नईदिल्ली : भारतीय पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी नितेश कुमार और सुहास एलवाई ने अपने-अपने वर्ग के सेमीफाइनल मुकाबला जीतकर फाइनल में प्रवेश किया। इस तरह बैडमिंटन में भारत के दो पदक पक्के हो गए हैं। पहले नितेश ने जापान के फुजिहारा डी को हराकर पुरुष एकल एसएल3 वर्ग के फाइनल में जगह बनाई। नितेश ने फुजिहारा को 21-16, 21-12 से हराया। इसके बाद सुहास ने एसएल4 वर्ग में हमवतन सुकांत कदम को 21-17, 21-12 से हराया और स्वर्ण पदक के मैच में प्रवेश कर लिया। सुकांत भले ही स्वर्ण के लिए चुनौती नहीं पेश कर सकेंगे, लेकिन उनके पास कांस्य हासिल करने का मौका रहेगा। नितेश और सुहास अब सोमवार को स्वर्ण पदक के लिए चुनौती पेश करेंगे।
पिछले साल चीन में एशियाई पैरा खेलों में रजत पदक जीतने वाले एसएल 3 वर्ग के खिलाड़ी नितेश ग्रुप चरण में शीर्ष पर रहे थे। मालूम हो कि एसएल3 वर्ग निचले अंगों की गंभीर दिव्यांगता वाले खिलाड़ियों के लिए है। वे आधी चौड़ाई वाले कोर्ट पर खेलते हैं। आईआईटी मंडी के स्नातक नितेश ने इस तरह सुनिश्चित किया कि भारत एसएल3 वर्ग से पदक के साथ लौटे। प्रमोद भगत ने तीन साल पहले टोक्यो में पैरा बैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीता था।
नितेश का सामना सोमवार को फाइनल में ब्रिटेन के डेनियल बेथेल से होगा जिन्होंने दूसरे सेमीफाइनल में थाईलैंड के बन्सन मोंगखोन को 21-7, 21-9 से हराया। टोक्यो पैरालंपिक में प्रमोद भगत के बाद दूसरे स्थान पर रहे बेथेल अब नितेश के लिए एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी हैं।
नितेश की खेल यात्रा की शुरुआत बचपन में फुटबॉल के प्रति जुनून के साथ शुरू हुई। उन्हें हालांकि विशाखापत्तनम में एक दुर्घटना के कारण महीनों तक बिस्तर पर रहना पड़ा। इस दुर्घटना में उनका पैर स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो गया। इसके बावजूद, खेलों में उनकी रुचि बनी रही। आईआईटी-मंडी में पढ़ाई के दौरान उन्होंने बैडमिंटन में गहरी रुचि विकसित की।
फाइनल में अब सुहास का सामना फ्रांस के लुकास माजुर से होगा जो तीन साल पहले टोक्यो पैरालंपिक के फाइनल में उनसे हारने के बाद बदला चुकता करना चाहेंगे। सुहास पैरालंपिक में लगातार दो पदक जीतने वाले पहले भारतीय शटलर बनने के लिए तैयार हैं। कंप्यूटर इंजीनियर से आईएएस अधिकारी बने सुहास ने अपने टखने की कमजोरी को बैडमिंटन के प्रति अपने जुनून में कभी बाधा नहीं बनने दिया। वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के तहत युवा कल्याण और प्रांतीय रक्षक दल के सचिव और महानिदेशक के रूप में तैनात सुहास का प्रशासन से बैडमिंटन कोर्ट तक का सफर उनकी उल्लेखनीय दृढ़ता के बारे में है।