नईदिल्ली I हिंदू, जैन और बौद्ध धर्म के संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ठोस दस्तावेज और डेटा पेश करने का निर्देश दिया है. सीजेआई यूयू ललित के नेतृत्व वाली बेंच अब वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर इस याचिका पर 19 सितंबर को अगली सुनवाई करेगी.
याचिका में मांग की गई है कि हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख अपने धार्मिक संस्थानों का प्रबंधन और प्रशासन बिना राज्य सरकार के हस्तक्षेप के कर सके, जैसे मुसलमानों और ईसाईयों द्वारा किया जाता है. याचिकाकर्ता के वकील अरविंद दत्ता ने कोर्ट को बताया कि कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, पुड्डुचेरी, तेलंगाना के कानून को चुनौती दी है.
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा इसको चुनौती क्यों दी गई है, लंबे समय से ऐसे से चल रहा है. वकील दत्ता ने कहा कि सरकार 58 मुख्य मंदिरों को अपने नियंत्रण में लिए हुए हैं, यह सीधे तौर पर संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है. यह अंग्रेजों के समय का कानून है और अब सरकार चर्च और अन्य धर्मिक स्थलों को अपने नियंत्रण में क्यों नहीं लेना चाहती है.
केरल में 15 हज़ार मंदिर बंद होने का दावा
वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि कर्नाटका में 15 हज़ार मंदिर बंद हो गए, क्योंकि उनके पास मैनेजमेंट के लिए पैसा नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि किस आंकड़े के आधार पर 15 हज़ार मंदिरों के बंद होने का दावा कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मंदिरों में आने वाला पैसा आम लोगों का है. वो आम लोगों के पास वापस चला जाता है. आप तिरुपति का उदाहरण ले सकते हैं, उससे स्कूल और कॉलेज खोले गए.
4 लाख मठ-मंदिर सरकार के कंट्रोल में
अश्विनी कुमार उपाध्याय समेत अन्य कि ओर से दाखिल याचिकाओं में कहा गया है कि हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धार्मिक संस्थाओं का रखरखाव और प्रबंधन का अधिकार राज्य सरकारों के पास है, लेकिन मुस्लिम, पारसी और ईसाई अपनी संस्थाओं को खुद नियंत्रित करते हैं. याचिका में कहा गया है कि मठ मंदिरों पर नियंत्रण करने के लिए 35 कानून है लेकिन मस्जिद, मजार, दरगाह और चर्च के लिए एक भी कानून नहीं है. 4 लाख मठ-मंदिर सरकार के कंट्रोल में है लेकिन मस्जिद मजार चर्च दरगाह एक भी नहीं हैं.