छत्तीसगढ़

क्या सच में नशे के लिए इस्तेमाल होता है सांप का जहर? जानें इसके पीछे की सच्चाई

नईदिल्ली : बिग बॉस ओटीटी सीजन-2 के विजेता और यूट्यूबर एल्विश यादव सुर्खियों में हैं. उन पर आरोप है कि वो नोएडा में अपने साथियों के साथ रेव पार्टी करते थे और नशे में सांपों के जहर का इस्तेमाल करते थे. पुलिस ने इस मामले में पांच लोगों को गिरफ्तार किया है जिन्होंने पूछताछ में एल्विश यादव से जुड़े रहने की बात कबूल की है. सांप के जहर का नशे के रूप में इस्तेमाल करने को लेकर भी अब चर्चा शुरू हो गई है.

पुणे में रहकर सांपों और अन्य जंगली जीव-जंतुओं की रक्षा के लिए काम करने वाले 73 वर्षीय नीलिम कुमार खैरे कहते हैं कि सांप को लेकर अपने देश में अनेक भ्रांतियां हैं. इन्हें रोके जाने की जरूरत है. वे कहते हैं कि सांप के जहर से कोई भी शख्स नशा नहीं कर सकता. यह जहर अलग-अलग तरीके से काम करते हैं. उनका कहना है कि अपने देश में पाए जाने वाले कोबरा, करैत, वाइपर प्रजातियां ज्यादा जहरीली हैं. पर, इनका भी एक विज्ञान है.

उन्होंने आगे बताया कि एक बार सांप का जहर निकाल लिया जाता है या वह किसी को ठीक से काट लेता है तो दोबारा उसकी जहर की थैली भरने में कम से कम तीन हफ्ते का समय लगता है. एक बार जहर निकालने पर तीन हफ्ते बाद ही उसकी थैली भरेगी. यह एक नेचुरल प्रोसेस है. वैज्ञानिक सांप के जहर का वाटर कंटेन्ट निकालकर इसका पाउडर बनाते हैं फिर उसे रिसर्च और इस्तेमाल के लिए भेजा जाता है.

क्या नशे के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं सांप का जहर?

नीलिम कुमार बताते हैं कि कोई भी इंसान सांप के जहर का इस्तेमाल नशे के लिए नहीं कर सकता है. यह सिर्फ और सिर्फ अफवाह है. सांप के जहर का इस्तेमाल केवल मानव जिंदगियां बचाने वाले टीके को तैयार करने में किया जाता है. यह भी कोई आसान प्रक्रिया नहीं है क्योंकि यह वैज्ञानिकों की देखरेख में ही किया जाता है.

भारत में यूं तो सांप की तीन सौ से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं. लेकिन सिर्फ चार ही प्रजातियां ऐसी हैं, जो बेहद जहरीली हैं. इनके काटने के बाद इंसान के बचने की संभावना क्षीण हो जाती है. इनमें भी अलग-अलग प्रजाति का जहर मानव शरीर को अलग-तरीके से ही नुकसान करता है.

नर्वस सिस्टम को फेल कर देता है जहर

कोबरा और करैत, सांप की ये दो ऐसी प्रजातियां हैं, जिनके काटने के बाद मानव का नर्वस सिस्टम फेल कर जाता है. मतलब इनका जहर नर्व पर हमला करता है. जबकि वाइपर प्रजाति के काटने के बाद जो जहर मानव शरीर में जाता है, वह सीधे शरीर के खून को विषैला बनाता है और इलाज में थोड़ी सी भी देर होने पर बचने की संभावना क्षीण हो जाती है.

वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के साइंटिस्ट डॉ अभिजीत दास बताते हैं कि अपने देश में चेन्नई स्थित इरूला कोऑपरेटिव सोसायटी देश में एक मात्र अधिकृत संस्था है, जो सांप का जहर निकालने और उसको दवा कंपनियों को बेचने के लिए अधिकृत है. इसके अलावा किसी भी व्यक्ति के पास यह अधिकार नहीं है कि वह सांपों को अपने पास रखे या पाल पोसकर उसका जहर निकाले.

जहर निकालने की प्रक्रिया क्या कहलाती है?

डॉ दास बताते हैं कि सांप का जहर निकालने की पद्धति को वेनम मिल्किंग कहते हैं. अभी भी इसकी कोई मशीन नहीं है. ट्रेडिशनल तरीके से ही जहर निकाला जाता है. चूकि यह खतरनाक काम है, ऐसे में प्रशिक्षित लोगों को ही इसमें जुटाया जाता है. वे बताते हैं कि सांप का जहर द्रव पदार्थ है. अगर यह हवा के संपर्क में आ गया तो खराब होने की आशंका रहती है.

ऐसे में निकालने में जो सावधानी बरती जानी है, वह अपनी जगह है लेकिन जहर को सुरक्षित रखने में उससे ज्यादा सावधानी बरती जाती है. उन्होंने कहां, अभी इस जहर का इस्तेमाल सांप के काटने से बचाव का टीका बनाने में ही इस्तेमाल किया जाता है. इसका कोई और इस्तेमाल नहीं हो सकता. पर, शोध चल रहा है. संभव है कि सांप का जहर कैंसर से निपटने में मददगार हो.

लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार होता है टीका

सांप के जहर को पाउडर में कन्वर्ट करने के बाद ही इसे आगे भेजा जाता है. टीका बनाने से पहले का भी एक तय प्रोसेस है. सांप के जहर वाले पाउडर से लिक्विड फॉर्म में इंजेक्शन बनाया जाता है. फिर इसे बहुत कम मात्रा में धीरे-धीरे घोड़ों को दिया जाता है. जब वे अभ्यस्त हो जाते हैं तो घोड़ों के खून से सीरम अलग किया जाता है और इसी सीरम से टीका बनाया जाता है, जो मानव जीवन की रक्षा में काम आता है. खैरे कहते हैं कि अभी भी हमारे देश में सांप का जहर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है. हर साल देश में लगभग 50 हजार मौतें टीके के अभाव में हो जाती है.