छत्तीसगढ़

क्या है इसरो का चंद्रयान-4 मिशन, अंतरिक्ष स्टेशन के लिए कितना है जरूरी, जानें सबकुछ

नईदिल्ली : भारत की केंद्र सरकार ने देशवासियों और इसरो (ISRO) को बड़ी खुशखबरी देते हुए चंद्रयान-4 मिशन को मंजूरी दे दी है। ये मिशन 36 महीनों यानी लगभग 3 सालों में पूरा होगा। इस मिशन के लिए केंद्र सरकार ने 2104.06 करोड़ रुपये का फंड दिया है।

सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर उतारने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों को विकसित करने और प्रदर्शित करने के लिए नए चंद्र मिशन ”चंद्रयान-4″ को मंजूरी दी है। चंद्रयान-4 चंद्रयान-3 की सफलता पर आधारित होगा, जिसने चांद की सतह पर ऐतिहासिक सॉफ्ट लैंडिंग की थी।

कैबिनेट ने इसके साथ ही वीनस ऑर्बिटर मिशन और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) की स्थापना को भी मंजूरी दे दी है। इन दोनों मिशन को साल 2028 में तक लॉन्च करने का प्लान बनाया गया हैय़

चंद्रयान-4 मिशन का क्या है उद्देश्य और ये कैसे करेगा काम?

  • चंद्रयान-4 मिशन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर उतारने (साल 2040 तक नियोजित) और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने के लिए आधारभूत प्रौद्योगिकियों के लिए तैयार किया जाएगा।
  • चंद्रयान-4 मिशन का उद्देश्य स्पेसक्राफ्ट को चंद्रमा पर उतारना, सैंपल कलेक्ट करना और उन्हें सुरक्षित रूप से धरती पर वापस लाना है। इस चंद्रयान-4 स्पेसक्राफ्ट, LVM-3 के दो रॉकेट और चंद्रयान-4 से लगातार संपर्क बनाए रखने के लिए स नेटवर्क और डिजाइन वेरिफिकेशन शामिल है।
  • बयान में कहा गया है कि डॉकिंग/अनडॉकिंग, लैंडिंग, पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी और चंद्र नमूना संग्रह और विश्लेषण को पूरा करने के लिए आवश्यक प्रमुख प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया जाएगा।

बताया गया है कि स्टैक 1 में लूनर सैंपल कलेक्शन के लिए एसेंडर मॉड्यूल और सतह पर लूनर सैंपल कलेक्शन के लिए डिसेंडर मॉड्यूल का इस्तेमाल किया जाएगा। वहीं स्टैकर 2 में थ्रस्ट के लिए एक प्रोपल्शन मॉड्यूल, सैंपल होल्ड के लिए ट्रांसफर मॉड्यूल और सैंपल को पृथ्वी पर लाने के लिए री-एंट्री मॉड्यूल शामिल किया जाएगा।

क्यों जरूरी है चंद्रयान-4 मिशन?

इस मिशन में चंद्रमा की चट्टानों और मिट्टी को पृथ्वी पर लाया जाएगा। मिशन के लिए दो अलग-अलग रॉकेट का इस्तेमाल किया जाएगा। इसे हैवी-लिफ्टर LVM-3 और ISRO का रिलायबल वर्कहॉर्स PSLV अलग-अलग पेलोड लेकर जाएंगे। रिपोर्ट के मुताबिक अंतरिक्ष में मॉड्यूल्स को जोड़ने और अलग करने से कई फायदें होंगे, इससे भविष्य में इसी तकनीक से भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) बनाया जाएगा। इसी वजह से चंद्रयान-4 मिशन जरूरी है।

वीनस ऑर्बिटर मिशन के बारे में जानिए?

वीनस ऑर्बिटर मिशन का बजट 1,236 करोड़ रुपये रखा गया है। वीनस ऑर्बिटर मिशन मार्च 2028 में लॉन्च किया जाएगा। वीनस ऑर्बिटर मिशन का मुख्य लक्ष्य शुक्र के बारे में रिसर्च करना है। इसमें ये पता लगाया जाएगा कि इसकी सतह, वायुमंडलीय स्थितियों और सूर्य द्वारा इसके वायुमंडल को कैसे प्रभावित किया जाता है, इस पर ध्यान केंद्रित करना है।

जानिए भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के बारे में?

केंद्र की मोदी सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (बीएएस-1) के पहले मॉड्यूल के लिए भी मंजूरी दे दी है। इसे दिसंबर 2028 तक पूरा किया जाएगा। गगनयान की पूरी फंडिंग को बढ़ाकर 20,193 करोड़ रुपये कर दिए गए हैं।

इसरो चीफ डॉ. एस. सोमनाथ ने चंद्रयान-4 मिशन को लेकर क्या कहा?

इसरो चीफ डॉ. सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-4 के लिए व्यापक योजना पूरी हो चुकी है, जिसमें मिशन के लॉन्च चरणों, अंतरिक्ष में असेंबली और चंद्रमा पर उतरने की रणनीति की रूपरेखा तैयार की गई है।

उन्होंने अंतरिक्ष यान को दो हिस्सों में विभाजित करने के बारे में बताया, जिसमें बताया गया कि कौन से हिस्से चंद्रमा पर रहेंगे और कौन से नमूने लेकर भारत लौटेंगे। डॉ. सोमनाथ ने कहा, इसे दो हिस्सों लॉन्च किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इसके बाद अंतरिक्ष में इसके मॉड्यूल्स को जोड़ेंगे। जिसे डॉकिंग कहा जाता है। यही तकनीक भविष्य में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया है कि इससे पहले ऐसा कुछ नहीं किया गया है।