छत्तीसगढ़

छात्रों का विदेश जाना बीमारी नहीं, उपराष्ट्रपति धनखड़ के बयान पर जयराम रमेश ने किया कटाक्ष

नईदिल्ली : कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के छात्रों के विदेश जाने के निर्णय को बीमारी बताने वाले बयान पर कटाक्ष किया है। उन्होंने रविवार को कहा कि छात्रों का विदेश जाना कोई बीमारी नहीं है, बल्कि बीमार शिक्षा प्रणाली का लक्षण मात्र है। जो राजनीतिक हस्तक्षेप से और भी बदतर होती जा रही है। बता दें कि शनिवार को राजस्थान के सीकर में बोलते हुए धनखड़ ने कहा था कि आज के समय में छात्रों का विदेश जाना देश के बच्चों के लिए नई बीमारी है। उन्होंने इसे विदेशी मुद्रा की बर्बादी और प्रतिभा की बर्बादी बताया था।

धनखड़ के बयान पर कटाक्ष
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बयान पर कांग्रेस महासचिव और संचार प्रभारी जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा कि माननीय उपराष्ट्रपति ने दुख जताया है कि विदेश जाना छात्रों के लिए एक नई बीमारी बन गई है। वास्तव में यह एक पुरानी बीमारी है, जो कई दशकों से छात्रों को परेशान कर रही है। उन्होंने कहा कि मैं भी 1975 में इस वायरस से संक्रमित हुआ था, लेकिन समय रहते ठीक हो गया और 1980 में भारत वापस आ गया।

शिक्षा व्यवस्था पर उठाए सवाल
जयराम रमेश ने कहा कि छात्र अब कई कारणों से विदेश जाते हैं। सीयूईटी कई युवाओं को दूर भगाता है। शिक्षा की गुणवत्ता और पेशेवर अवसरों में अंतर बहुत स्पष्ट है। इनमें से कई संस्थानों को जिस तरह से चलाया जाता है, वह निराशाजनक है। छात्रों का विदेश जाना कोई बीमारी नहीं है, यह केवल एक बीमार शिक्षा प्रणाली का लक्षण है, जो राजनीतिक हस्तक्षेप से और भी खराब होती जा रही है।

धनखड़ का बयान
उपराष्ट्रपति ने राजस्थान के सिकर में एक निजी शैक्षिक संस्थान द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए कहा था कि बच्चों के बीच एक और नई बीमारी है, विदेश जाने की। बच्चे उत्साह से विदेश जाना चाहते हैं, वह एक नया सपना देखते हैं, लेकिन वह इस बात का आकलन नहीं कर पाते हैं कि उन्हें किस संस्था में जाना चाहिए और किस में नहीं। वह विज्ञापन से प्रभावित होकर अपना कदम आगे बढ़ाते हैं। 

6 बिलियन का घाटा
उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में विदेश जाकर पढ़ने वाले बच्चों के कारण विदेशी मुद्रा भंडार 6 बिलियन डॉलर घटा है। कल्पना करिए कि अगर छह बिलियन डॉलर भारत के शैक्षणिक संस्थानों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में खर्च किए जाते तो आज हालात कितने बेहतर होते। मैं इसे विदेशी मुद्रा और प्रतिभा दोनों का पलायन मानता हूं।

‘विज्ञापन से प्रभावित हो रहे छात्र’
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने ये भी कहा था कि 18 से 24 साल के लड़के-लड़कियां विज्ञापन से प्रभावित होकर विदेश जाने का निर्णय लेते हैं। उन्होंने कहा, एक अनुमान के मुताबिक 2024 में, लगभग 13 लाख छात्र विदेश गए थे। उनके भविष्य के बारे में क्या होगा, इस बारे में एक आकलन किया जा रहा है। लोग अब समझ रहे हैं कि अगर वह यहां अपनी पढ़ाई पूरी करते तो उनका भविष्य कितना उज्ज्वल होता।