छत्तीसगढ़

एस सोमनाथ बोले- उपग्रह प्रक्षेपण बाजार के लिए घरेलू मांग काफी नहीं, निवेशकों को राजी करना बड़ी चुनौती

नईदिल्ली : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख एस सोमनाथ ने बुधवार को कहा कि भारत में उपग्रह प्रक्षेपण बाजार (सेटेलाइट लॉन्च मार्केट) के लिए घरेलू मांग काफी नहीं है। उपग्रह प्रौद्योगिकी (सैटेलाइट टेक्नोलॉजी) के एप्लिकेशन पर और काम करके यह मांग पैदा की जा सकती है। सोमनाथ इंडिया स्पेस कांग्रेस-2024 को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि बड़ी कंपनियां अंतरिक्ष क्षेत्र में आना चाहती हैं लेकिन वे ऑर्डर पाने की समयसीमा को लेकर चिंतित हैं। सोमनाथ ने कहा, जब मैं उन कंपनियों से बात करता हूं जो यहां आना चाहते हैं और सुविधाएं स्थापित करना चाहते हैं, तो वे सभी ऐसा करने के लिए तैयार रहते हैं। लेकिन वे पूछते हैं कि ऑर्डर कहां हैं, ताकि वे सुरक्षित रूप से इसमें निवेश कर सकें। मुझे लगता है कि ये एक बड़ा सवाल है।

अंतरिक्ष वैज्ञानिक ने कहा, बड़ी परियोजनाओं में बड़े पैमाने पर निवेश के लिए निवेशकों को राजी करना बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा, हमें और अधिक घरेलू मांग पैदा करने की जरूरत है। इसका मतलब है कि घरेलू मांग पर्याप्त नहीं है। हम इस दिशा में काम कर रहे हैं। मांग उपभोक्ता और संचार खंड से आएगी, जिसमें निश्चित तौर पर बड़े उपग्रह निर्माता शामिल हैं। 

सोमनाथ कहा, हम ऑर्बिटल स्लॉट और फ्रीक्वेंसी को ढूंढना चाहते हैं, जिन्हें सैटेलाइट और लॉन्चर बनाने के लिए उद्योगों को दिया जा सकता है। यह आंतरिक मांग पैदा करने की दिशा में पहला कदम है। इनस्पेस ने पहले ही एक नया पृथ्वी अवलोकन समूह बनाने के लिए फंडिंग की घोषणा की है। यह घरेलू मांग पैदा करने की दिशा में एक और कदम है।

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि अंतरिक्ष तक पहुंचने की लागक वैश्विक स्तर पर काफी कम हो गई है, खासतौर पर स्पेसएक्स के कारण। लेकिन भारत की रॉकेट लागत में उस तरह की कटौती की गई है। उन्होंने कहा कि लागत कम करने से छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण को बढ़ावा मिल सरकता है और अंतरिक्ष क्षेत्र में नए प्रतिभागियों को आकर्षित किया जा सकता है। उन्होंने जिक्र किया कि अमृत काल के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन में 2040 तक चंद्र पर उतरने के लक्ष्य के साथ ही मानव अंतरिक्ष गतिविधि का विस्तार करना शामिल है। इसमें गगनयान मिशन भी शामिल है। 

उन्होंने कहा कि भारत के मौजूदा रॉकेट चंद्रमा की परिक्रमा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसरो प्रमुख ने कहा कि वहां से नमूने वापस लाने और भविष्य के मानव मिशनों दोनों के लिए ज्यादा पेलोड क्षमता वाले रॉकेट विकसित करना जरूरी है। हालांकि उन्होंने कहा, जीएसएलवी-एमके3 हमारे पास सबसे बड़ा रॉकेट है। लेकिन यह काफी बड़ा नहीं है। इसमें चांद तक जाने की पर्याप्त क्षमता है, लेकिन यह वापस नहीं आ सकता। हमें नमूनों को वापस लाने की क्षमता विकसित करने और फिर से इंसानों को चंद्रमा पर भेजने और उन्हें वापस लाने की जरूरत है।