छत्तीसगढ़

14 साल के लड़के के नारों ने ढहाया असद का किला, 13 साल चला संघर्ष; अज्ञात स्थान पर चले गए बशर अल-असद

दमिश्क। सीरिया में विद्रोही गुट अल-नुशरा फ्रंट (एचटीएस) के कब्जे के बाद बशर अल-असद सरकार का पतन हो चुका है। असद जान बचाकर किसी अज्ञात स्थान पर चले गए हैं। तबसे देश में अशांति है। देश में एक दशक से ज्यादा समय से गृह युद्ध चलने के बाद यह मोड़ आया है। लेकिन इस गृह युद्ध की शुरुआत 2011 में उस समय हुई थी, जब दारा शहर के स्कूल के एक छात्र ने दीवार पर असद सरकार की तानाशाही के खिलाफ नारा लिखा था। यही नारा सीरिया में गृह युद्ध की शुरुआत की वजह बन गया। आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं-

दीवार पर लिखा था अल-असद के खिलाफ नारा
मार्च 2011 में छात्र मुआविया स्यासनेह (14 वर्षीय) ने दारा शहर की सड़कों पर सरकार की तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई थी। उसने शहर की एक दीवार पर कुछ शब्द लिखे थे, जिनमें सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद के खिलाफ गहरा संदेश था। इसमें अरबी में लिखा था- एजक एल डोर या डॉक्टर (तुम्हारा समय है, डॉक्टर)। यह शब्द अल-असद की मेडिकल शिक्षा की ओर इशारा करते हुए लिखा गया था। छात्र ने अपने गुस्से को जाहिर करने लिए इन शब्दों का इस्तेमाल किया था। इसके बाद सरकार ने तत्काल कदम उठाया और स्थानीय पुलिस ने मुआविया और उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें प्रताड़ित किया। 

खुफिया एजेंसी ने छात्रों को बनाया बंधक और उत्पीड़न किया
इसके बाद सीरिया की खुफिया एजेंसी ‘मखब्बारात’ ने 26 दिनों तक मुआविया और उसके साथियों को बंधक बना लिया। उन्हें यातना दी गई और उनका उत्पीड़न किया गया। उनकी रिहाई के बाद दारा शहर के लोग और अधिक गुस्से में आ गए। उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन कर रहे माता-पिता, पड़ोसियों और कार्यकर्ताओं पर आंसू गैस के गोले दागे गए और गोलियां चलाई गईं। घायल बच्चों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं तो यह एक बड़ा मुद्दा बन गई। इसने देश में प्रदर्शनों की एक नई लहर पैदा कर दी। फिर दारा के साथ-साथ पूरे सीरिया में प्रदर्शन शुरू हो गए। 

‘डे ऑफ रेज’: असद सरकार के खिलाफ पहला संगठित प्रदर्शन
15 मार्च, 2011 को सीरिया में पहला संगठित ‘डे ऑफ रेज’ (असद सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का दिन) आयोजित हुआ। इसके बाद यह असंतोष राष्ट्रीय आंदोलन में बदल गया। इस आंदोलन में असद सरकार को हटाने की मांग तेज हो गई। इसका परिणाम यह हुआ कि असर सरकार की ओर से लगातार हिंसक कार्रवाई हुई। सीरिया के कई नागरिकों को यातनाएं दी गईं। विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया और सुरक्षा बलों ने शांति पूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोलियां चलाईं। 

अरब स्प्रिंग से प्रेरित हुआ आंदोलन, शुरू हुआ हिंसक संघर्ष
अरब स्प्रिंग (तानाशाही के खिलाफ अरब देशों में विद्रोह) से प्रेरित यह आंदोलन जल्द ही हिंसक संघर्ष में बदल गया, जब विरोधी गुटों ने हथियारों के साथ जवाब देना शुरू कर दिया। जब मिस्र और ट्यूनिशिया में ‘अरब स्प्रिंग’ हुआ और होस्नी मुबारक और जिन एल आबिदिन बेन अली को हटाया गया, तब सीरिया में ज्वालामुखी के ढेर पर खड़ा था, जिसे बस एक चिंगारी का इंतजार था। 

धार्मिक विभाजन का चरमपंथी संगठनों ने उठाया फायदा
जुलाई 2011 में अल-असद की सेना के अधिकारियों ने मुक्त सीरियाई सेना (एफएसए) का गठन किया। लेकिन इसमें एकता और पैसे की कमी थी। जिसके कारण यह एकजुट होकर सामने नहीं आ सकी। इस अस्थिरता और धार्मिक विभाजन का फायदा उठाकर जबहत अल-नुसरा और बाद में इस्लामिक स्टेट जैसे चरमपंथी संगठन फलने-फूलने लगे। इन ऐतिहासिक घटनाओं के कारण सीरिया अब तबाह हो चुका है। एक करोड़ 30 लाख से अधिक सीरियाई लोग बेघर हो चुके हं और पांच लाख से अधिक मारे जा चुके हैं। 

सीरिया में अब फिर गृह युद्ध जैसे हालात
हालांकि, बीच में थोड़े समय के लिए इस संघर्ष की तीव्रता में कमी आई थी। लेकिन अब फिर से सीरिया में गृह युद्ध जैसे हालात हैं। विभिन्न विद्रोही गुटों ने सीरिया के महत्वपूर्ण शहरों पर कब्जा कर लिया है, जिसमें राजधानी दमिश्क भी शामिल है, जो अल-असद का गढ़ रहा है। खबरों के मुताबिक, अल-असद ने दमिश्क को छोड़ दिया है। कुछ अन्य खबरों के मुताबिक वह तेहरान जता सकते है। असर परिवार ईरान का पुराना सहयोगी रहा है।