छत्तीसगढ़

उपचुनाव से पहले आजम परिवार से मिलना अखिलेश के लिए जरूरी या मजबूरी, क्या है सियासी मायने?

नईदिल्ली : उत्तर प्रदेश में उपचुनाव की सियासी तपिश के बीच सपा को सीतापुर जेल में बंद आजम खान की एक बार फिर याद आई है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव सोमवार को आजम परिवार से रामपुर में मुलाकात करेंगे. साल भर से जेल में बंद आजम खान से मिलने सपा का कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा और न ही आजम खान की पत्नी तजीन फात्मा के जेल से बाहर आने कोई मिला. ऐसे में उपचुनाव के बीच आजम परिवार से अखिलेश यादव की होने वाली मुलाकात के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं?

सपा प्रमुख अखिलेश यादव सोमवार को मुरादाबाद की कुंदरकी विधानसभा सीट पर चुनावी रैली करने जा रहे हैं. जनसभा को संबोधित करने बाद अखिलेश सीधे रामपुर के जौहर यूनिवर्सिटी पहुंचेगें, जहां से जेल रोड स्थित आजम खान के आवास पर जाकर उनके परिवार से मुलाकात करेंगे. आजम खान की पत्नी डा. तजीन फात्मा, उनके बड़े बेटे और परिवार के दूसरे सदस्यों से अखिलेश यादव मिलेंगे. आजम परिवार के साथ अखिलेश यादव करीब एक घंटे तक रहेंगे.

साल भर बाद आई आजम की याद

सपा के कद्दावर मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खान को उनके बेटे अब्दुल्ला आजम के दो जन्म प्रमाण पत्र के मामले में सेशन कोर्ट ने सजा सुनाई थी. कोर्ट ने आजम खान, उनकी पत्नी तजीन फात्मा और बेटे अब्दुल्ला आजम को दोषी करार दिया था, जिसके बाद से आजम खान सीतापुर की जेल में और अब्दुल्ला आजम हरदोई की जेल में बंद है. हालांकि, आजम खान की पत्नी तजीन फात्मा हाई कोर्ट से जमानत पर जेल से बाहर हैं और अब अखिलेश यादव उनसे मिलने पहुंच रहे हैं.

अखिलेश यादव के रामपुर दौरे और आजम परिवार से होने वाली मुलाकात को मुस्लिम पॉलिटिक्स से जोड़ कर देखा जा रहा है. यूपी में 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं, जिसमें से छह सीटों पर मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में है. इसमें तीन सीटें पश्चिमी यूपी की है, जहां पर आजम खान का अपना सियासी प्रभाव रहा है. कुंदरकी सीट पर आजम खान का अच्छा खासा दखल माना जाता है. इस बार कुंदरकी सीट पर सपा के लिए कड़ा मुकाबला माना जा रहा है, क्योंकि बसपा से AIMIM और चंद्रशेखर की पार्टी तक ने मुस्लिम प्रत्याशी उतार रखे हैं. इसी तरह की स्थिति मुस्लिम बहुल माने जाने वाली मीरापुर सीट पर भी है, जहां से आरएलडी को छोड़कर सभी दलों से मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.

उपचुनाव क्या बना सियासी मजबूरी?

उत्तर प्रदेश उपचुनाव में जिस तरह से विपक्षी दलों ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, उससे मुस्लिम वोटों के बिखरने का खतरा बना हुआ है. कुंदरकी, मीरापुर, सीसामऊ और फूलपुर सीट पर सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. फुलपूर सीट को छोड़कर बाकी की तीन सीटों पर सपा का पूरा दारोमदार मुस्लिम वोटों पर ही टिका हुआ है, क्योंकि इन सीटों पर पार्टी का कोर वोटबैंक यादव समुदाय नहीं है.असदुद्दीन ओवैसी ने तीन विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी खड़े हैं तो बसपा ने दो मुस्लिम को टिकट दिया है. इसके चलते खतरा मुस्लिम वोटों के बंटवारे का खतरा बना हुआ है.

अखिलेश यादव ने मुस्लिम वोटों के दम पर कुंदरकी और सीसामऊ सीटें 2022 में जीतने में कामयाब रही थी और मीरापुर सीट को सपा के समर्थन के चलते ही आरएलडी ने जीती थी, लेकिन अब तीनों ही सीटें के समीकरण बदल गए हैं. मुस्लिम वोटों के बंटवारे का खतरा बना हुआ है, जिसके चलते सपा की सियासी टेंशन बढ़ गई है. यही वजह है कि अखिलेश यादव ने आजम परिवार से मिलकर मुस्लिम वोटों को एकजुट रखने की कवायद में है.

