नई दिल्ली । केंद्र की मोदी सरकार एक देश एक चुनाव को लेकर तैयारियों में जुटी है और मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि इसी संसद सत्र में एक देश-एक चुनाव विधेयक पेश किया जा सकता है। विधेयक पर विस्तृत चर्चा के लिए इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने की बात भी कही जा रही है। गौरतलब है कि एक देश, एक चुनाव पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट को कैबिनेट से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है।
विधेयक पास कराने में केंद्र को करनी होगी कड़ी मशक्कत
एक देश एक चुनाव प्रस्ताव का उद्देश्य देश में एक साथ चुनाव कराना है, जिससे संसाधन, समय और लागत की बचत होगी। अभी राज्यों में अलग-अलग और लोकसभा चुनाव अलग होते हैं। यह एक बड़ी पहल है, जिसे लेकर केंद्र सरकार ने अपनी तैयारियां तेज कर दी हैं। हालांकि केंद्र की इस पहल को विपक्ष के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जिससे साफ है कि केंद्र सरकार को इस विधेयक पर आम सहमति बनाने में काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि राजनीतिक पार्टियों में सहमति बनाने के लिए केंद्र सरकार इस विधेयक को संसद में पेश करने के बाद संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज सकती है।
संविधान में संशोधन भी करना होगा
एक देश एक चुनाव को हकीकत में बदलने के लिए सरकार को संविधान में भी संशोधन करना होगा, जिसके लिए छह विधेयक दोनों सदनों के दो तिहाई बहुमत से पास होने जरूरी हैं। भाजपा नीत एनडीए का लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत है, लेकिन संविधान संशोधन आसान नहीं होगा। विपक्ष एक देश एक चुनाव को व्यवहारिक नहीं मान रहा, साथ ही इसे अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक भी बता रहा है। विपक्ष का तर्क है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने में रसद और संचालन संबंधी काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा और इससे प्रशासन प्रभावित हो सकता है और संघीय सिद्धांत भी कमजोर हो सकते हैं।