छत्तीसगढ़

जजों की नियुक्ति में पिक एंड चूज वाला रवैया परेशान करने वाला, सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी

नईदिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न हाई कोर्ट में न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों के नामों को मंजूरी देने में केंद्र सरकार के द्रष्टिकोण को लेकर नाराजगी जाहिर की। पीठ ने कहा कि यह ‘परेशान करने वाली बात है कि केंद्र उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति के लिए उन न्यायाधीशों को चुन-चुनकर अलग कर रहा है जिनके नामों की सिफारिश कॉलेजियम ने की थी।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि पीठ को उम्मीद है कि ऐसी स्थिति नहीं आएगी जहां उसे या कॉलेजियम को कोई ऐसा निर्णय लेना पड़े जो सुखद न हो।

अदालत दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें से एक में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा देरी का आरोप लगाया गया था। इस दौरान न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने एक हाई कोर्ट से दूसरे हाई कोर्ट में स्थानांतरण के लिए अनुशंसित नामों के लंबित रहने पर भी चिंता व्यक्त की।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि कई चीजों को फास्ट ट्रैक पर रखा गया है। इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि अभी तक पांच नाम हैं जो लंबित हैं जिन्हें दूसरी बार भेजा गया है। इसके अलावा 14 नाम और लंबित हैं। इन 14 नामों में परेशानी भरा पहलू यह है कि आपने नंबर 3,4,5 को नियुक्त किया है लेकिन नंबर 1 व 2 को नियुक्त नहीं किया गया है। ऐसे में वे वरिष्ठता खो देते हैं, यह स्वीकार्य नहीं है। मैं कभी भी किसी को न्यायाधीश पद स्वीकार करने का सुझाव नहीं दे पाऊंगा जिसके पास वकालत की अच्छी प्रैक्टिस है, वह जज बनने में दिलचस्पी क्यों लेना चाहेगा।

इस पर अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणी ने कहा कि कुछ नामों पर तेजी से विचार किया गया है। इस पर जस्टिस कौल ने कहा सवाल यह है कि मैं बार में अच्छी प्रैक्टिस करने वाले एक युवा सक्षम वकील को बेंच पर एक पद स्वीकार करके बलिदान देने के लिए कैसे मनाऊं।

वहीं, स्थानांतरण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक न्यायाधीश को एक हाईकोर्ट से दूसरे हाई कोर्ट में काम करना चाहिए या नहीं, यह न्यायपालिका पर छोड़ दिया जाना चाहिए।

वहीं, एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि अटॉर्नी जनरलद्वारा दिए गए कई आश्वासनों के बावजूद कुछ नहीं हो रहा है। उन्होंने आगे कहा कि अदालत ने सरकार को इस मामले में काफी समय दिया है। ऐसे उदाहरण हैं जहां कई साल पहले दोहराव किया गया था। यह कब तक चल सकता है। यह अनिश्चित काल तक नहीं चल सकता। अब समय आ गया है कि सख्ती की जाए अन्यथा सरकार को यह आभास हो रहा है कि वह कुछ भी करके बच सकती है।

वहीं, याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील अरविंद दातार ने कहा कि बार-बार अदालत से आग्रह करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए और यदि कोई समयसीमा निर्धारित की जाती है तो उसका पालन किया जाना चाहिए। इस मामले में अब 20 नवंबर को सुनवाई होगी।