकुराई को आरक्षण अति पिछड़े और पिछड़े कैटेगरी में दिया जा रहा है, जो मंडल कमीशन की रिपोर्ट के भी खिलाफ है. दरअसल मंडल कमीशन में पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति से धर्म परिवर्तन करने वाले को आरक्षण दिए जाने को लेकर प्रावधान है.

सरकार में अति पिछड़ा को लेकर क्यों उठ रही मांग?

दरअसल जातीय जनगणना में जाति की संख्या की रिपोर्ट आने के बाद कई जातियों के नेता अपनी आवाज को बुलंद करने लगे हैं. कुर्मी समाज से सीएम, वहीं यादव समाज का डिप्टी सीएम और 55 फीसदी ओबीसी समाज से आने वाले बिहार सरकार में मंत्रियों की संख्या ने नीतीश सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. इनमें भी 23 फीसदी यादव जाति से मंत्रियों का होना अति पिछड़ों के बीच बहस का मुद्दा बन गया है. ऐसे में अति पिछड़ों को प्रतिनिधित्व देने को लेकर सभी पार्टियां जोरदार मांग उठाने लगी है.

अब लड़ाई 68 बनाम 17 की है

राजनीतिक विश्लेषक अनुपम मिश्रा के मुताबिक, अब लड़ाई 85 बनाम 15 की नहीं है. अब लड़ाई 68 बनाम 17 की है. दरअसल 68 फीसदी में 36 फीसदी अति पिछड़ा, 20 फीसदी दलित और ओबीसी समाज का वो 11 फीसदी मतदाता जो अबतक सीएम बनने से दूर रहा है. जाहिर है नीतीश की मंशा भले ही ओबीसी को गोलबंद करने की रही हो, लेकिन पीएम और गृह मंत्री का ईबीसी से होना साथ ही एनडीए सरकार में दो ईबीसी का उपमुख्यमंत्री होना बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने में कारगर नहीं हो रहा है.

वैसे भी बीजेपी के नेता रविशंकर प्रसाद ने मीडिया से बातचीत में कह दिया कि जातीय जनगणना कराने का मकसद इन पार्टियों का परिवारवाद और भ्रष्टाचार से है. लालू के परिवार का ही सीएम, गांधी परिवार का ही पीएम, वहीं मुलायम सिंह के परिवार का ही सीएम क्यों होता है और इन पर भ्रष्टाचार के मुकदमें चल रहे हैं, ये जनता जानती है. जाहिर है बीजेपी खुद को ईबीसी की हितैषी और जातीय जनगणना की मांग करने वालों को भ्रष्टाचारी और वंशवादी करार देकर उन्हें घेरने की पुरजोर कोशिश में जुट गई है.

लालू प्रसाद का अपनी डफली अपना राग कब तक ?

लालू प्रसाद समय के हिसाब से अपने बयानों में परिवर्तन बेहद चतुराई से करते हैं. इंडिया अलायंस की पहली बैठक में राहुल गांधी को दूल्हा बनने की नसीहत देकर ही उन्होंने अपने पत्ते खोल दिए थे. वहीं तीसरी मीटिंग में सीधा राहुल को नेतृत्व करने की सलाह देकर कांग्रेस के प्रति प्रतिबद्धता जताने में पीछे नहीं हटे थे. आरजेडी और कांग्रेस की दोस्ती तीन दशक पुरानी है.

लालू प्रसाद जातीय रिपोर्ट के बाद भी संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी की मांग कर अपने बेटे की राह को भी प्रशस्त करने में जुट गए हैं. लोकसभा चुनाव तक भले ही उनकी मांग इशारों में हो, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद ये मांग साफ और साफ शब्दों में सुनाई पड़ेंगी, ये नीतीश भी जानते हैं. इसलिए नीतीश क्या फिर से जीतन राम मांझी की तरह कोई ईबीसी नेता को सत्ता में बिठाने की चाल चलकर नया दांव खेल सकते हैं, इसकी चर्चा भी जोरों पर है. जाहिर है नीतीश बिहार से रिस्पेक्टफुल एग्जीट चाहते हैं और इस कड़ी में उनका अगला कदम क्या होगा इसको लेकर संशय पार्टी में ही नहीं बल्कि पार्टी के बाहर भी है.