छत्तीसगढ़

अग्निवीरों को लेकर सरकार उठा सकती है बड़ा कदम! क्या अब मिलेंगे ये दिल मांगे मोर वाले फौजी?

नईदिल्ली : मोदी सरकार 3.0 के शपथग्रहण समारोह से पहले ही एनडीए के सहयोगियों ने अग्निपथ योजना की समीक्षा करने की मांग शुरू कर दी है। जेडीयू के केसी त्यागी के बाद लोजपा रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने इस योजना पर पुनर्विचार करने की इच्छा जताई है। वहीं अब अंदरखाने से खबरें आ रही हैं कि इस योजना में बदलाव किया जा सकता है। सरकार बनने के बाद इस पर कोई बड़ा फैसला लिया जा सकता है। वहीं सेना के पूर्व अफसरों का कहना है कि इस योजना को रद्द करके, पुरानी भर्ती प्रक्रिया को लागू किया जाए। भाजपा सरकार ने इस योजना को 14 जून 2022 को लागू किया था।

जेडीयू और लोजपा ने की समीक्षा की मांग
गुरुवार को एनडीए सहयोगी जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने यह कह कर सनसनी मचा दी थी कि अग्निपथ योजना को लेकर पुनर्विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि अग्निवीर योजना को लेकर काफी विरोध हुआ था। चुनाव में भी इसका असर देखने को मिला है। इस पर पुनर्विचार की जरूरत है। जो सुरक्षाकर्मी सेना में तैनात थे, जब अग्निवीर योजना चलाई गई, तो बड़े तबके में असंतोष था। मेरा मानना है कि उनके परिवार ने चुनाव में विरोध किया। इस योजना पर नए तरीके से विचार करने की जरूरत है। 

इसके बाद लोजपा रामविलास के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी इस योजना की समीक्षा करने की बात कही है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि अगर यह योजना अपने लक्ष्य और उद्देश्य की पूर्ति में सफल है, तो आगे भी जारी रहे। ऐसा नहीं तो इस पर सरकार विचार करे। भाजपा को भी इस बात का अंदाजा है कि भविष्य में इस योजना को लेकर सहयोगी दलों में असंतोष पैदा हो सकता है। विपक्षी दल भी शुरू से ही इस योजना को लेकर हमलावर हैं। वहीं जब इस बार विपक्ष को ज्यादा सीटें मिलने से और मजबूती मिली है और इस योजना को लेकर हंगामा बढ़ सकता है। भाजपा इसे लेकर पूरी तरह से चौकस है। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार अग्निवीर योजना में कुछ संशोधन कर सकती है। हालांकि भाजपा सरकार लोकसभा चुनावों के दौरान पहले ही संकेत दे चुकी है कि भर्ती प्रक्रिया में बदलाव के लिए उसके पास विकल्प खुले हैं। 

सभी अग्निवीरों को किया जा सकता है नियमित!
सेना के सूत्रों का कहना है कि कुछ सुझाव उनके पास आए हैं। जैसे अग्निवीरों की सेवा शर्तों को लेकर बड़े फैसले किए जा सकते हैं। अग्निवीरों को बेहतर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में सरकार भर्ती बढ़ाने की भी तैयारी कर रही है। उनमें आरक्षण बढ़ाने का प्रावधान दिया जा सकता है, जो अभी तक 10 फीसदी था। सूत्रों के मुताबिक अग्निवीरों के पहले बैच का कार्यकाल 2026 के अंत में पूरा होगा। पहले बैच के सभी अग्निवीरों को नियमित किया जा सकता है। इससे पहले 25 फीसदी अग्निवीरों को ही नियमित करने की शर्त अग्निपथ योजना में रखी गई थी। यह पूछने पर कि क्या अग्निपथ योजना को रद्द किया जा सकता है, तो इस पर सूत्रों ने बताया कि चार साल से पहले इस योजना को खत्म नहीं किया जा सकता है। हर साल अग्निवीरों के बैच की भर्ती हो रही है, ऐसे में इसे रद्द करना संभव नहीं है। हालांकि इसे और आकर्षक बनाने के प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है। रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाला डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स (डीएमए) आर्मी, नेवी और एयरफोर्स से अग्निवीरों पर एक आंतरिक सर्वे करा रहा है, जिसमें अग्निवीरों से जुड़े सवाल पूछे जा रहे हैं। इसका मकसद भर्ती प्रक्रिया पर योजना के असर को जानना है।  

चार साल से पहले नहीं कर सकते रिटायर
इससे पहले मोदी सरकार में मंत्री रह चुके और मार्च 2010 से मई 2012 तक सेना प्रमुख का पद संभाल चुके जनरल वीके सिंह ने भी एक साक्षात्कार में संकेत दिए थे। उन्होंने कहा था, मुझे बदलाव की पूरी उम्मीद है। अग्निवीरों के पहले बैच के चार साल की सेवा पूरी होने पर अग्निपथ योजना में कुछ बदलाव किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा था कि अग्निवीरों को जबरन रिटायर नहीं किया जा सकता है और चार साल की सेवा के बाद कुछ बदलाव किए जा सकते हैं।        

