छत्तीसगढ़

क्‍या है डिजिटल अरेस्ट? कैसे खेला जाता है खेल? हर माह हो रही 214 करोड़ रुपये की साइबर ठगी; जानें डिजिटल अरेस्ट के बारे में सब कुछ

 नई दिल्‍ली। देश भर में साइबर क्राइम तेजी से बढ़ता जा रहा है। इन दिनों साइबर ठग धोखाधड़ी के लिए डिजिटल अरेस्ट स्‍कैम कर रहे हैं। डिजिटल अरेस्ट के जरिये करोड़ों रुपये का चूना लगा रहे हैं। डिजिटल अरेस्ट की बढ़ती घटनाओं पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चिंता जता चुके हैं। साथ ही इस तरह के स्कैम से सतर्क रहने के लिए देशवासियों को आगाह किया। क्‍या आप जानते हैं कि डिजिटल अरेस्ट क्या है? डिजिटल अरेस्ट की पहचान कैसे करें और इससे बचने के लिए क्या करें? डिजिटल अरेस्ट के बारे में सब कुछ यहां पढ़िए…

क्‍या है डिजिटल अरेस्ट?

डिजिटल अरेस्ट एक साइबर स्‍कैम है। डिजिटल अरेस्ट स्कैम में फोन करने वाले कभी पुलिस, सीबीआई, नारकोटिक्स, आरबीआई और दिल्‍ली या मुंबई पुलिस अधिकारी बनकर आत्मविश्वास से बात करते हैं। वॉट्सएप या स्काइप कॉल पर जब कनेक्‍ट करते हैं तो आपको फर्जी अधिकारी एकदम असली से लगते हैं। वे लोग पीड़ित को इमोशनली और मेंटली टॉर्चर करते हैं।

यकीन दिलाते हैं कि उनके साथ, उनके परिजन के साथ कुछ बुरा हो चुका है या होने वाला है। सामने बैठा व्‍यक्ति पुलिस की वर्दी में होता है, ऐसे में ज्‍यादातर लोग डर जाते हैं और उनके जाल में फंसते चले जाते हैं।

आसान भाषा में कहा जाए तो डिजिटल अरेस्ट में फर्जी सरकारी अधिकारी बनकर वीडियो कॉल के माध्यम से लोगों को डरा-धमकाकर उनसे बड़ी रकम वसूली जाती है।

डिजिटल अरेस्ट का खेल कैसे खेला जाता है?

  • अनजान नंबर से व्हाट्सएप पर वीडियो कॉल आती है।
  • किसी केस में फंसने या परिजन के किसी मामले में पकड़े जाने का जानकारी दी जाती है।
  • धमकी देकर वीडियो कॉल पर लगातार बने रहने के लिए मजबूर किया जाता है।
  • स्कैमर्स मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स का धंधा या अन्‍य अवैध गतिविधियों का आरोप लगाते हैं।
  • पीड़ित को परिवार या फिर किसी को भी इस बारे में कुछ न बताने की धमकी दी जाती है।
  • वीडियो कॉल करने वाले व्‍यक्ति का बैकग्राउंड पुलिस स्टेशन जैसा नजर आता है।
  • पीड़ित को लगता है कि पुलिस उससे ऑनलाइन पूछताछ कर रही है या मदद कर रही है।
  • केस को बंद करने और गिरफ्तारी से बचने के लिए मोटी रकम की मांग की जाती है।

डिजिटल अरेस्ट को कैसे पहचानें?

