नई दिल्ली। नासा की भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और बैरी बुच विल्मोर सिर्फ आठ दिन के लिए अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर गए थे। लेकिन, उनको लेकर गया बोइंग के स्टारलाइनर कैप्सूल में आई खराबी की वजह से उनकी वापसी अभी तक नहीं हो पाई है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की तरफ से कहा जा रहा है कि सितंबर में उन्हें पृथ्वी पर लाने की कोशिश की जाएगी। हालांकि, उनकी यह आठ दिन की यात्रा 8 महीने में बदल सकती है। हो सकता है दोनों अंतरिक्ष यात्री अगले साल यानी फरवरी 2025 में वापस आएं।
बोईंग स्टारलाइनर में हीलियम लीक और थ्रस्टर्स में खराबी की वजह से सुनीता विलियम्स की वापसी में देरी हुई है। कहा जा रहा है कि सबकुछ ठीक रहा है, तो सुनीता विलियम्स और बैरी बुच विल्मोर सितंबर में पृथ्वी पर वापस लाए जा सकते हैं, लेकिन नासा ने अभी तक उनकी वापसी को लेकर कोई तारीख नहीं बताई है। नासा के अधिकारी ने बीते दिनों कहा था कि हो सकता है कि दोनों अंतरिक्ष यात्री साल 2025 तक पृथ्वी पर वापस आएं।
क्या है नासा का आपातकालीन योजना?
अगर बोईंग स्टारलाइनर में आई दिक्कत ठीक नहीं होती है, तो टेस्ला के मालिक और अरबपति एलन मस्क की स्वामित्व वाली अंतरिक्ष कंपनी स्पेस-X के क्रू ड्रैगन मिशन के माध्यम से दोनों को धरती पर लाया जाएगा। दोनों के पृथ्वी पर वापस आने में फरवरी 2025 तक का समय लग सकता है। सुनीता और विलमोर अंतरिक्ष स्टेशन पर मौजूद हैं और स्वस्थ हैं। दोनों शोध कर रहे हैं और अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की अलग-अलग कामों में मदद कर रहे हैं।
सितंबर में कैसे वापस आ सकती हैं सुनीता विलियम्स?
सितंबर के महीने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर एक स्पेसक्राफ्ट जाने वाला है। इसमें भारतीय अंतरिक्ष यात्री ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला समेत तीन एस्ट्रोनॉट्स जाएंगे। यह 14 दिन का मिशन होगा। यह सभी अंतरिक्ष यात्री एक्सिओम-4 मिशन के तहत स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल से जाएंगे। संभावना है कि जब यह कैप्सूल वापस आएगा, तो उसमें सुनीता और वैरी वापस आएं। हालांकि, नासा ने आगे की योजना के बारे में जानकारी नहीं दी है।
अंतरिक्ष में क्या है खतरा?
अंतरिक्ष में वातावरण पृथ्वी से अलग होता है। वहां पर माइक्रोग्रैविटी, रेडिएशन का खतरा, अंतरिक्ष स्टेशनों के सीमित क्वार्टर मानव स्वास्थ्य के लिए एक चुनौती है। अंतरिक्ष स्टेशन पर अधिक समय तक रहना उनके लिए जोखिम भरा है। अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अंतरिक्ष में तात्कालिक परिवर्तनों में एक द्रव पुनर्वितरण है। गुरुत्वाकर्षण न होने के कारण शारीरिक तरल पदार्थ शरीर के ऊपर वाले भाग में पहुंचने लगते हैं। इससे चेहरे पर सूजन, नाक बंद होना और पैरों में तरल पदार्थ की कमी होने लगती है। इससे रक्त की मात्रा कम होने का खतरा रहता है और ब्लड प्रेशर में गड़बड़ी हो सकती है।
क्या होती है परेशानी?
पृथ्वी पर वापस आने पर इसका असर दिखाई देता है। कुछ समय तक खड़े होने पर अंतरिक्ष यात्रियों को चक्कर आने लगते हैं और बेहोश हो जाते हैं। अंतरिक्ष में जाने वाले हर यात्री के साथ ऐसी समस्या होती है। माइक्रोग्रैविटी का मस्कुलोस्केलेटल सिस्टम पर असर होता है। गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण अंतरिक्ष यात्रियों की मांशपेशियां पैरों और पीठ में विशेष तौर पर कमजोरी आती है। इसकी वजह से हड्डियों को नुकसान होता है। विशेष तौर पर रीढ़ और श्रोणि जैसी वजन उठाने वाली हड्डियों में। यांत्रिक तनाव की कमी के कारण ऑस्टियोपोरोसिस के समान हड्डियों के घनत्व में कमी आती है।
अंतरिक्ष में कैंसर का खतरा
धरती की तुलना में अंतरिक्ष यात्रियों को उच्च स्तर के रेडिएशन का सामना करना पड़ता है। इनमें गैलेक्टिक कॉस्मिक किरणें और सौर कण शामिल हैं। इनके कारण डीएनए क्षति और कैंसर का जोखिम बढ़ता है। रेडिएशन के लेवल की अंतरिक्ष एजेंसियां सावधानी पूर्वक निगरानी करती हैं। गुरुत्वाकर्षण की कमी की वजह से संवेदी इनपुट प्रभावित होता है। इससे संतुलन बनाने और आंख-हाथ समन्वय में परेशानी आती है। जब पहली बार कई अंतरिक्ष यात्री स्पेस में जाते हैं, तो उन्हें स्पेस मोशन सिकनेस का अहसास होता है। इनमें मतली, उल्टी और भटवाक जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। हालांकि अभ्यस्त होने पर ये लक्षण कम हो जाते हैं।