नईदिल्ली : दिल्ली के उपराज्यपाल विनय सक्सेना ने रोहिणी जेल में बंद ठग सुकेश चंद्रशेखर के चलाए जा रहे संगठित अपराध सिंडिकेट के मामले में भ्रष्टाचार निरोधक (PoC) अधिनियम की धारा 17ए के तहत 8 जेल अधिकारियों की भूमिका की जांच करने के लिए दिल्ली पुलिस को अनुमति दे दी. मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए उपराज्यपाल ने आर्थिक अपराध शाखा (EoW) दिल्ली पुलिस को दिल्ली जेल के 8 जेल अधिकारियों के खिलाफ आरोपों के लिए पूछताछ करने की मंजूरी दी है.
दिल्ली जेल के पहले से ही गिरफ्तार ग्रुप बी के इन 8 अधिकारियों/ कर्मचारियों के खिलाफ यह जांच, पिछले साल भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17 ए के तहत 81 अन्य जेल अधिकारियों के विरूद्ध, सुकेश चंद्रशेखर को वित्तीय लाभ के बदले जेल में सुविधा प्रदान करने की भूमिका की जांच करने के लिए उपराज्यपाल द्वारा दी गई मंजूरी के अतिरिक्त है.
किन जेल अधिकारियों से होगी पूछताछ?
जेल अधिकारी, जो अब भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत जांच का सामना करेंगे, उनके नाम हैं सुनील कुमार, सुंदर बोरा (दोनों अधीक्षक), प्रकाश चंद, महेंद्र प्रसाद सुंद्रियाल, सुभाष बत्रा (सभी उपाधीक्षक), धरम सिंह मीना, लक्ष्मी दत्त और प्रकाश चंद ( सभी सहायक अधीक्षक). जांचकर्ताओं ने बताया कि सुकेश चंद्रशेखर बिना किसी बाधा के मोबाइल फोन इस्तेमाल करने की सुविधा और एक अलग बैरक पाने के लिए हर महीने लगभग 1.50 करोड़ रुपये का भुगतान करता था.
जांच के दौरान यह पाया गया कि मकोका के प्रावधानों के तहत पहले ही गिरफ्तार इन 8 जेल अधिकारियों ने बैरक नंबर 204, वार्ड नंबर 3, जेल नंबर 10, रोहिणी में बंद ठग सुकेश चंद्रशेखर को आर्थिक लाभ के बदले अलग बैरक, गोपनीयता और मोबाइल की सुविधाएं दी थी जिससे वह जेल से संगठित अपराध सिंडिकेट चलाता था .
बैरक से ही आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देता था सुकेश
रोहिणी जेल के विभिन्न कैमरों के फुटेज जमा कर उनका विश्लेषण किया गया, सभी कर्मचारियों के ड्यूटी रोस्टर की जांच की गई, फोन विवरण का विश्लेषण किया गया और आरोपी व्यक्तियों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर जानकारी एकत्र की गई. यह पाया गया कि इन कर्मचारियों को सुकेश के बैरक में उसके कहने से तैनात किया गया था ताकि उसे उन कर्मचारियों से आर्थिक लाभ के बदले आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने में मदद मिल सके.
जेल अधिकारियों को रिश्वत देती थी पुलिस
जब्त किए गए फोन के सीडीआरएस/आईपीडीआरएस के विश्लेषण से पता चला कि सुकेश के पास लगातार दो मोबाइल फोन थे. जांच के दौरान, ये भी पता चला है कि इन सभी कर्मचारियों को उनके इन कामों और चुप रहने के लिए रिश्वत के रूप में पैसे दिए गए थे. इन जेल अधिकारियों द्वारा जेल मैनुअल का उल्लंघन करते हुए सुकेश को विशेष रूप से एक अलग बैरक भी प्रदान किया गया था और इसके बदले जेल अधीक्षक धर्म सिंह मीना के माध्यम से नियमित रूप से आर्थिक लाभ लिया जाता था.