सीतापुर : पुलिस ने पल्हापुर गांव में शुक्रवार रात एक ही परिवार के छह लोगों की हत्या के मामले का खुलासा करने का दावा किया है। सूत्रों के अनुसार इस हत्याकांड को अनुराग के बड़े भाई अजीत सिंह ने ही अंजाम दिया था। तफ्तीश में तथ्य उजागर हुए हैं कि संपत्ति विवाद में अनुराग, उसकी पत्नी प्रियंका व तीन मासूमों के साथ मां सावित्री की भी हत्या कर दी। हालांकि अभी जांच में कुछ और चीजें भी सामने आ सकती हैं।
रविवार को घटना के दूसरे दिन गांव में सन्नाटा पसरा रहा। पुलिस की गाड़ियों की आवाजाही ही सन्नाटे को चीर रही थी। पुलिस ने इस मामले में मृतक अनुराग सिंह के ताऊ, भाई अजीत, उसकी पत्नी व घर के दो नौकरों को हिरासत में लिया था। इन लोगों से पुलिस अधिकारियों ने लंबी पूछताछ की। ग्रामीणों के मुताबिक स्व. वीरेंद्र सिंह के दो बेटे अनुराग सिंह व अजीत सिंह पिता की विरासत संभालते थे। अनुराग खेती में रुचि रखता था। अजीत सिंह प्राथमिक विद्यालय बरी, जगतपुर महमूदाबाद में सरकारी अध्यापक हैं।अनुराग सिंह आधुनिक ढंग से सब्जियों की खेती भी करता था। उसके पिता वीरेंद्र और आरपी सिंह दो भाई थे। आरपी सिंह बड़े भाई थे। वहीं वीरेंद्र छोटे। जब वह एक साथ रहते थे तो उस समय जो भी जमीन व घर खरीदे गए उसे आरपी सिंह चालाकी से अपने और अपनी पत्नी के नाम कराते रहे।
पल्हापुर हत्याकांड में जहां एक तरफ पुलिस ने घटना में अनुराग को मानसिक विक्षिप्त बताते हुए हत्यारोपी बना दिया। वहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी वारदात को बर्बरतापूर्ण हत्या की दिशा में मोड़ दिया है। जिस अनुराग को पुलिस ने मानसिक विक्षिप्त बताते हुए घटना का मुख्य आरोपी माना था। उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की थ्योरी को फेल कर दिया है। अनुराग को दो गोलियां मारे जाने की पुष्टि हुई है। ऐसे में सवाल उठता है कि एक ही गोली मारे जाने के बाद आखिर दूसरी गोली अनुराग को किसने मारी ? क्या यह एक सुनियोजित हत्याकांड था।
जिसे एक हादसा दिखाने के लिए पूरी कहानी बनाई गई। जब शव का पोस्टमार्टम कराया गया तो पता चला कि अनुराग के एक गोली दाहिनी कनपटी पर मारी गई। जो कि गले को चीरते हुए दूसरी तरफ निकल गई। वहीं दूसरी गोली बाएं तरफ से मारी गई जो कि दिमाग में जाकर फंस गई। सूत्रों की मानें तो अनुराग के दिमाग में फंसी गोली 315 बोर की है। जो अवैध असलहे से चलाई गई है। अनुराग के पोस्टमार्टम के दौरान हुए एक्सरे में गोली पाई गई। इस रिपोर्ट ने यह इशारा कर दिया है कि अनुराग की हत्या हुई है। इसके साथ ही उसकी मां सावित्री के सिर में पांच से छह चोटें आईं है। जो कि हथौड़े की होना बताई गई हैं।अनुराग के सिर में पहली गोली के प्रवेश करने का स्थान दाहिने कान से 6.5 सेंटीमीटर ऊपर था। वहीं दूसरी गोली गले को चीरती हुए बायें कान के ढाई सेंटीमीटर नीचे से निकली है। वहीं, मौत का कारण शॉक व हैमरेज निकलकर आया है। दिमाग के दाहिने हिस्से में एक बुलेट मिली है।
लेटी अवस्था में बेटी को मारी गई गोली
रिपोर्ट में यह भी निकल कर आया है कि अनुराग की दस वर्षीय बड़ी बेटी आस्वी को भी गोली मारी गई है। ऐसा माना जा रहा है जब वह लेटी थी। अथवा जब जमीन पर उसे गिराकर उसके गले में गोली मार दी गई है। वहीं अन्य दो बच्चों अर्ना और आद्विक को सिर में चोटें आई हैं। जिसमें अर्ना के सिर में चोट आई है। इसके साथ ही उसकी दाहिनी जांघ की हड्डी टूटी पाई गई है। वहीं आद्विक के सिर में चोट लगने के साथ उसके बाईं जांघ की हड्डी टूटी मिली है। वहीं अनुराग की पत्नी प्रियंका को सीने में गोली मारने के बाद हथौड़े से कूंच कर मौत के घाट उतारा गया है।
चार घंटे चला पोस्टमार्टम
दोहर तीन बजे से मृतकों का पोस्टमार्टम शुरू हुआ। करीब शाम 7 बजे तक पोस्टमार्टम चलता रहा।कुल चार घंटे तक पोस्टमार्टम हुआ। सबसे पहले आद्विक का पोस्टमार्टम हुआ। उसका व आस्वी का शव दोपहर ढाई बजे के करीब पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गया था। इसके बाद अनुराग, उसकी मां सावित्री और अंत में पत्नी प्रियंका का पोस्टमार्टम हुआ। जिसमें अनुराग का पोस्टमार्टम शाम 5 बजे से शुरू होकर 5 बजकर 55 मिनट तक चला। पोटस्मार्टम के बाद मृतकों के वस्त्र सुरक्षित रखे गए.
पूर्व डीजीपी बोले- परिस्थितिजन्य साक्ष्य कर रहे सुनियोजित हत्याकांड का इशारा
प्रथम दृष्टया पुलिस ने अनुराग को मानसिक विक्षिप्त बताया है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य एक सुनियोजित हत्याकांड की ओर इशारा कर रहे हैं। साक्ष्यों के अनुसार एक ही व्यक्ति के लिए यह सब करना संभव नहीं है। क्या पुलिस ने इस बात की तस्दीक की है कि अनुराग का कहीं इलाज चल रहा था या नहीं। क्या पुलिस को ऐसा अभिलेख मिला या नहीं। अगर नहीं मिला तो मानसिक विक्षिप्त कैसे बता दिया। इस बिंदु की कायदे से तहकीकात होनी चाहिए। मेडिकल रिपोर्ट खंगाली जानी चाहिए। स्थानीय पुलिस को हवा में बात न करते हुए मजबूत विवेचना करनी चाहिए। वहीं, पूरे घर में परिवार के सिर्फ एक व्यक्ति का बचना और सबकी मौत के बाद उसका लाभान्वित होना, सवाल खड़े करता है। यह क्रूर सवाल है, विवेचक को यह सवाल जरूर करना चाहिए। संदिग्धता के प्रत्येक बिंदु पर विवेचना होनी चाहिए।
– विक्रम सिंह, पूर्व पुलिस महानिदेशक