छत्तीसगढ़

रद्द 66A पर केस दर्ज होना बेहद गंभीर विषय, 3 हफ्ते में खत्म हों मामले- SC का आदेश

नईदिल्ली I सुप्रीम कोर्ट में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून की 2015 में उसके द्वारा रद्द की गई धारा 66 ए के तहत प्राथमिकियां दर्ज किए जाने को “गंभीर चिंता का विषय” करार देते हुए राज्यों के मुख्य सचिवों को मंगलवार को निर्देश दिया कि इन मामलों को तीन सप्ताह में वापस लिया जाए. आईटी कानून की रद्द की जा चुकी धारा 66 ए के तहत आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने पर तीन साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान था.

देश की शीर्ष अदालत ने 24 मार्च 2015 को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को “प्रमुख” करार दिया था और यह कहते हुए इस प्रावधान को रद्द कर दिया था कि “जनता के जानने का अधिकार सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए से सीधे तौर पर प्रभावित होता है.” हालांकि बाद में, उसने रद्द किए गए प्रावधान का कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा उपयोग किए जाने के मामले को गंभीरता से लिया और राज्यों एवं हाई कोर्ट रजिस्ट्री को नोटिस जारी किए.

यह गंभीर चिंता का विषयः SC

प्रधान न्यायाधीश जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस रविंद्र भट की बेंच ने कल मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा, “यह गंभीर चिंता का विषय है कि इस अदालत के एक आधिकारिक निर्णय में प्रावधान की वैधता को खारिज किए जाने के बावजूद अब भी मामले दर्ज किए जा रहे हैं.”

शीर्ष अदालत ने संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को जल्द से जल्द उपचारात्मक कदम उठाने और मामलों को वापस लेने की कवायद तीन सप्ताह में पूरी करने का निर्देश दिया.

बेंच ने यह भी कहा, “इन परिस्थितियों में, हमने केंद्र के वकील जोहेब हुसैन से उन राज्यों के मुख्य सचिवों के साथ संवाद करने को कहा है, जहां मामले अब भी दर्ज किए जा रहे हैं या दर्ज हैं.”

3 हफ्ते में केस वापसी की कवायद पूरी होः SC

कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार के वकील प्रासंगिक जानकारी प्राप्त करने के लिए मुख्य सचिवों के साथ संवाद करने के लिए स्वतंत्र होंगे और राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील उनकी मदद करेंगे. उसने कहा, “आज से तीन सप्ताह में कवायद पूरी की जाए. मामले को तीन सप्ताह के बाद सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए.”

सुप्रीम कोर्ट ने गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की याचिका पर यह आदेश दिया. पीयूसीएल ने इस रद्द प्रावधान के तहत लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जाने का आरोप लगाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने उसके द्वारा धारा 66 ए को निरस्त किए जाने के बावजूद लोगों के खिलाफ इसके तहत अब भी मामले दर्ज किए जाने पर पिछले साल पांच जुलाई को “आश्चर्य” व्यक्त किया था और इसे “चौंकाने” वाला बताया था.