नाम, नमक, निशान के लिए लड़ता और मरता है फौजी
भारतीय सेना में डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस का पद संभाल चुके रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया कहते हैं कि अग्निपथ योजना को तत्काल खत्म किया जाना चाहिए और पुरानी भर्ती प्रक्रिया को वापस लाना चाहिए। पुरानी योजना हमारे युवाओं की उम्मीदों को पूरा करती थी और सशस्त्र बलों की ऑपरेशनल रेडिनेस और रक्षा तैयारियों को भी बढ़ाती थी। उन्होंने कहा कि उनका कहना है कि अगर सरकार चार साल बाद सभी अग्निवीरों को नियमित करने की बात कर रही है, तो इसका मतलब यह है कि सरकार पुरानी भर्ती प्रक्रिया को वापस ला रही है। सरकार चाहे तो मौजूदा अग्निपथ योजना की शर्तों में भी बदलाव करके ऐसा कर सकती है। इसके लिए किसी संविधान में संशोधन करने की जरूरत नहीं है। वह कहते हैं कि एक फौजी अपनी यूनिट के “नाम, नमक, निशान” के लिए लड़ता और मरता है। लेकिन जिसकी नौकरी चार साल की हो, तो क्या वह इसकी परवाह करेगा। वह तो केवल नौकरी करेगा, क्योंकि उसे पता है कि चार साल बाद वह रिटायर हो जाएगा। 

अब कौन बोलेगा- “ये दिल मांगे मोर”
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया कहते हैं कि चीन हमारे दरवाजे पर खड़ा है। 15 जून को गलवान को चार साल पूरे हो जाएंगे। खतरा अभी गया नहीं है। उस समय गलवान की सरहद पर हमारे फौजी तैनात थे, तो उन्होंने चीनियों को धूल चटा दी। चार साल बीतने को आए, लेकिन चीन की गलवान जैसी हरकत करने की हिम्मत नहीं हुई। वह कहते हैं कि सोचिए अगर उस समय सीमा पर अग्निवीर होते, तो क्या वे उतनी बहादुरी से लड़ते? वह कहते हैं कि हमारे जवान दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सैनिक हैं, यह उनका अपना अनुभव है। वह आगे कहते हैं कि कारगिल युद्ध के दौरान विक्रम बत्रा ने बोला था, “ये दिल मांगे मोर”। क्या कोई अग्निवीर सीमा पर यह बोलने की हिम्मत रखता है। क्या वह अपने साथी को बचाने के लिए दुश्मन की गोली के आगे अपना सीना आगे करने की हिम्मत करेगा? 

सरकार इसे ‘पायलट प्रोजेक्ट’ के रूप में करें शुरू
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल भाटिया आगे कहते हैं कि अगर सरकार यह कहती है कि अग्निवीर चार साल बाद राज्य पुलिस या केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में भर्ती हो सकते हैं, तो वह गलत सोचती है। अगर अग्निवीर को केंद्रीय सुरक्षा बलों या पुलिस में भर्ती होना होता, तो वह अग्निवीर ही क्यों बनता। वहां तो उसे परमानेंट नौकरी मिल रही है, तो वह चार साल के लिए फौज में भर्ती क्यों होगा। वह कहते हैं सरकार को चाहिए कि अभी ये शुरुआती बैच हैं, और इस स्कीम को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर टेस्ट करे। उसके बाद रिव्यू करे। अब जबकि यह योजना शुरू हो चुकी है, सरकार इसे ‘पायलट प्रोजेक्ट’ के रूप में शुरू कर सकती है, उसके बाद खुले दिमाग से इसकी समीक्षा कर सकती है। जहां भी जरूरी हों, बीच-बीच में सुधार भी करे। 

संसदीय स्थायी समिति ने की थी मुआवजा राशि बढ़ाने की सिफारिश
करीब तीन महीने पहले रक्षा मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में रक्षा मंत्रालय से सिफारिश की थी कि ड्यूटी के दौरान शहीद होने वाले अग्निवीरों के परिवारों को भी वही लाभ मिलना चाहिए, जो नियमित सैनिक के शहीद होने पर उनके परिवारों को मिलते हैं। रक्षा मंत्रालय ने समिति को सैनिकों को मिलने वाले मुआवजे के बारे में जानकारी दी। जिसके जवाब में स्थायी समिति ने रक्षा मंत्रालय से कहा कि ‘सरकार सभी हालात में सैनिकों के शहीद होने पर मुआवजे की राशि 10 लाख रुपये तक बढ़ाने पर विचार करे। किसी भी श्रेणी के तहत न्यूनतम मुआवजा राशि 35 लाख रुपये और अधिकतम मुआवजा राशि 55 लाख रुपये होनी चाहिए।’