नई दिल्ली: अरविंद केजरीवाल क्या एक बार फिर दिल्ली चुनाव जीतकर हैट्रिक बना पाएंगे? या फिर भारतीय जनता पार्टी इस बार आप के विजय रथ को रोकने में सफल होगी? वहीं सवाल कांग्रेस को लेकर भी है जो कई सीटों पर मजबूत कैंडिडेट उतारकर पहले ही आम आदमी पार्टी और बीजेपी की टेंशन बढ़ा चुकी है। देश की सबसे पुरानी पार्टी क्या इस बार दिल्ली की सत्तारूढ़ पार्टी का गेम बिगाड़ सकती है। इन सब सवालों के जवाब 8 फरवरी को चुनाव नतीजे सामने आने के बाद स्पष्ट हो जाएंगे। हालांकि, सियासी गलियारे में आप और कांग्रेस को लेकर चर्चा का दौर जारी है।
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आप और कांग्रेस ने दिल्ली में 2024 का लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ा था। वो इंडिया गठबंधन में साथ थे लेकिन उसके बाद से दोनों की राहें जैसे जुदा नजर आईं। इस बीच इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी, टीएमसी समेत कई पार्टियों ने दिल्ली में आप को अपना सपोर्ट दिया है। इंडिया गठबंधन में होते हुए भी कांग्रेस अकेले ही इस चुनावी रण उतरी है। ऐसे में क्या कांग्रेस 5 फरवरी को होने वाले चुनाव में कोई बड़ा खेला करने में सफल होगी देखना दिलचस्प होगा।
दोस्त से प्रतिद्वंद्वी बने दोनों दल आम आदमी पार्टी और कांग्रेस खुलेआम एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। इससे बीजेपी काफी खुश है। दिल्ली कांग्रेस के नेता लगातार आप मुखिया केजरीवाल पर तीखा अटैक कर रहे हैं, वहीं आप प्रमुख ने इस पुरानी पार्टी पर बीजेपी के साथ ‘सीक्रेट तालमेल’ का आरोप लगाया है। केजरीवाल ने दो टूक कहा कि दिल्ली चुनाव में बीजेपी और आप के बीच मुकाबला है। उन्होंने कांग्रेस की ओर से किसी भी संभावित चुनौती को खारिज किया है।
पिछले चुनाव नतीजों में कांग्रेस के प्रदर्शन को देखकर पूर्व मुख्यमंत्री और आप संयोजक का ये दावा पूरी तरह से गलत भी नहीं कहा जा सकता। दरअसल, दिल्ली में AAP का उदय कांग्रेस के पतन के साथ ही हुआ। 2013 में AAP ने 28 सीटें जीतीं और उसका वोट शेयर 29.49 फीसदी था। उस समय कांग्रेस 43 सीटों से घटकर 8 सीटों पर आ गई और उसका वोट शेयर 40.31% से घटकर 24.55 फीसदी रह गया। बीजेपी को 31 सीटें मिलीं।
2015 में कांग्रेस का वोट शेयर 15 फीसदी घट गया, जबकि AAP का वोट शेयर लगभग 15 फीसदी बढ़ गया। बीजेपी का वोट शेयर उस चुनाव में लगभग स्थिर रहा। इससे साफ है कि कांग्रेस के समर्थक AAP की ओर चले गए। 2020 में कांग्रेस का वोट शेयर घटकर 4.26 फीसदी रह गया। AAP का वोट शेयर लगभग स्थिर रहा, जबकि BJP का वोट शेयर 6 फीसदी बढ़ गया। इससे पता चलता है कि कांग्रेस के नुकसान से बीजेपी को फायदा हुआ।
पिछले दो चुनावों में AAP ने 67 और 62 सीटें जीतीं। बीजेपी और कांग्रेस काफी पीछे रह गईं। यही वजह है कि आम आदमी पार्टी इस बार भी जीत को लेकर आश्वस्त है। लेकिन 10 साल सत्ता में रहने के बाद AAP को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है। अगर कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर होता है, तो वह AAP के वोट बैंक में सेंध लगा सकती है।
AAP के वोट बैंक में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले, पूर्वांचली, मुस्लिम और अनधिकृत कॉलोनियों के निवासी शामिल हैं। कांग्रेस के वोट शेयर में बढ़ोतरी से उसकी सीटों में भले ही ज्यादा इजाफा न हो, लेकिन कुछ सीटों पर मुकाबला कड़ा हो सकता है। इससे AAP को नुकसान हो सकता है, क्योंकि उसके पास अभी 62 सीटें हैं। बीजेपी के पास सिर्फ 8 सीटें हैं, इसलिए उसे फायदा हो सकता है।