जम्मू : जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी और उसके अगले दिन ही उपराज्यपाल (LG) मनोज सिन्हा ने उस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी है, लेकिन क्या इससे ही जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाएगा? ऐसा नहीं है. पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने के लिए जम्मू-कश्मीर के लोगों को अभी महीनों इंतजार करना पड़ सकता है.
जम्मू-कश्मीर कैबिनेट की ओर से पूर्ण राज्य का दर्जा पारित करना और उपराज्यपाल की मंजूरी केवल इस प्रक्रिया की शुरुआत है. अभी लंबा सफर बाकी है. यह सफर जम्मू-कश्मीर से शुरू हुई है और इस पर मुहर दिल्ली में लगेगी. दिल्ली में इस फैसले पर मुहर लगने के बाद फिर से जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा मिल सकता है.
जम्मू-कश्मीर को इस साल दिसंबर तक पूर्ण राज्य का दर्जा मिल सकता है. अब इस प्रस्ताव को विधानसभा में पेश किया जाएगा और उसके बाद इसे केंद्र सरकार के पास भेज दिया जाएगा. अगर सब कुछ ठीक रहा तो सरकार शीतकालीन सत्र में जम्मू-कश्मीर के स्टेटहुड का प्रस्ताव संसद में ला सकती है.
गुरुवार को मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की पहली बैठक में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए एक प्रस्ताव पास किया गया था. इसके बाद इसे मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजा गया था. उपराज्यपाल ने भी बिना देर किए उमर कैबिनेट के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है. अब इस प्रस्ताव को विधानसभा में पेश किया जाएगा. उमर अब्दुल्ला सरकार की 4 नवंबर से विधानसभा का सत्र भी बुलाया है. विधानसभा में अगर प्रस्ताव पास हो जाता है तो फिर उसे मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा.
कानून में करना होगा संशोधन
केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए कानून में संशोधन करना होगा. इसलिए क्योंकि केंद्र सरकार ने 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून पास करके ही केंद्र शासित प्रदेश बनाया था. ऐसे में अब अगर केंद्र सरकार को जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए उसे फिर से कानून में संशोधन करना होगा और ऐसा तभी होगा जब संसद के दोनों सत्र चल रहे हो.
इसलिए इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि सरकार आने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए प्रस्ताव पेश कर सकती है. केंद्र सरकार संसद से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का बात कह भी चुकी है. सरकार सुप्रीम कोर्ट में साफ कर चुकी है कि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा जबकि जम्मू-कश्मीर को अलग पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा.
अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया था
केंद्र सरकार ने अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया था. सरकार ने संसद में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून पास करके केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था. दूसरी ओर लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया था. जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित राज्य बनाए जाने के बाद उसका संवैधानिक ढांचा पूरी तरह से बदल गया है. फिलहाल वहां उपराज्यपाल की भूमिका काफी अहम हो गई है. कुल मिलाकर ये कह सकते है कि उपराज्यपाल ही सबकुछ हैं.
10 साल बाद पूर्ण बहुमत की सरकार
करीब 10 साल बाद जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव में जनता ने नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन को बहुमत दिया है. उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री भी बन गए हैं. ऐसे में अब अगर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाता है तो पूरी शक्तियां सरकार के पास आ जाएंगी. इसलिए उमर अब्दुल्ला ने कैबिनेट की पहली बैठक में पूर्ण राज्य का दर्जा वाले प्रस्ताव को पास किया. जम्मू-कश्मीर को अगर पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाता है तो फिर विधानसभा हर मामले में कानून बना सकती है और नियमों में संशोधन कर सकती है.
पूर्ण राज्य का दर्जा न मिलने से दिक्कतें
जम्मू-कश्मीर को जब से केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है तब से उसका पूरा संवैधानिक ढांचा बदल गया है. राज्य सरकार अगर राज्य सूची में शामिल किसी विषय पर कानून बनाना चाहती है तो भी उसे केंद्रीय कानून का ध्यान रखना होगा. इसके अलावा राज्य की सरकार तभी कोई बिल या संशोधन विधानसभा में पेश कर सकती है जब उसे उपराज्पाल की मंजूरी मिली हो. इसके अलावा केंद्र शासित प्रदेश में कुछ विधायकों की संख्या के 10 फीसदी मंत्री बनाए जा सकते हैं जबकि पूर्ण राज्य मिल जाता है तो 15 फीसदी विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है.