छत्तीसगढ़

26 नवंबर से पहले सरकार गठन संवैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं, सूत्रों ने किया बड़ा दावा

मुम्बई : महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजों की घोषणा हो चुकी है। अब सरकार गठन की तैयारियां हो रही हैं। ताजा घटनाक्रम में सूत्रों ने यह बताया है कि 26 नवंबर से पहले सरकार बनाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है। दरअसल, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ गठबंधनों की आंधी चली। महाराष्ट्र में महायुति ने राजनीति की नई कहानी रच दी। भगवा आंधी में भाजपा, शिवसेना, एनसीपी (अजीत) ने 80% सीटें जीत लीं। लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा और उसके सहयोगियों को करारा झटका लगा था। नतीजों ने सबक दिया कि केंद्र और राज्य की राजनीति अलग-अलग होती है।

शरद पवार की राजनीतिक कॅरिअर की सबसे बड़ी हार

84 साल की उम्र में शरद पवार राजनीति की सबसे बड़ी शिकस्त खा गए। हालत इतनी खराब रही कि उनकी पार्टी को मिली सीटें अन्य के खाते में गई सीटों के करीब पहुंच गईं। एनसीपी (शरद पवार) को 10 और अन्य के खाते में 08 सीटें रहीं। वहीं, अजीत गुट ने राज्य में सिर्फ 59 सीटों पर प्रत्याशी उतारे और 41 पर जीत हासिल की।

नेता प्रतिपक्ष पद के लायक विधायक भी नहीं…

एमवीए की हालत इतनी खराब है कि इसके घटक दलों में से कोई भी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर दावा नहीं कर सकता। नेता प्रतिपक्ष के पद के लिए विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के पास कम से कम 29 विधायक होना चाहिए। इस बार विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना (यूबीटी) के पास सिर्फ 20 विधायक हैं।

पांच दशक में पहली बार नेता विपक्ष नहीं

महाराष्ट्र में विपक्ष की कोई पार्टी 28-29 के आंकड़े तक नहीं पहुंची। इससे विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाड़ी को विपक्ष का नेता पद मिलना भी मुश्किल दिखाई दे रहा है। ऐसा हुआ तो पांच दशक में पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा नेता प्रतिपक्ष विहीन रहेगी। शिवसेना (उद्धव) ने सर्वाधिक 20 सीटें जीती है। कांग्रेस 16 और शरद पवार की एनसीपी 10 सीटों पर ही सिमट गई है। जरूरी मानक तक न पहुंचने के कारण आघाड़ी का कोई दल नेता विपक्ष पद पर दावा नहीं कर सकता।

1972 में महाराष्ट्र में कांग्रेस 270 सीटों में से 222 सीटों पर जीती थी। तब दिनकर बालू पाटील नेता विपक्ष बने थे। तब 7 सदस्यों वाली भारतीय किसान श्रमिक पार्टी विपक्ष में सबसे बड़ा दल था।लोकसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी थी, लेकिन सांसदों की संख्या कुल सदस्यों की संख्या का 10 प्रतिशत नहीं था। इसके चलते लोकसभा में कोई विपक्ष का नेता नहीं था।