नईदिल्ली : झारखंड और महाराष्ट्र में चुनावी घोषणा हुए 4 दिन से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, लेकिन ओल्ड ग्रैंड पार्टी कांग्रेस दोनों ही राज्यों में सीट बंटवारे का पेच नहीं सुलझा पाई है. झारखंड में तो पहले चरण के चुनाव की नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो गई है. 10 दिन बाद दोनों ही राज्यों में नामांकन की तारीख भी खत्म हो जाएगी.
सीट शेयरिंग न होने की एक बड़ी वजह सहयोगी पार्टियों की बेरुखी है. झारखंड और महाराष्ट्र में कांग्रेस को वहां की सहयोगी पार्टियां ज्यादा सीट देने को तैयार नहीं हैं. इसकी वजह हरियाणा में कांग्रेस की हार को बताया जा रहा है.महाराष्ट्र में कांग्रेस शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद) पवार के साथ तो झारखंड में लालू यादव की पार्टी आरजेडी और हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन में शामिल है. महाराष्ट्र और झारखंड में सीट शेयरिंग न होने की वजह इंडिया गठबंधन में कन्यफ्यूजन की स्थिति बनी हुई है.
झारखंड में कहां फंसा है पेच?
झारखंड में 2 चरणों में चुनाव होने हैं. यहां पहले चरण के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू भी हो गई है. राज्य में विधानसभा की 81 सीटें हैं और कांग्रेस के साथ 3 पार्टी गठबंधन में है. झारखंड मुक्ति मोर्चा बड़े भाई की भूमिका में है.
इस बार कहा जा रहा है कि कांग्रेस को झामुमो सिर्फ 27 सीटें ही देना चाह रही है. कांग्रेस झारखंड में पिछली बार 31 सीटों पर लड़ी थी. हालांकि, झामुमो का तर्क है कि पार्टी सिर्फ 27 सीटों पर ही परफॉर्म कर पाई. हरियाणा चुनाव से पहले यहां एक फॉर्मूला तय हुआ था, जिसमें कहा गया था कि झामुमो 43, कांग्रेस 29, आरजेडी 5 और माले 4 सीटों पर लड़ सकती है, लेकिन अब झामुमो कांग्रेस को सिर्फ 27 सीट देने को ही तैयार है.
सीट शेयरिंग को लेकर एक पेच पलामू और दक्षिणी छोटानागपुर को लेकर भी फंसा है. कांग्रेस पिछली बार पलामू की 4 सीटों पर मैदान में उतरी थी. इस बार पार्टी यहां नहीं लड़ना चाहती है.
कांग्रेस की डिमांड इस बार दक्षिणी छोटानागपुर की सीटों पर है. कांग्रेस प्रभारी सीट शेयरिंग को लेकर लगातार झामुमो हाईकमान के संपर्क में है. कहा जा रहा है कि राहुल गांधी की मीटिंग के बाद सीटों पर बात फाइनल हो सकती है.
महाराष्ट्र में कहां फंसा है पेच?
महाराष्ट्र में विधानसभा की 288 सीटें हैं और यहां पर कांग्रेस, सपा, एनसीपी (शरद) और शिवसेना (शिंदे) गठबंधन में शामिल हैं. शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत के मुताबिक कुछ सीटों पर ही पेच फंसा हुआ है. वो भी इसलिए, क्योंकि कांग्रेस की स्थानीय इकाई फैसला नहीं कर पा रही है.
कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र की 260 सीटों पर लगभग बात बन गई है. 28 सीटों पर शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस में पेच है. कांग्रेस मुंबई की सीटों पर दावेदारी कर रही है तो शिवसेना (विदर्भ) की सीटों पर.
विदर्भ कांग्रेस का गढ़ माना जाता है तो वहीं मुंबई शिवसेना का. महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी का सीट शेयरिंग विवाद अब राहुल गांधी ही सुलझाएंगे.
2019 में शिवसेना बीजेपी के साथ और कांग्रेस एनसीपी के साथ मैदान में उतरी थी, लेकिन वर्तमान में महाराष्ट्र का राजनीतिक परिदृश्य बदला हुआ है.
सवाल- पेच क्यों फंस रहा है?
1. हरियाणा में हार के बाद क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस को ज्यादा तरजीह देने के मूड में नहीं है. सारा झोल हरियाणा के बाद ही देखने को मिल रहा है. झारखंड में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो गया था, लेकिन आखिर वक्त में झामुमो ने कांग्रेस की 2 और सीटें घटा दी.
2. कांग्रेस की प्रदेश इकाई पर सीट शेयरिंग का जिम्मा है. प्रदेश के नेता अपने हिसाब से सीटों का बंटवारा चाहते हैं. मामला इसलिए भी फंसा हुआ है. अब हाईकमान के एक्टिव होने के बाद कहा जा रहा है कि विवाद एक-दो दिन में सुलझ सकता है.
झारखंड में वापसी और महाराष्ट्र में जीत की चुनौती
झारखंड में अभी कांग्रेस झामुमो के साथ सरकार में शामिल है. यहां पर उसके सामने सत्ता में वापस आने की चुनौती है. 2019 में कांग्रेस को झारखंड की 16 सीटों पर जीत मिली थी. पार्टी के सामने पुराने परफॉर्मेंस को कायम रखने की चुनौती है.
महाराष्ट्र में कांग्रेस के सामने जीत की चुनौती है. 2014 से ही यहां कांग्रेस दर-बदर की स्थिति में है. 2019 में उसे 44 सीटों पर जीत मिली थी. कुछ सालों के लिए कांग्रेस शिवसेना के साथ सरकार में रही भी, लेकिन उसे बड़ी हिस्सेदारी नहीं मिल पाई थी.