छत्तीसगढ़

अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी की अनुमति वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस

नईदिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (5 दिसंबर) को सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 और सरोगेसी (विनियमन) नियम 2022 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की. याचिका में कहा गया है कि ये कानून अविवाहित महिला को सरोगेसी का लाभ उठाने से रोकता है. 

सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने आज याचिका पर केंद्र सरकार नोटिस जारी किया और 4 हफ्तों में अविवाहित महिलाओं के लिए सरोगेसी पर रोक लगाने पर केंद्र से जवाब मांगा है.

प्रैक्टिसिंग वकील ने दायर की याचिका

यह याचिका एक प्रैक्टिसिंग वकील नेहा नागपाल ने दायर की थी. नेहा का कहना है कि महिलाओं को शादी किए बिना भी प्रजनन और मातृत्व का अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में इसे मान्यता दी है. 

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि अधिनियम की धारा 2(1)(एस) सिंगल अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी का लाभ उठाने से रोकती है, लेकिन तलाकशुदा और विधवा महिलाओं के लिए इसकी अनुमति है. जो कि स्पष्ट रूप से मनमानी है.

अधिकारों को उल्लंघन

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि तलाकशुदा या विधवा महिला के सरोगेसी किए जाने पर दोनों ही मामलों में महिला सिंगल मदर होगी. याचिका में कहा गया है कि धारा 2(1)(एस) प्रजनन के अधिकार, परिवार स्थापित करने के अधिकार, पारिवारिक जीवन के अधिकार और निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है.

याचिका में अधिनियम की धारा 2(1)(zg) और सरोगेसी (विनियमन) नियम, 2022 के पैराग्राफ 1(D) को भी चुनौती दी गई है, जो डोनर के अंडों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाता है. दान दिए गए अंडों के उपयोग पर यह प्रतिबंध इच्छुक मां को प्रजनन के अधिकार से भी वंचित करता है.

सरोगेसी नियमों में कई खामियां

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ किरपाल ने दलील दी कि मौजूदा सरोगेसी नियमों में कई खामियां हैं. उन्होंने आगे कहा कि सिंगल महिलाओं को सेरोगेसी से रोकना अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (जीवन का अधिकार) से प्रभावित है.