छत्तीसगढ़

ऐसा क्या हुआ कि जेल में ही चंद्रबाबू नायडू ने ले लिया इलेक्शन नहीं लड़ने का फैसला, आखिर तेलंगाना चुनाव से TDP ने क्यों बनाई दूरी?

हैदराबाद : तेलंगाना में आज गुरुवार (30 नवंबर) को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो रही है. राज्य की चर्चित तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) इस बार विधानसभा चुनाव में हिस्सा नहीं ले रही है. यानी पार्टी ने एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा है. यह पहली बार है कि पार्टी 1985 के बाद से राज्य में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रही है. वहीं, आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ गठबंधन में शामिल पवन कल्याण की पार्टी जनसेना ने तेलंगाना में 32 उम्मीदवारों की सूची की घोषणा की है. जन सेना पार्टी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन का हिस्सा है. 

राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और टीडीपी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू 52 दिनों तक सेंट्रल जेल में बंद रहें. जेल से ही उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया था. ऐसे में उनकी पार्टी का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला सुर्खियों में है. चलिए हम आपको बताते हैं कि आखिर वे क्या वजहें हैं जिनके कारण टीडीपी ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया है.

इन वजहों से चुनाव नहीं लड़ रही टीडीपी
जून 2014 से पहले तेलंगाना आंध्र प्रदेश का हिस्सा था और समग्र आंध्र प्रदेश में टीडीपी की पकड़ अच्छी थी. हालांकि 2009 में जब पार्टी ने तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस, जो अब भारत राष्ट्र समिति या बीआरएस है) और वामपंथी दलों के साथ गठबंधन किया, उसके बाद से उसे लगातार नुकसान हुआ है.  टीडीपी को 2009 में टीआरएस के साथ तेलंगाना क्षेत्र की सीटों का एक बड़ा हिस्सा साझा करना पड़ा.

टीडीपी से टूटकर बनी है टीआरएस
टीआरएस का गठन भी टीडीपी से टूटकर अलग हुए के चंद्रशेखर राव ने 2001 में की थी. उन्होंने अलग तेलंगाना राज्य की मांग पर पार्टी का गठन किया था, जिनके साथ राज्य के लोगों की भावनाएं बड़े पैमाने पर जुड़ी रही थीं. उसके बाद से लगातार टीडीपी को लगता रहा कि वह राज्य में बहुत अधिक सीटें जीत नहीं पाएगी. इसी वजह से 2014 में जब तेलंगाना का गठन हुआ तब टीडीपी ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन किया और तेलंगाना में सीटों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के लिए छोड़ दिया.

टीडीपी के वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट
हालांकि 2009 और 2014 दोनों में, टीडीपी ने अपने सहयोगियों की तुलना में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ा. बहरहाल, 2018 में, इसने चुनाव में अपने आप को लगभग सिमटा लिया था क्योंकि 11 फीसदी सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी केवल दो सीट पर जीत पाई थी. 2009 से 2014 के बीच आंध्र प्रदेश में पार्टी के वोट प्रतिशत में भी 15 फीसदी की गिरावट हुई थी और वह 24 फीसदी पर सिमट गई थी.

चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी भी बड़ा कारण
‌इसके अलावा पार्टी के चुनाव नहीं लड़ने की एक सबसे बड़ी वजह टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू की भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तारी है. उनके जेल जाने के बाद पार्टी अंदर खाने से टूट रही है और अस्तित्व संकट से भी गुजर रही है. चुनाव से ठीक एक महीने पहले सितंबर में नायडू की गिरफ्तारी हुई थी. 52 दिनों तक सेंट्रल जेल में रहने के बाद वह 31 अक्टूबर को जमानत पर बाहर आए थे. उनकी गिरफ्तारी के बाद पार्टी के प्रति लोगों का लगाव और कम हुआ है.
 
प्रदेश अध्यक्ष ने दे दिया था इस्तीफा
चुनाव नहीं लड़ने के पार्टी के फैसले के बाद टीडीपी की तेलंगाना इकाई के अध्यक्ष कसानी ज्ञानेश्वर ने 30 अक्टूबर को अपनी सदस्यता से इस्तीफे दे दिया था. इससे पहले उन्होंने सेंट्रल जेल में जाकर चंद्रबाबू नायडू से मुलाकात की थी जहां टीडीपी प्रमुख ने चुनाव नहीं लड़ने के निर्देश दिए थे. इस्तीफे के समय ज्ञानेश्वर ने कहा था कि पार्टी कैंडिडेट चुनाव लड़ने के लिए तैयार थे, लेकिन नहीं लड़ने के फैसले से उन्हें निराशा हुई है. ज्ञानेश्वर ने भी दूसरी पार्टी बनाने के संकेत दिए थे. उन्होंने कहा था कि वह अपने फॉलोअर्स के साथ अपने अगले कदम को लेकर चर्चा करेंगे. 

क्यों गिरफ्तार हुए एन चंद्रबाबू नायडू?

चंद्रबाबू नायडू एपी कौशल विकास निगम से कथित तौर पर धन का दुरुपयोग के आरोप में गिरफ्तारी के बाद केंद्रीय जेल में न्यायिक हिरासत में रहे हैं. कथित घोटाले में राज्य के खजाने को 300 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ. उनकी गिरफ्तारी के बाद लोगों के बीच यह संदेश गया है कि पार्टी के शीर्ष स्तर से लेकर निचले स्तर तक नेता भ्रष्ट रहे हैं, जिसका काफी नुकसान हुआ है. उन्होंने जेल से ही चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा की थी. आपको बता दें कि तेलंगाना में 2018 के विधानसभा चुनाव में टीडीपी केवल दो सीटें जीती थी. तब टीडीपी का कांग्रेस और सीपीआई के साथ चुनाव पूर्व समझौता था.