डिजिटल अरेस्ट की पहचान करने के लिए सतर्कता की जरूरत है। अगर आपके पास किसी अनजान नंबर से कोई फोन या वॉट्सएप कॉल आती है तो रिसीव करते वक्त पुलिस की एडवाइजरी को याद रखें।

ये है पुलिस की एडवाइजरी

  • पुलिस अधिकारी कभी भी अपनी पहचान बताने के लिए वीडियो कॉल नहीं करेंगे।
  • पुलिस अधिकारी कभी भी आपको कोई एप डाउनलोड करने के लिए नहीं कहेंगे।
  • पहचान पत्र, FIR की कॉपी और गिरफ्तारी वारंट ऑनलाइन नहीं साझा नहीं किया जाएगा।
  • पुलिस अधिकारी कभी भी वॉयस या वीडियो कॉल पर बयान दर्ज नहीं करते हैं।
  • पुलिस अधिकारी कॉल पर पैसे या पर्सनल जानकारी देने के लिए डराते-धमकाते नहीं हैं।
  • पुलिस कॉल के दौरान अन्य लोगों से बात करने से नहीं रोकती है।
  • कानून में डिजिटल अरेस्ट का कोई प्रावधान नहीं है, क्राइम करने पर असली वाली गिरफ्तारी होती है।

डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचें?

भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (सीईआरटी-एन) ने लोगों को डिजिटल अरेस्ट से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी की है। सीईआरटी ने बताया डिजिटल अरेस्ट से कैसे बच सकते हैं…

1. सतर्क रहे, सुरक्षित रहें

कोई भी सरकारी जांच एजेंसी आधिकारिक संचार के लिए वॉट्सएप या स्काइप जैसे प्लेटफॉर्म्स का उपयोग नहीं करतीं। जबकि ऑनलाइन ठग इन्हीं का इस्तेमाल कर रहे हैं। शुरुआत में शक होने पर तुरंत फोन काट दें। फोन पर लंबी बातचीत करने से बचें।

2. इग्नोर करें

साइबर ठग डिजिटल अरेस्ट के लिए पीड़ितों को फोन कॉल, ई-मेल से संदेश भेजते हैं। बताते हैं कि आप मनी लॉन्ड्रिंग या चोरी जैसे अपराधों के तहत जांच के दायरे में हैं। ऐसे किसी कॉल और ई-मेल पर ध्यान न दें।

3. घबराएं नहीं

साइबर ठग कॉल पर बातचीत के दौरान गिरफ्तारी या कानूनी कार्रवाई की धमकी देते हैं। उनकी बातचीत और फर्जी तर्कों से घबराहट हो सकती है, लेकिन घबराना नहीं है। न ही बैंक डिटेल व यूपीआई आईडी शेयर करनी है।

4. जल्दबाजी करने से बचें

कॉल या वीडियो कॉल पर ठगों के सवालों और तर्कों का जवाब देने में जल्दबाजी न करें। शांत रहें, सिर्फ सुनें। अनजान नंबरों से आए सामान्य और वीडियो कॉल पर भी कोई निजी जानकारी न दें।

5. साक्ष्य जुटाएं

कॉल के स्क्रीनशॉट या वीडियो रिकॉर्डिंग सेव करें ताकि आवश्यक होने पर उपयोग कर सकें।

6. फिशिंग से बचें

कॉल के अलावा ई-मेल के जरिए ऐसे संदेश भेजे जा रहे हैं, जो अविश्वसनीय लगते हैं, ये फिशिंग के मामले हैं। इसमे ठग आपके कंप्यूटर तक पहुंचकर व्यक्तिगत जानकारी चुराते हैं।

7. धोखाधड़ी को रिपोर्ट करें

किसी भी संदिग्ध गतिविधि की तुरंत साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 या वेबसाइट cybercrime.gov.in पर रिपोर्ट करें।

डिजिटल अरेस्ट से कितना नुकसान?

गृह मंत्रालय की साइबर विंग के मुताबिक, डिजिटल अरेस्‍ट के जरिये साइबर ठग हर दिन मासूमों से छह करोड़ रुपये लूट रहे हैं। इस साल अक्‍टूबर तक डिजिटल अरेस्ट के कुल 92,334 मामले सामने आए हैं, जिनमें 2140 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी हुई है।अगर औसत निकाला जाए तो हर माह 214 करोड़ रुपये की साइबर ठगी हुई है। यह एक बेहद छोटा सा आंकड़ा है, जबकि असली नंबर इससे कहीं बहुत ज्यादा है। बहुत सारे लोग तो डर और बदनामी की वजह से सामने ही नहीं आते हैं।