छत्तीसगढ़

सुप्रीम कोर्ट में अपने खिलाफ टिप्पणियां हटवाने पहुंचे गुवाहाटी हाई कोर्ट के जज, जानिए क्या हैं पूरा मामला

नई दिल्ली। बेहद असामान्य मामले में गुवाहाटी हाई कोर्ट के एक वर्तमान जज ने अपने विरुद्ध की गईं अपमानजनक टिप्पणियों को हटवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। हाई कोर्ट की पीठ ने उनके विरुद्ध ये टिप्पणियां आतंकवाद से जुड़े उस मामले में की थीं जिसमें उन्होंने एनआईए कोर्ट के विशेष न्यायाधीश के तौर पर फैसला सुनाया था। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने जज की याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति व्यक्त की और एनआइए को नोटिस जारी किया।

अपमानजनक टिप्पणियों को हटाने की मांग

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता जज की पहचान उजागर किए बिना मामले को सूचीबद्ध करने की अनुमति दे दी। पीठ ने 10 अक्टूबर के अपने आदेश में मामले को सुनवाई के लिए 10 नवंबर को सूचीबद्ध किया है। अधिवक्ता सोमिरन शर्मा के जरिये दाखिल याचिका में जज ने 11 अगस्त के हाई कोर्ट के आदेश में अपने विरुद्ध की गईं कुछ अपमानजनक टिप्पणियों को हटाने की मांग की है। हाई कोर्ट ने ऐसे कई लोगों को बरी कर दिया था जिन्हें पूर्व में विशेष एनआइए अदालत ने 22 मई, 2017 को आइपीसी, यूएपीए एवं शस्त्र अधिनियम के विभिन्न प्रविधानों के तहत दोषी ठहराया था।

13 दोषियों को अलग-अलग सुनाई थीं सजाएं

याचिकाकर्ता जज ने कहा कि उन्होंने कानून के मुताबिक 13 दोषियों को अलग-अलग सजाएं सुनाई थीं। इसके बाद दोषियों ने फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी और हाई कोर्ट ने इस वर्ष 11 अगस्त को फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता जज ने कहा कि अपील पर निर्णय लेने और फैसला सुनाने के लिए उक्त टिप्पणियां आवश्यक नहीं थीं और उनसे बचा जाना चाहिए था। इन टिप्पणियों ने उनके सहकर्मियों, वकीलों एवं वादियों के समक्ष उनकी प्रतिष्ठा को गहरी चोट पहुंचाई है।

नहीं किया सिद्धांतों का अनुपालन

ये टिप्पणियां भविष्य में याचिकाकर्ता के करियर पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट ने दोषियों की अपील पर फैसला करने और अधीनस्थ अदालत के फैसले की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों में स्थापित सिद्धांतों का अनुपालन नहीं किया।

याचिकाकर्ता जज ने कहा, ‘जज की आलोचना और फैसले की आलोचना के बीच हमेशा एक महीन रेखा होती है। यह बात अक्सर कही जाती है कि अभी तक ऐसा कोई जज पैदा नहीं हुआ है जिसने गलती न की हो। यह कहावत निचले से लेकर उच्चतम तक सभी स्तरों पर सभी विद्वान न्यायाधीशों पर लागू होती है।’