मुस्लिम वोट बिखरने का खतरा

AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली कहते हैं कि एक साल से आजम खान और उनके बेटे जेल में बंद हैं, लेकिन सपा ने न तो कभी उनकी रिहाई के लिए कोई आंदोलन चलाया और न ही कोई कोशिश की. सपा ने आजम परिवार को पूरी तरह से मझधार में छोड़ रखा है. वह कहते हैं कि आजम खान को योगी सरकार ने सिर्फ मुस्लिम होने के नाते सजा दी है, इसमें बीजेपी और सपा की आपसी मिली भगत है. अगर सिर्फ भ्रष्टाचार का मामला होता तो मुलायम सिंह यादव का परिवार आय से अधिक संपत्ति मामले में आरोपी है, उन सभी को भी जेल में डाला जाता.

शौकत अली ने कहा कि योगी सरकार आजम खान पर ही नहीं बल्कि मौलाना अली जौहर विश्वविद्यालय को निशाना बनाती रही और सपा प्रमुख अखिलेश यादव घर बैठकर खामोशी से देखते रहे. वह कहते हैं कि अब यूपी में उपचुनाव हैं तो उन्हें आजम खान की याद आ रही है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय सपा की हकीकत जान चुका है. रामपुर के आसपास के जिलों में आजम खान का सियासी असर है. मीरापुर, कुंदरकी और सीसामऊ विधानसभा सीट पर 50 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं. इसीलिए अखिलेश अब आजम खान के बहाने मुस्लिम वोट अपने साथ जोड़ना चाहते हैं.

लोकसभा चुनाव के दौरान रामपुर सीट के टिकट को लेकर अखिलेश यादव जरूर आजम खान से मिलने सीतापुर पहुंचे थे, लेकिन उसके बाद से सपा को कई भी बड़ा नेता न ही आजम खान से मिला है और न ही उनके परिवार से मुलाकात की. आजम खान के मामले को लेकर आजाद समाज के नेता और सांसद चंद्रशेखर आजाद ने सदन तक में आवाज उठा चुके हैं तो असदुद्दीन ओवैसी ने भी कई बार सपा पर आजम खान की अनदेखी का आरोप लगा चुके हैं.

अखिलेश के लिए आजम कितने जरूरी?

आजम खान के समर्थक भी लगातार आवाज रहे हैं और सपा पर सवाल भी खड़े करते रहे हैं. रामपुर से सपा के सांसद बने मोहिबुल्लाह नदवी ने आजम खान को लेकर गलत बयानबाजी करत रहे हैं. मोहिबुल्लाह ने कहा था कि जो जैसा करता है, उसे वैसी ही सजा मिलती है, जेल सुधार गृह है. जेल में कैदियों को सुधारा जाता है. उन्होंने कहा था कि आजम खान के लिए बस दुआ ही की जा सकती है. मोहिबुल्लाह के बयान पर सपा के समर्थक नाराज है. कुंदरकी सीट पर सपा ने मोहिबुल्लाह नदवी के तुर्क समुदाय से आने वाले हाजी रिजवान को उतारा है, जिसके चलते आजम खान के बिरादरी के लोग खासकर पठान और मुस्लिम राजपूत सपा से नाराज है.

अखिलेश यादव उपचुनाव की सियासी तपिश के बीच आज़म खान के परिवार से मिल कर मुस्लिम समुदाय के मन में उठ रहे सवालों को ख़त्म करने के मूड में हैं. सपा चुनाव को लेकर वे कोई खतरा मोल लेने को तैयार नहीं हैं. आजम की पत्नी के साथ उनकी फ़ोटो सभी सवालों का जवाब हो सकता है.अखिलेश यादव और आजम खान का रिश्ता कभी नीम तो कभी शहद वाला है. लोकसभा चुनावों में मिली शानदार कामयाबी के बाद अखिलेश अब सब मीठा-मीठा ही चाहते हैं. इसीलिए आजम खान की चौखट तक अखिलेश ने जाने का फैसला किया है, लेकिन देखना है कि क्या आजम परिवार की नाराजगी को दूर कर पाएंगे?