छत्तीसगढ़

राहुल की जातिगत गणना पर भारी मोदी की गरीबी, कांग्रेस के काम नहीं आया नीतीश का दांव

नईदिल्ली : तीन राज्यों के चुनाव में भाजपा को मिली जीत से राजनीति में कई एजेंडे भी क्लीयर हो गए हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा को मिली जीत के बाद पीएम मोदी की गारंटी, राहुल गांधी की गारंटी पर भारी पड़ गई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना कराकर, भाजपा को देशभर में घेरने की योजना बनाई थी। कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इस एजेंडे को टॉप पर रखा। उन्होंने अपनी रैलियों में कहा, कांग्रेस की सरकार बनते ही जातिगत गणना कराई जाएगी। राहुल ने ओबीसी का मुद्दा भी जबरदस्त तरीके से उठाया। हालांकि कांग्रेस पार्टी में कुछ नेताओं ने दबी जुबान में जातिगत गणना का विरोध भी किया, लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के सामने वह दबता हुआ नजर आया। दूसरी तरफ पीएम मोदी ने कहा, गरीब की गणना हो। गरीब ही सबसे बड़ी जाति और सबसे बड़ी आबादी है।

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, नीतीश कुमार ने बिहार में जातिगत गणना का मुद्दा उठाकर खुद को सियासत में सुरक्षित में रखने की कवायद शुरू की थी। उन्होंने इंडिया गठबंधन के दूसरे सहयोगी दलों के साथ इस पर खूब चर्चा की। सपा प्रमुख ने भी जातिगत गणना का समर्थन किया। अखिलेश यादव ने कहा, यूपी में सपा की सरकार बनते ही जातिगत गणना कराई जाएगी। कांग्रेस पार्टी के विश्वनीय सूत्रों का कहना है, जातिगत गणना को लेकर पार्टी में मतभेद रहा है, लेकिन शीर्ष नेतृत्व के दबाव के चलते इस मुद्दे को स्वीकार कर लिया गया। सच्चाई ये है कि सियासत में इस मुद्दे के नफे-नुकसान का अंदाजा लगाए बिना, कांग्रेस पार्टी ने इसे अपने चुनावी एजेंडे के शीर्ष पर रख दिया। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में ‘जातिगत गणना’ का मुद्दा उठा दिया। सितंबर में लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल) पर चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार के इस कदम की सराहना की थी। उन्होंने लोकसभा में कहा था, हमारा महिला आरक्षण बिल को पूर्ण समर्थन है। मेरे विचार से यह विधेयक अभी अधूरा है, इसमें ओबीसी आरक्षण को भी जोड़ा जाना चाहिए।

राहुल गांधी ने जातिगत गणना के केंद्र में ओबीसी को रखा। लोकसभा में उन्होंने कहा, केंद्र सरकार में 90 सेक्रेटरी में से सिर्फ तीन ओबीसी से हैं। ये ओबीसी समाज का अपमान है। कितने दलित हैं और आदिवासी, इस सवाल का जवाब जाति जनगणना है। कांग्रेस पार्टी के स्टार प्रचारक राहुल और प्रियंका ने इस मुद्दे को बखूबी उठाया। राहुल गांधी ने ओबीसी और जातिगत गणना पर प्रेसवार्ता भी की। उन्हें उम्मीद थी कि नीतीश कुमार का ये फॉर्मूला, पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में काम आएगा। दूसरी तरफ, भाजपा का जातिगत गणना को लेकर स्टैंड क्लीयर था। भाजपा इसके लिए तैयार नहीं थी। चुनाव प्रचार के आखिरी पड़ाव में भाजपा नेताओं द्वारा दबी जुबान में जातिगत गणना को लेकर सकारात्मक बयान सामने आने लगे। वजह, वे इसका राजनीतिक नुकसान देख रहे थे। इन सबके बीच प्रधानमंत्री मोदी, अपने बयान पर टिके रहे। उन्होंने सार्वजनिक पटल पर कहा, महिला, गरीब, किसान और युवा ही उनके लिए चार सबसे बड़ी जातियां हैं।

30 नवंबर को मोदी ने ‘विकसित भारत संकल्प यात्रा’ के लाभार्थियों से बात करते हुए कहा, विकसित भारत का संकल्प, चार अमृत स्तंभों पर टिका है। ये अमृत स्तंभ हैं, हमारी नारी शक्ति, हमारी युवा शक्ति, हमारे किसान और हमारे गरीब परिवार। मेरे लिए तो सबसे बड़ी जाति है ‘गरीब’। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, कुछ लोग जाति आधारित गणना के माध्यम से देश के हिंदुओं को बांटने का काम कर रहे हैं। उनके लिए गरीब ही सबसे बड़ी जाति और सबसे बड़ी आबादी है। देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी को उसके नेता नहीं, बल्कि पर्दे के पीछे से ऐसे लोग चला रहे हैं, जो ‘राष्ट्र विरोधी ताकतों के साथ’ मिले हुए हैं।

कांग्रेस नेता कहते हैं कि जितनी आबादी उतना हक। मैं कहता हूं इस देश में अगर कोई सबसे बड़ी आबादी है, तो वह आबादी गरीब है। आज पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह क्या सोच रहे होंगे। मनमोहन सिंह कहते थे कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है। उनमें भी पहला अधिकार मुसलमानों का है। अब कांग्रेस कह रही है कि आबादी तय करेगी कि किसे कितना अधिकार मिलेगा। कांग्रेस पार्टी को अब कांग्रेस के लोग नहीं चला रहे हैं, क्योंकि उसके बड़े नेता मुंह बंद करके बैठे हैं। कांग्रेस को पर्दे के पीछे से वो लोग चला रहे हैं, जिनकी देश विरोधी ताकतों से साठगांठ है।

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जातिगत गणना का मुद्दा जमीन पर गिरा है। लोगों को यह बात समझ में आ रही है कि युवाओं को नौकरी चाहिए, न कि जातिगत गणना। देश में सरकारी नौकरियों यानी संगठित क्षेत्र की जॉब तो महज चार पांच फीसदी हैं। बाकी नौकरियां तो असंगठित क्षेत्र ही दे रहा है। ऐसे में जातिगत गणना का कोई फायदा नहीं होगा। लोग, उस दल पर भरोसा करेंगे, जो उन्हें नौकरी देगा। नौकरी के लिए माहौल तैयार करेगा। अब 2024 के लिए कांग्रेस पार्टी, इस मुद्दे पर दोबारा से विचार करेगी।