छत्तीसगढ़

बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात, जानें केंद्र सरकार को दिए क्या निर्देश?

नईदिल्ली : टेंपल ऑफ हीलिंग एनजीओ ने अदालत को बताया कि देशभर में 30 मिलियन से अधिक अनाथ बच्चे हैं, जबकि लोग हर साल केवल 4,000 बच्चे ही गोद लेते हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार (14 अक्टूबर) को बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया में होने वाली देरी पर चिंता जताई और केंद्र से पूछा कि इस प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों को गोद लेना एक मानवीय चीज करार दिया और कहा कि अनाथालय में रहने वाले बच्चे बेहतर जीवन की उम्मीद में यह इंतजार करते हैं कि कोई उन्हें गोद लेगा. भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “बच्चों को गोद लेने में देरी हो रही है. लोगों को तीन से चार साल तक इंतजार करना पड़ता है. बच्चों को गोद लेने में देरी क्यों हो रही है? सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (CARA) इस बारे में कुछ क्यों नहीं कर रही है?”

‘दिखावा बन गई प्रक्रिया’
सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणियां उस समय की है, जब अदालत बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया में खामियों से जुड़ी दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. याचिका में कहा गया है कि इस प्रक्रिया से बच्चों को गोद लेने में देरी हो रही थी और पूरी प्रक्रिया एक दिखावा बन गई थी.

‘देश में 30 मिलियन से अधिक अनाथ बच्चे’
याचिकाकर्ताओं में से एक एनजीओ टेम्पल ऑफ हीलिंग ने एनजीओ के संस्थापक पीयूष सक्सेना ने अदालत को सूचित किया कि 30 मिलियन से अधिक अनाथों वाले देश में सालाना केवल 4,000 बच्चे ही गोद लिए जाते हैं.

सक्सेना ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अगर हिंदू एडॉप्शन और मेंटेनेंस एक्ट (HAMA) के तहत गोद लेने की प्रक्रिया को CARA के हस्तक्षेप के बिना पारिवारिक अदालतों में प्रोसेसिंग करने की अनुमति दी जाती है तो समस्या हल हो सकती है.

कोर्ट ने चाइल्ड एडॉप्शन को बताया मानवीय
याचिकाओं पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, “यह एक मानवीय बात है. लोग बच्चे गोद लेना चाहते हैं और बच्चों को गोद लेने के लिए मरे जा रहे हैं.” इसके बाद अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट से याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए अतिरिक्त समय मांगा.

इसके बाद कोर्ट ने दोनों याचिकाओं को 30 अक्टूबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए समय दे दिया. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि गोद लेने में देरी के कारण होने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों पर विचार किया जाए.

कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसा कोई जोड़ा हो सकता है जो 26 साल की उम्र में बच्चा गोद लेना चाहता हो और जब गोद लेने का समय आता है तो वे 32-33 साल के हो जाते हैं. तब तक, माता-पिता की स्थिति और गोद लिए जाने वाले बच्चे की स्थिति भी बदल जाती है.

कोर्ट ने समाधान निकालने को कहा
इस पर भाटी ने अदालत को सूचित किया कि बच्चों की पहचान एक समय लेने वाला मुद्दा है, क्योंकि केंद्र बच्चों की सुरक्षा और भविष्य को लेकर पूरी तरह आश्वस्त होना चाहता है. हम इस प्रक्रिया में सहयोगी बनना चाहते हैं. कोर्ट के आदेश के बाद हमने कई कदम उठाए हैं. इसके अलावा कोर्ट अगली तारीख पर मामले के सभी पहलुओं की जांच करने के लिए भी सहमत हो गया और यहां तक कि भाटी को याचिकाकर्ताओं के साथ बैठने और कुछ समाधान निकालने के लिए भी कहा.