छत्तीसगढ़

महुआ मोइत्रा के संसद से निष्कासन पर 3 जनवरी तक टली सुनवाई, जानें क्या बोले जज?

नईदिल्ली : तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 3 जनवरी के लिए टली. महुआ ने अपनी लोकसभा सदस्यता खत्म होने के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. आज सुनवाई शुरू होते ही बेंच के अध्यक्ष जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि उन्होंने याचिका को नहीं पढ़ा है. वह इसे पढ़ने के बाद ही सुनवाई करना चाहेंगे.

संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे लेने के आरोप में उनकी सदस्यता रद्द की गई है. महुआ ने अपनी याचिका में अपने खिलाफ एथिक्स कमिटी की सिफारिश और उसके बाद लोकसभा से प्रस्ताव पारित होने को गलत बताया है. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने बुधवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की नेता महुआ मोइत्रा के वकील को आश्वासन दिया था कि वह लोकसभा से उनके (मोइत्रा के) निष्कासन को चुनौती देने वाली याचिका को सूचीबद्ध कर देंगे.

निशिकांत दुबे ने पक्षकार बनने की अपील की
झारखंड से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद निशिकांत दुबे ने इस मामले में पक्षकार बनाने का अनुरोध करते हुए अदालत का रुख किया है. दुबे की शिकायत के बाद ही मोइत्रा का लोकसभा से निष्कासन हुआ था. लोकसभा में आचार समिति की रिपोर्ट को मंजूर किए जाने के बाद सोमवार को टीएमसी नेता को निष्कासित कर दिया गया. इसके विरोध में मोइत्रा ने शीर्ष अदालत का रुख किया है. इस रिपोर्ट में मोइत्रा को ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के मामले में ‘अनैतिक एवं अशोभनीय आचरण’ का जिम्मेदार ठहराया गया था.

निशिकांत दुबे क्यों बनना चाह रहे हैं पक्षकार?
निशिकांत दुबे ने शीर्ष अदालत में दायर अर्जी में कहा है कि चूंकि तत्काल याचिका की वजह उनके (दुबे) द्वारा 15 अक्टूबर, 2023 को की गई शिकायत से उत्पन्न हुई है, इसलिए, यह उचित और न्याय के हित में है कि उनको एक आवश्यक पक्षकार के रूप में शामिल किया जाए. प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने बुधवार को मोइत्रा की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी की दलीलों पर संज्ञान लिया.

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने आठ दिसंबर को हंगामेदार चर्चा के बाद लोकसभा में मोइत्रा के निष्कासन का प्रस्ताव पेश किया जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी. चर्चा में मोइत्रा को खुद का पक्ष रखने का मौका नहीं मिला था. अपने निष्कासन पर प्रतिक्रिया देते हुए मोइत्रा ने इस फैसले की तुलना ‘‘कंगारू अदालत’’ द्वारा सजा दिए जाने से करते हुए आरोप लगाया कि सरकार लोकसभा की आचार समिति को, विपक्ष को झुकने के लिए मजबूर करने का हथियार बना रही है.